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− | हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है । पूर्णावतार [[श्रीकृष्ण]] के आदेश पर [[विश्वकर्मा]] ने इस नगरी का निर्माण किया था । यहाँ का [[द्वारिकाधीश मंदिर]], [[रणछोड़ जी मंदिर]] व [[त्रैलोक्य मंदिर]] के नाम से भी जाना जाता है । आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक शारदा पीठ यहीं है । द्वारिका हमारे देश के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है । आज से हजारों साल पहले भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था । द्वारिकाधीश मदिंर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है । कृष्ण [[मथुरा]] में पैदा हुए, [[गोकुल]] में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया । यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली । [[पांड़व|पांड़वों]] को सहारा दिया । धर्म की जीत कराई और, [[शिशुपाल]] और [[दुर्योधन]] जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया । द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं । बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे । | + | हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है । पूर्णावतार [[श्रीकृष्ण]] के आदेश पर [[विश्वकर्मा]] ने इस नगरी का निर्माण किया था । यहाँ का [[द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका|द्वारिकाधीश मंदिर]], [[रणछोड़ जी मंदिर]] व [[त्रैलोक्य मंदिर]] के नाम से भी जाना जाता है । आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक शारदा पीठ यहीं है । द्वारिका हमारे देश के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है । आज से हजारों साल पहले भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था । द्वारिकाधीश मदिंर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है । कृष्ण [[मथुरा]] में पैदा हुए, [[गोकुल]] में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया । यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली । [[पांड़व|पांड़वों]] को सहारा दिया । धर्म की जीत कराई और, [[शिशुपाल]] और [[दुर्योधन]] जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया । द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं । बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे । |
मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता है, द्वारिकाधीश काफी समय पुर्व संवत 1726-27 में यहां [[ब्रज]] से कांकरोली पधारे थे । कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे । तब मेवाड यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था । सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, ततपश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बडे उत्साह पूर्वक लाया गया । आज भी द्वारका की महिमा है । यह चार धामों में एक है । सात पुरियों में एक पुरी है । इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती । समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों । पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी । पर मथुरा उन्होने छोड़ दी और द्वारका बसाई । द्वारका एक छोटा-सा-कस्बा है । कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है । द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है । इसे गोमती तालाब कहते है । | मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता है, द्वारिकाधीश काफी समय पुर्व संवत 1726-27 में यहां [[ब्रज]] से कांकरोली पधारे थे । कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे । तब मेवाड यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था । सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, ततपश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बडे उत्साह पूर्वक लाया गया । आज भी द्वारका की महिमा है । यह चार धामों में एक है । सात पुरियों में एक पुरी है । इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती । समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों । पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी । पर मथुरा उन्होने छोड़ दी और द्वारका बसाई । द्वारका एक छोटा-सा-कस्बा है । कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है । द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है । इसे गोमती तालाब कहते है । |
०५:५७, ४ सितम्बर २००९ का अवतरण
द्वारका / Dwarka
हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है । पूर्णावतार श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने इस नगरी का निर्माण किया था । यहाँ का द्वारिकाधीश मंदिर, रणछोड़ जी मंदिर व त्रैलोक्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक शारदा पीठ यहीं है । द्वारिका हमारे देश के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है । आज से हजारों साल पहले भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था । द्वारिकाधीश मदिंर कांकरोली में राजसमंद झील के किनारे पाल पर स्थित है । कृष्ण मथुरा में पैदा हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया । यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली । पांड़वों को सहारा दिया । धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया । द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं । बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे ।
मेवाड के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मदिंर भी आता है, द्वारिकाधीश काफी समय पुर्व संवत 1726-27 में यहां ब्रज से कांकरोली पधारे थे । कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे । तब मेवाड यहां के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था । सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, ततपश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बडे उत्साह पूर्वक लाया गया । आज भी द्वारका की महिमा है । यह चार धामों में एक है । सात पुरियों में एक पुरी है । इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती । समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों । पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी । पर मथुरा उन्होने छोड़ दी और द्वारका बसाई । द्वारका एक छोटा-सा-कस्बा है । कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है । द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है । इसे गोमती तालाब कहते है ।