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==कृष्ण / Krishn / [[:en:Krishna|Krishna]]==
 
सनातन धर्म के अनुसार भगवान [[विष्णु]] सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख [[देवता]] हैं। कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार माने जाते हैं । श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर युग पुरूष थे। उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नही, एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआ, जिसका [[गीता]]- ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं निश्चित रूप से भागवत गीता से प्रभावित हैं। गीता किसने और किस काल में कही या लिखी यह शोध का विषय है किन्तु गीता को कृष्ण से ही जोड़ा जाता है। यह आस्था का प्रश्न है और यूँ भी आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं तलाशे जाते।
 
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<balloon link="index.php?title=ब्रज" title="वर्तमान मथुरा तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में शूरसेन जनपद के नाम से प्रसिद्ध था ।
 
ई॰ सातवीं शती में जब चीनी यात्री हुएन-सांग यहाँ आया तब उसने लिखा कि मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था ।
 
दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा जेजाकभुक्ति (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी ।
 
वर्तमान समय में ब्रज शब्द से साधारणतया मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का भू भाग समझा जाता है ।
 
प्रदेश या जनपद के रूप में ब्रज या बृज शब्द अधिक प्राचीन नहीं है ।
 
शूरसेन जनपद की सीमाएं समय-समय पर बदलती रहीं । इसकी राजधानी मधुरा या मथुरा नगरी थी । कालांतर में मथुरा नाम से ही यह जनपद विख्यात हुआ।
 
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आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रज</balloon> या [[शूरसेन]] जनपद के इतिहास में श्रीकृष्ण का समय बड़े महत्व का है। इसी समय में प्रजातंत्र और नृपतंत्र के बीच कठोर संघर्ष हुए, [[मगध]]-राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ और भारत का वह महान भीषण संग्राम हुआ जिसे [[महाभारत]] युद्ध कहते है। इन राजनैतिक हलचलों के अतिरिक्त इस काल का सांस्कृतिक महत्व भी है।
 
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[[मथुरा]] नगरी इस महान विभूति का [[कृष्ण जन्मभूमि|जन्मस्थान]] होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्व प्राप्त हुआ वह इस महापुरूष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान स्त्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही,साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटली पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है।
 
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वर्तमान ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग ई० पू० 1500 माना जाता है। ये सम्भवत: 100 वर्ष से कुछ ऊपर की आयु तक जीवित रहे। अपने इस दीर्घजीवन में उन्हें विविध प्रकार के कार्यो में व्यस्त रहना पड़ा। उनका प्रारंभिक जीवन तो ब्रज में कटा और शेष द्वारका में व्यतीत हुआ। बीच-बीच में उन्हें अन्य अनेक जनपदों में भी जाना पडा़। जो अनेक घटनाएं उनके समय में घटी उनकी विस्तृत चर्चा पुराणों तथा महाभारत में मिलती है। वैदिक साहित्य<ref>छांदोग्य उपनिषद(3,17,6), जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य कहा है। परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या [[विष्णु]] रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है (दे० तैत्तिरीय आरण्यक, 10, 1, 6; [[पाणिनि]]-अष्टाध्यायी, 4, 3, 98 आदि)।
 
 
[[महाभारत]] तथा [[हरिवंश पुराण|हरिवंश]], [[विष्णु पुराण|विष्णु]], [[ब्रह्म पुराण|ब्रह्म]], [[वायु पुराण|वायु]], [[भागवत पुराण|भागवत]], [[पद्म पुराण|पद्म]], [[देवी भागवत]] [[अग्नि पुराण|अग्नि]] तथा [[ब्रह्मावर्त|ब्रह्मवर्त]] [[पुराण|पुराणों]] में उन्हें प्राय: भगवान के रूप में ही दिखाया गया है। इन ग्रंथो में यद्यपि कृष्ण के आलौकिक तत्व की प्रधानता है तो भी उनके मानव या ऐतिहासिक रूप के भी दर्शन यत्र-तत्र मिलते हैं। पुराणों में कृष्ण-संबंधी विभिन्न वर्णनों के आधार पर कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह कल्पना करने का अवसर मिला कि कृष्ण ऐतिहासिक पुरूष नहीं थे। इस कल्पना की पुष्टि में अनेक दलीलें दी गई हैं, जो ठीक नहीं सिद्ध होती। यदि महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त, ब्राह्मण-ग्रंथों तथा [[उपनिषद|उपनिषदों]] के उल्लेख देखे जायें तो कृष्ण के ऐतिहासिक तत्व का पता चल जायगा। बौद्ध-ग्रंथ घट [[जातक कथा|जातक]] तथा [[जैन]]-ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र से भी श्रीकृष्ण का ऐतिहासिक होना सिद्ध है। यह मत भी भ्रामक है कि [[ब्रज]] के कृष्ण, [[द्वारका]] के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थे।
 
(श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता तथा तत्संबंधी अन्य समस्याओं के लिए देखिए- राय चौधरी-अर्ली हिस्ट्री आफ वैष्णव सेक्ट, पृ० 39, 52; आर०जी० भंडारकार-ग्रंथमाला, जिल्द 2, पृ० 58-291; विंटरनीज-हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द 1, पृ० 456; मैकडॉनल तथा कीथ-वैदिक इंडेक्स, जि० 1, पृ० 184; ग्रियर्सन-एनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजंस (`भक्ति' पर निबंध); भगवानदास-कृष्ण; तदपत्रिकर-दि कृष्ण प्रायलम; पार्जीटर-ऎश्यंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडीशन आदि।)</ref> में तो कृष्ण का उल्लेख बहुत कम मिलता है और उसमें उन्हें मानव-रूप में ही दिखाया गया है, न कि नारायण या विष्णु के अवतार रूप में।
 
{{कृष्ण}}
 
==इतिहास और पुरातत्व==
 
दामोदर धर्मानंद कोसंबी के अनुसार, कृष्ण के बारे में एकमात्र पुरातात्विक प्रमाण है उसका पारंपरिक हथियार चक्र जिसे फेंककर मारा जाता था।  वह इतना तीक्ष्णधार होता था कि किसी का भी सिर काट दे ।  यह हथियार वैदिक नहीं है, और बुद्ध के पहले ही इसका चलन बंद हो गया था; परंतु मिर्जापुर जिले (दरअसल, बौद्ध दक्षिणागिरि) के एक गुफाचित्र में एक रथारोही को ऐसे चक्र से आदिवासियों पर (जिन्होंने यह चित्र बनाया है) आक्रमण करते दिखाया गया है।  अत: इसका समय होगा लगभग 800 ई.पू. जबकि, मोटे तौर पर, [[वाराणसी]] में पहली बस्ती की नींव पड़ी। <balloon title="प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता- दामोदर धर्मानंद कोसंबी" style="color:blue">*</balloon>
 
[[चित्र:chakra-krishna.jpg|thumb|left|चक्र द्वारा आक्रमण करता अश्वारोही (इस चित्र को स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए background बदल दिया है। जो मूल चित्र मैं नहीं है।)]]
 
ये रथारोही [[आर्य]] रहे होंगे, और नदी पार के क्षेत्र में लोह-खनिज की खोज करने आए होंगे- उस हैमाटाइट खनिज की, जिससे ये गुफाचित्र बनाए गए हैं।  दूसरी ओर , [[ऋग्वेद]] में कृष्ण को दानव और [[इन्द्र|इंद्र]] का शत्रु बताया गया है, और उसका नाम श्यामवर्ण आर्यपूर्व लोगों का द्योतक है। कृष्णाख्यान का मूलाधार यह है कि वह एक वीर योद्धा था और यदु कबीले का नर-देवता (प्राचीनतम वेद ऋग्वेद में जिन पाँच प्रमुख जनों यानी कबीलों का उल्लेख मिलता है उनमें से [[यदु]] कबीला एक था); परंतु सूक्तकारों ने, पंजाब के कबीलों में निरंतर चल रहे कलह से जनित तत्कालीन गुटबंदी के अनुसार, इन यदुओं को कभी धिक्कारा है तो कभी आशीर्वाद दिया है। कृष्ण सात्वत भी है, [[अंधक]]-[[वृष्णि संघ|वृष्णि]] भी, और मामा [[कंस]] से बचाने के लिए उसे [[गोकुल]] (गोपालकों के कम्यून) में पाला गया था।  इस स्थानांतरण ने उसे उन आभीरों से भी जोड़ दिया जो ईसा की आरंभिक सदियों में ऐतिहासिक एवं पशुपालक लोग थे, जो आधुनिक अहीर जाति के पूर्वज हैं।  भविष्यवाणी थी कि कंस का वध उसकी बहिन (कुछ उल्लेखों में पुत्री) [[देवकी]] के पुत्र के हाथों होगा, इसलिए देवकी को उसके पति [[वसुदेव]] सहित कारागार में डाल दिया गया था।  बालक कृष्ण-वासुदेव (वासुदेव का पुत्र) गोकुल में बड़ा हुआ, उसने इंद्र से गोधन की रक्षा की और अनेक मुँहवाले विषधर [[कालिय नाग]] का, जिसने मथुरा के पास [[यमुना]] के एक सुविधाजनक डबरे तक जाने का मार्ग रोक दिया था, मर्दन करके उसे खदेड़ दिया, उसका वध नहीं किया।  तब कृष्ण और उसके अधिक बलशाली भाई [[बलराम]] ने, भविष्यवाणी को पूरा करने के पहले, अखाड़े में कंस के मल्लों को परास्त किया।  यहाँ यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि कुछ आदिम समाजों में मुखिया की बहिन का पुत्र ही उसका उत्तराधिकारी होता है; साथ ही, उत्तराधिकारी को प्राय: मुखिया की बलि चढ़ानी पड़ती है।  आदिम प्रथाओं से कंस-वध को अच्छा समर्थन मिलता है, और यह भी स्पष्ट होता है कि मातृस्थानक समाज में ईडिपस-आख्यान का क्या रूप हो जाता।
 
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==नारद कृष्ण संवाद==
 
नारद कृष्ण संवाद ने कृष्ण के सम्बन्ध में कई बातें हमें स्पष्ट संकेत देती हैं कि कृष्ण ने भी एक सहज संघ मुखिया के रूप में ही समस्याओं से जूझते हुए समय व्यतीत किया होगा । श्रीकृष्ण मंझले भाई थे।  उनके बड़े भाई का नाम [[बलराम]] था जो अपनी शक्ति में ही मस्त रहते थे।  उनसे छोटे का नाम 'गद' था।  वे अत्यंत सुकुमार होने के कारण श्रम से दूर भागते थे।  श्रीकृष्ण के बेटे [[प्रद्युम्न]] अपने दैहिक सौंदर्य से मदासक्त थे।  कृष्ण अपने राज्य का आधा धन ही लेते थे, शेष यादववंशी उसका उपभोग करते थे।  श्रीकृष्ण के जीवन में भी ऐसे क्षण आये जब उन्होंने अपने जीवन का असंतोष [[नारद]] के सम्मुख कह सुनाया और पूछा कि यादववंशी लोगों के परस्पर द्वेष तथा अलगाव के विषय में उन्हें क्या करना चाहिए।  नारद ने उन्हें सहनशीलता का उपदेश देकर एकता बनाये रखने को कहा। <br />
 
'''महाभारत शांति पर्व अध्याय-८२:'''<br />
 
अरणीमग्निकामो वा मन्थाति हृदयं मम।
 
वाचा दुरूक्तं देवर्षे तन्मे दहति नित्यदा  ॥6॥<br />
 
हे देवर्षि ! जैसे पुरूष अग्नि की इच्छा से अरणी काष्ठ मथता है; वैसे ही उन जाति-लोगों के कहे हुए कठोर वचन से मेरा हृदय सदा मथता तथा जलता हुआ रहता है ॥6॥<br /><br />
 
बलं संकर्षणे नित्यं सौकुमार्य पुनर्गदे।
 
रूपेण मत्त: प्रद्युम्न: सोऽसहायोऽस्मि नारद  ॥7॥<br />
 
हे नारद ! बड़े भाई बलराम सदा बल से, गद सुकुमारता से और प्रद्युम्न रूप से मतवाले हुए है; इससे इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हुआ हूँ। ॥7॥
 
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==जन्म और जीवन परिचय==
 
[[कंस]] की चचेरी बहन देवकी शूर-पुत्र वसुदेव को ब्याही गई थी पुराणों के अनुसार जब कंस को यह भविष्यवाणी ज्ञात हुई कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवें बच्चे के हाथ से उसकी मृत्यु होगी तो वह बहुत सशंकित हो गया। उसने वासुदेव-देवकी को कारागार में बन्द करा दिया। उल्लेख है की कंस के चाचा और [[उग्रसेन]] के भाई देवक ने अपनी सात पुत्रियों का विवाह वासुदेव से कर दिया था जिनमें देवकी भी एक थी ।
 

१०:०८, ११ फ़रवरी २०११ के समय का अवतरण