नरकासुर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:०६, २ दिसम्बर २००९ का अवतरण (नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> ==नरकासुर / Narkasur== एक बार नरकासुर ने घोर तपस्या कीं वह इंद्र-पद ...)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ


नरकासुर / Narkasur

एक बार नरकासुर ने घोर तपस्या कीं वह इंद्र-पद प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इंद्र ने घबराकर विष्णु का स्मरण किया। विष्णु ने इंद्र के प्रेम के वशीभूत होकर नरकासुर का हनन कर दिया।[१] इंद्र ने कृष्ण से कहा- 'भौमासुर (नरकासुर) अनेक देवताओं का वध कर चुका है, कन्याओं का बलात्कार करता है। उसने अदिति के अमृतस्त्रावी दोनों दिव्य कुंडल ले लिये हैं, अब मेरा 'ऐरावत' भी लेना चाहता है। उससे उद्धार करो।' कृष्ण ने आश्वासन देकर नरकासुर पर आक्रमण किया। सुदर्शन चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए, अनेक दैत्यों को मार डाला। भूमि ने प्रकट होकर कृष्ण से कहा-'जिस समय वराह रूप में आपने मेरा उद्धार किया था, तब आप ही के स्पर्श से यह पुत्र मुझे प्राप्त हुआ था। अब आपने स्वयं ही उसे मार डाला हैं आप अदिति के कुंडल ले लीजिए, किंतु नरकासुर के वंश की रक्षा कीजिए।' कृष्ण ने युद्ध समाप्त कर दिया तथा कुंडल अदिति को लौटा दिये। [२]


टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत, वनपर्व, अध्याय 142, श्लोक 15 से 28 तक
  2. ब्रह्म पुराण, 202 ।-विष्णु पुराण, 5।29