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'''ब्रह्राचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।14।।'''
 
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देव = देवता ; द्विज = ब्राह्मण ; गुरू = गुरू (और) ; प्राज्ञ = ज्ञानीजनों का ; पूजनम् = पूजन (एवं) ; शौचम् = पवित्रता ; आर्जवम् = सरलता ; ब्रह्मचर्यम् = ब्रह्मयर्य ; च = और ; अहिंसा = अहिंसा (यह) ; शारीरम् =शरीर संबन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है   
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देव = देवता ; द्विज = ब्राह्मण ; गुरु = गुरु (और) ; प्राज्ञ = ज्ञानीजनों का ; पूजनम् = पूजन (एवं) ; शौचम् = पवित्रता ; आर्जवम् = सरलता ; ब्रह्मचर्यम् = ब्रह्मयर्य ; च = और ; अहिंसा = अहिंसा (यह) ; शारीरम् =शरीर संबन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है   
 
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१२:५२, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण

गीता अध्याय-17 श्लोक-14 / Gita Chapter-17 Verse-14

प्रसंग-


इस प्रकार तीन तरह के यज्ञों के लक्षण बतलाकर, अब तप के लक्षणों का प्रकरण आरम्भ करते हुए चार श्लोकों द्वारा सात्त्विक तप का लक्षण बतलाने के लिये पहले शारीरिक तप के स्वरूप का वर्णन करते है-


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् ।
ब्रह्राचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।14।।



देवता, ब्राह्राण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्राचर्य और अहिंसा – यह शरीर संबंधी तप कहा जाता है ।।14।।

Worship of gods, the Brahmanas, one's elders and wise men, purity, straightness, continence and harmlessness—this is called bodily penance.(14)


देव = देवता ; द्विज = ब्राह्मण ; गुरु = गुरु (और) ; प्राज्ञ = ज्ञानीजनों का ; पूजनम् = पूजन (एवं) ; शौचम् = पवित्रता ; आर्जवम् = सरलता ; ब्रह्मचर्यम् = ब्रह्मयर्य ; च = और ; अहिंसा = अहिंसा (यह) ; शारीरम् =शरीर संबन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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