अक्षयवट

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अक्षयवट / Akshyavat

इसे भाण्डीरवट भी कहते हैं। यह रामघाट से दो मील दक्षिण में स्थित है। वटवृक्ष की छाया में श्रीकृष्ण-बलराम सखाओं के साथ विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ विशेषत: मल्लयुद्ध करते थे, तथा यहाँ पर बलदेवजी ने प्रलम्बासुर का वध किया था।

प्रसंग

किसी समय गोचारण करते हुए श्रीकृष्ण-बलराम गऊओं को हरे-भरे मैदान में चरने के लिए छोड़कर सखाओं के साथ दलों में विभक्त: होकर खेल रहे थे। एक दल के अध्यक्ष कृष्ण तथा दूसरे दल के बलदेव जी बने। इस खेल में यह शर्त थी कि जो दल पराजित होगा वह जीतने वाले दल के सदस्यों को अपने कंधों पर बैठाकर भाण्डीरवट से नियत स्थान की दूरी तक लेकर जायेगा तथा वहाँ से लौटकर भाण्डीरवट तक लायेगा। कंस द्वारा प्रेरित प्रलम्बासुर भी सुन्दर सखा का रूप धारणकर कृष्ण के दल में प्रविष्ट हो गया। कृष्ण ने भी जान-बूझकर नये सखा को प्रोत्साहन देकर अपने दल में रखा। खेल में श्रीकृष्ण श्रीदाम के द्वारा और प्रलम्बासुर श्रीबलराम के द्वारा पराजित हुए। शर्त के अनुसार श्रीकृष्ण श्रीदाम को और प्रलम्बासुर बलराम को कंधे पर बैठाकर नियत स्थान की तरफ भागने लगे। कृष्ण अपने गन्तव्य स्थान की ओर चल रहे थे किन्तु दुष्ट प्रलम्बासुर बलदेव को कंधे पर बैठाकर नियत-स्थान की ओर भागने लगा कुछ ही देर में उसने अपना विकराल राक्षस का रूप धारण कर लिया। वह कंस के आदेशानुसार पहले बलदेव जी का वध कर बाद में कृष्ण का भी वध करना चाहता था। बलदेव प्रभु पहले तो कुछ किंकर्तव्य विमूढ़-से दीखे, किन्तु कृष्ण का इशारा पाकर अपने मुष्टि का के आघात से असुर का मस्तक विदीर्ण कर दिया। वह रूधिर वमन करता हुआ पृथ्वी पर लौटने लगा सखाओं के साथ कृष्ण वहाँ उपस्थित हुए तथा बलराम को आलिंगन करते हुए उनके बल और धैर्य की प्रशंसा करने लगे।

दूसरा प्रसंग

एक दिन सखियां के साथ राधिका श्रीकृष्ण के विलास कर रहीं थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा- 'प्राणवल्लभ! आप बड़ी डीगें हाँकते हैं कि मल्लविद्या-विशारदों को भी मैंने परास्त किया है, इतना होने पर भी आप श्रीदाम से कैसे पराजित हो गये। श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- यह सम्पूर्ण रूप से मिथ्या है सम्पूर्ण विश्व में मुझे कोई भी नहीं जीत सकता। मैं कभी भी श्रीदाम से नहीं हारा। यह सुनकर राधिकाजी ने कहा- यदि ऐसी बात है तो हम गोपियाँ आपसे मल्लयुद्ध करने के लिए प्रस्तुत हैं। यदि आप हमें पराजित कर देंगे तो हम समझेंगी कि आप यथार्थ में सर्वश्रेष्ठ मल्ल हैं। फिर गोपियों ने मल्लवेश धारण किया। राधिका के साथ कृष्ण का मल्लयुद्ध हुआ, जिसमें कृष्ण सहज ही परास्त हो गये। सखियों ने ताली बजाकर राधिका का अभिनन्दन किया। मल्लयुद्ध और श्रीकृष्ण तथा सखाओं के कसरत करने का स्थान होने के कारण अक्षयवट के पास के गाँव का नाम काश्रट हो गया। काश्रट शब्द का अर्थ है- कसरत करना या कुश्ती करना। प्राचीन वटवृक्ष के अन्तर्हित होने पर उसके स्थान पर और नया वटवृक्ष लगाया गया। भाण्डीरवन स्थित भाण्डीरवट दूसरी लीला-स्थली है, जो यमुना के दूसरे तट पर अवस्थित है।