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==केशी घाट वृन्दावन / Keshi Ghat Vrindavan==
 
==केशी घाट वृन्दावन / Keshi Ghat Vrindavan==
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यमुना के किनारे चीरघाट से कुछ पूर्व दिशा में केशी घाट अवस्थित है। श्रीकृष्ण ने यहाँ केशी दैत्य का वध किया था।
 
यमुना के किनारे चीरघाट से कुछ पूर्व दिशा में केशी घाट अवस्थित है। श्रीकृष्ण ने यहाँ केशी दैत्य का वध किया था।
 
   
 
   
 
प्रसंग- एक समय सखाओं के साथ कृष्ण यहाँ गोचारण कर रहे थे। सखा मधुमंगल ने हँसते हुए श्रीकृष्ण से कहा-प्यारे सखा! यदि तुम अपना मोरमुकुट, मधुर मुरलिया और पीतवस्त्र मुझे दे दो तो सभी गोप-गोपियाँ मुझे ही प्यार करेंगी तथा रसीले लड्डू मुझे ही खिलाएँगी।  तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं।  कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा।  इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का बध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ।  उसने महाराज कंस से सुन रखा था- जिसके सिरपर मयूरपिच्छ, हाथों में मुलली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण सजे हुए मधुमंगलको देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया।  कृष्ण ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया।  पश्चात् केशी दैत्य का बध किया।  मधुमंगल को केशी दैत्य के पिछले पैरों की चोट तो नहीं लगी, किन्तु उसकी हवासे ही उसके होश उड़ गये।  केशी बध के पश्चात् वह सहमा हुआ तथा लज्जित होता हुआ कृष्ण के पास गया तथा उनकी मुरली , मयूरकुकुट, पीताम्बर लौटाते हुए बोला- मुझे लड्डू नहीं चाहिए।  प्राण बचे तो लाखों पाये । ग्वाल-बाल हँसने लगे।  आज भी केशीघाट इस लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है।
 
प्रसंग- एक समय सखाओं के साथ कृष्ण यहाँ गोचारण कर रहे थे। सखा मधुमंगल ने हँसते हुए श्रीकृष्ण से कहा-प्यारे सखा! यदि तुम अपना मोरमुकुट, मधुर मुरलिया और पीतवस्त्र मुझे दे दो तो सभी गोप-गोपियाँ मुझे ही प्यार करेंगी तथा रसीले लड्डू मुझे ही खिलाएँगी।  तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं।  कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा।  इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का बध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ।  उसने महाराज कंस से सुन रखा था- जिसके सिरपर मयूरपिच्छ, हाथों में मुलली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण सजे हुए मधुमंगलको देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया।  कृष्ण ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया।  पश्चात् केशी दैत्य का बध किया।  मधुमंगल को केशी दैत्य के पिछले पैरों की चोट तो नहीं लगी, किन्तु उसकी हवासे ही उसके होश उड़ गये।  केशी बध के पश्चात् वह सहमा हुआ तथा लज्जित होता हुआ कृष्ण के पास गया तथा उनकी मुरली , मयूरकुकुट, पीताम्बर लौटाते हुए बोला- मुझे लड्डू नहीं चाहिए।  प्राण बचे तो लाखों पाये । ग्वाल-बाल हँसने लगे।  आज भी केशीघाट इस लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है।

०७:२१, २५ अक्टूबर २००९ का अवतरण


केशी घाट वृन्दावन / Keshi Ghat Vrindavan

Keshi-Ghat-2.jpg यमुना के किनारे चीरघाट से कुछ पूर्व दिशा में केशी घाट अवस्थित है। श्रीकृष्ण ने यहाँ केशी दैत्य का वध किया था।

प्रसंग- एक समय सखाओं के साथ कृष्ण यहाँ गोचारण कर रहे थे। सखा मधुमंगल ने हँसते हुए श्रीकृष्ण से कहा-प्यारे सखा! यदि तुम अपना मोरमुकुट, मधुर मुरलिया और पीतवस्त्र मुझे दे दो तो सभी गोप-गोपियाँ मुझे ही प्यार करेंगी तथा रसीले लड्डू मुझे ही खिलाएँगी। तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं। कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का बध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ। उसने महाराज कंस से सुन रखा था- जिसके सिरपर मयूरपिच्छ, हाथों में मुलली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण सजे हुए मधुमंगलको देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया। कृष्ण ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया। पश्चात् केशी दैत्य का बध किया। मधुमंगल को केशी दैत्य के पिछले पैरों की चोट तो नहीं लगी, किन्तु उसकी हवासे ही उसके होश उड़ गये। केशी बध के पश्चात् वह सहमा हुआ तथा लज्जित होता हुआ कृष्ण के पास गया तथा उनकी मुरली , मयूरकुकुट, पीताम्बर लौटाते हुए बोला- मुझे लड्डू नहीं चाहिए। प्राण बचे तो लाखों पाये । ग्वाल-बाल हँसने लगे। आज भी केशीघाट इस लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है।