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जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥ | जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥ | ||
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१२:३५, ५ जून २००९ का अवतरण
कदम्ब
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ॥
पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।
जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥