"सत्यनारायण जी की आरती" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '[[श्रेणी:' to '[[category:')
पंक्ति २९: पंक्ति २९:
 
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।।जय.।।
 
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।।जय.।।
 
</poem>
 
</poem>
[[श्रेणी: कोश]]
+
[[category: कोश]]
 
[[category:भगवान-अवतार]]
 
[[category:भगवान-अवतार]]
[[श्रेणी:भक्ति]] [[श्रेणी:आरती संग्रह]]
+
[[category:भक्ति]] [[category:आरती संग्रह]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

२२:३७, १५ फ़रवरी २०१० का अवतरण

भगवान श्री सत्यनारायण जी की आरती

जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।।जय.।।टेक।।

रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।।जय.।।

प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।।जय.।।

दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।।जय.।।

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।।जय.।।

भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।।जय.।।

ग्वाल-बाल सँग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।।जय.।।

चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।।जय.।।

(सत्य) नारायणजी की आरती जो कोई नर गावै।
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।।जय.।।