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उसका जन्म लाहौर में हुआ था, वह जाति का राव या भाट था । बाद में वह अजमेर-[[दिल्ली]] के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गया था । इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज के साथ दिल्ली में बीता था । वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहा था । उसकी विद्यमानता का काल 13 वीं शती है । चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "[[पृथ्वीराजरासो]]" है । इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में [[ब्रजभाषा]] का पर्याय है । इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है । 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है । इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है । अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस है । चंदवरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है अंत: इसका रचना काल सं. 1220 से 1250 तक होना चाहिए । विद्वान 'रासो' को 16 वीं अथवा उसके बाद की किसी शती का अप्रामाणिक ग्रंथ मानते है ।
 
उसका जन्म लाहौर में हुआ था, वह जाति का राव या भाट था । बाद में वह अजमेर-[[दिल्ली]] के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गया था । इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज के साथ दिल्ली में बीता था । वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहा था । उसकी विद्यमानता का काल 13 वीं शती है । चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "[[पृथ्वीराजरासो]]" है । इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में [[ब्रजभाषा]] का पर्याय है । इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है । 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है । इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है । अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस है । चंदवरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है अंत: इसका रचना काल सं. 1220 से 1250 तक होना चाहिए । विद्वान 'रासो' को 16 वीं अथवा उसके बाद की किसी शती का अप्रामाणिक ग्रंथ मानते है ।
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०८:११, ११ नवम्बर २००९ का अवतरण



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चंदबरदाई / Chanbardai

उसका जन्म लाहौर में हुआ था, वह जाति का राव या भाट था । बाद में वह अजमेर-दिल्ली के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गया था । इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज के साथ दिल्ली में बीता था । वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहा था । उसकी विद्यमानता का काल 13 वीं शती है । चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "पृथ्वीराजरासो" है । इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय है । इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम महाकवि माना जाता है । 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है । इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है । अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस है । चंदवरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है अंत: इसका रचना काल सं. 1220 से 1250 तक होना चाहिए । विद्वान 'रासो' को 16 वीं अथवा उसके बाद की किसी शती का अप्रामाणिक ग्रंथ मानते है ।