अनु वंश

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १६:४१, ४ मार्च २०१० का अवतरण (Text replace - '[[category' to '[[Category')
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अनु वंश / Anu vansh

  1. सभानर,
  2. चक्षु और
  3. परोक्ष।
  • सभानर का कालनर, कालनर का सृंजय, सृंजय का जनमेजय, जनमेजय का महाशील, महाशील का पुत्र हुआ महामना।
  • महामना के दो पुत्र हुए-
  1. उशीनर एवं
  2. तितिक्षु।
  • उशीनर के चार पुत्र थे-
  1. शिबि,
  2. वन,
  3. शमी और
  4. दक्ष।
  • शिबि के चार पुत्र हुए-
  1. बृषादर्भ,
  2. सुवीर,
  3. मद्र और
  4. कैकेय।
    • उशीनर के भाई तितिक्षु के रूशद्रथ, रूशद्रथ के हेम, हेम के सुतपा और सुतपा के बलि नामक पुत्र हुआ।
    • राजा बलि की पत्नी के गर्भ से दीर्घतमा मुनि ने छ: पुत्र उत्पन्न किये-
  1. अंग,
  2. वंग,
  3. कलिंग,
  4. सुह्म,
  5. पुण्ड्र और
  6. अन्ध्र।
  • इन लोगों ने अपने-अपने नाम से पूर्व दिशा में छ: देश बसाये।
  • अंग का पुत्र हुआ खनपान, खनपान का दिविरथ, दिविरथ का धर्मरथ और धर्मरथ का चित्ररथ।
  • यह चित्ररथ ही रोमपाद के नाम से प्रसिद्ध था। इसके मित्र थे अयोध्याधिपति महाराज दशरथ। रोमपाद को कोई सन्तान न थी। इसलिये दशरथ ने उन्हें अपनी शान्ता नाम की कन्या गोद दे दी। शान्ता का विवाह ऋष्यश्रृंग मुनि से हुआ। ऋष्यश्रृंग विभाण्डक ऋषि के द्वारा हिरणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। एक बार राजा रोमपाद के राज्य में बहुत दिनों तक वर्षा नहीं हुई तब गणिकाएँ अपने नृत्य, संगीत, वाद्य, हाव-भाव, आलिंगन और विविध उपहारों से मोहित करके ऋष्यश्रृंग को वहाँ ले आयीं। उनके आते ही वर्षा हो गयी। उन्होंने ही इन्द्र देवता का यज्ञ कराया, तब सन्तानहीन राजा रोमपाद को भी पुत्र हुआ और पुत्रहीन दशरथ ने भी उन्हीं के प्रयत्न से चार पुत्र प्राप्त किये। रोमपाद का पुत्र हुआ चतुरंग और चतुरंग का पृथुलाक्ष।
  • पृथुलाक्ष के तीन पुत्र हुए-
  1. बृहद्रथ,
  2. बृहत्कर्मा और
  3. बृहद्भानु
  • बृहद्रथ का पुत्र हुआ बृहन्मना और बृहन्मना का जयद्रथ। जयद्रथ की पत्नी का नाम था सम्भूति। उसके गर्भ से विजय का जन्म हुआ। विजय का धृति, धृति का धृतव्रत, धृतव्रत का सत्कर्मा और सत्कर्मा का पुत्र था अधिरथ
  • अधिरथ को कोई सन्तान न थी। किसी दिन वह गंगा तट पर क्रीडा कर रहा था कि देखा एक पिटारी में नन्हा-सा शिशु बहा चला आ रहा हैं वह बालक कर्ण था, जिसे कुन्ती ने कन्यावस्था में उत्पन्न होने के कारण उस प्रकार बहा दिया था। अधिरथ ने उसी को अपना पुत्र बना लिया। परीक्षित! राजा कर्ण के पुत्र का नाम था बृषसेन।