अन्धक

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अन्धक / Andhak

  • एक यदुवंशी व्यक्ति का नाम। यादवों के एक राजनीतिक गण का भी नाम अन्धक था। वृष्णिएक गणसंघ था। [१]
  • एक असुर का नाम, जिसका वध शिव ने किया था।

हरिवंश पुराण से

  • दिति ने समस्त दैत्यों के नाश पर कश्यप से प्रार्थना की कि वे ऐसे पुत्र के जन्म का वर दें जो समस्त देवताओं के लिए अवध्य हो। कश्यप ने कहा-'शिव पर मेरा बस नहीं चलता, अन्य कोई देवता उसका हनन नहीं कर पायेगा।' ऐसा कहकर कश्यप ने अपनी अंगुलि से दिति के उदर का स्पर्श किया। अत: अंधक का जन्म हुआ। अंधा न होने पर भी वह अंधे की भांति चलता था, अत: अंधक कहलाया। अवध्य होने का वर प्राप्त करने के कारण वह क्रूर कर्मी हुआ। देवताओं ने नारद से ऐसा उपाय जानना चाहा जिससे शिव उसके क्रूर कर्मों का परिचय पाकर उसे नष्ट कर दें। नारद मंदार पुष्प और संतान कुसुमों की माला धारण करके अंधक के पास गये। उनकी दिव्य मालाओं की गंध पर मुग्ध होकर अंधक ने उन पुष्पों को प्राप्त करने का उपाय पूछा। नारद ने बताया-'ये पुष्प शिव के मंदार-वन में उत्पन्न होते हैं-वह स्थान पार्षदों से रक्षित है। अत: तुम वहां नहीं जा सकते।' इससे रुष्ट होकर अंधक ने दैत्यों की सेवा तैयार की तथा मंदराचल पर चढ़ाई कर दी। नदियों की गति उलट गयी, पृथ्वी कांपने लगी, शिव ने अपने त्रिशूल से अंधकासुर को मार डाला। [२]
  • विष्णु ने नरहरि तथा शूकर के रूप में दैत्यों का संहार किया तो दिति बहुत दुखी हुई। उसने कश्यप को प्रसन्न करके वरदान स्वरूप वीर पुत्र मांगा कि जिसे कोई देवता न मार सके। कश्यप ने दस हज़ार सिर, दो हज़ार आंखों, हाथों और पैरों वाला पुत्र प्रदान किया। वह अंधों के समान झूमता हुआ चलता था, अत: अंधक कहलाया। कश्यप ने दिति से कहा कि अंधक को शिक्षा दे कि वह शिव को अप्रसन्न न करे। अंधक से देवता, इन्द्र आदि अत्यंत त्रस्त हो गये। शिव को तपस्या से प्रसन्न करके अंधक ने वर प्राप्त किया कि शिवेतर सबके लिए वह अवध्य रहेगा किंतु शर्त यह थी की न वह अनीति करेगा और न ब्राह्मणों से शत्रुता रखेगा। तदुपरांत एक दिन वह इन्द्र की सभा में पहुंच गया। उसने ऐरावत, उर्वशी, उच्चैश्रवा इत्यादि को देखा। वह अप्सराओं आदि को हस्तगत करना चाहता था। इसी संदर्भ में युद्ध करके उसने देवताओं को भगा दिया तथा मां (दिति) को वहीं बुला लिया। विष्णु की माया से दैत्यों में अनाचार का प्रसार हुआ। उन्होंने देवताओं के यज्ञों में विघ्न डालना प्रारंभ किया। एक दिन नारद मंदार के पुष्पों की माला पहनकर अंधक के पास गये। अंधक ने पुष्पों का मूल स्त्रोत पूछा तो नारद ने मंदराचल का नाम लिया। अंधक वहां गया। वहां वह शिव के गणों से उलझ पड़ा फिर मंदराचल से रुष्ट होकर उसे भस्म करने का प्रयास करने लगा। वह (पर्वत) टूटता-फूटता शिव के पास पहुंचा। शिव ने क्रुद्ध होकर गणों को आज्ञा दी कि वे दैत्यों को मार डालें। शिव ने स्वयं त्रिशूल से अंधक को विदीर्ण कर डाला। उसके अस्थि और चर्म त्रिशूल पर रह गये। समस्त रक्त निकल गया। उसकी सद् बुद्धि जागृत हुई तथा उसने सारूप्य मुक्ति की कामना की।

अनुश्रुति के अनुसार

  • पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार कश्यप और दिति का पुत्र एक दैत्य, जिसके हज़ार सिर, दो हज़ार भुजाएं, दो हज़ार आंखें और दो हज़ार पैर थे। आँखें रहते हुए भी घमंड में चूर, अंधों की तरह चलने का कारण अंधक कहलाया। स्वर्ग से पारिजात वृक्ष चुराते समय शिव जी के हाथों मारा गया। इसने शिव के मस्तक पर गदा से प्रहार किया जिसमें पांच भैरव उत्पन्न और उन्होंने इसका काम तमाम किया।
  • युधाजित नामक यादव का पुत्र जो यादवों की अंधक शाखा का पूर्वज और प्रतिष्ठाता माना जाता है। अंधक से यादवों की अंधकों की शाखा और इसके भाई वृष्णि से वृष्णियों की शाखा चली। इन दोनों गणराज्यों के मल जाने से बाद में 'अंधक-वृष्णिक' संघ स्थापित हुआ।
  • महाभारतकालीन गणराज्य जिसकी स्थिति यमुनातट पर थी। यह मथुरा के परवर्ती प्रदेश में सम्मिलित था।
  • श्रीकृष्ण का जन्म इसी प्रदेश के निवासी अंधकों के वंश में हुआ था। महाभारत अनुशासन-पर्व के अंतर्गत तीर्थ वर्णन में अंधक नामक तीर्थ का नैमिषारण्य के साथ उल्लेख है।[३]
  • महाभारत[४] में अंधकों एवं वृष्णियों को कृष्ण से संबंधित बताया गया है। [५]
  • कृष्ण को इस प्रसंग में संघमुख्य भी कहा गया है।[६] जिससे सूचित होता है कि अंधक तथा वृष्णि गणराज्य थे।

टीका टिप्पणी

  1. सुदंष्ट्र च सुचारूंच कृष्णमित्यन्धकास्त्रय:। (हरिवंश) सुदंष्ट्र, सुचारू और कृष्ण ये तीन अन्धक गण के सदस्य कहे गये हैं।
  2. हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 86-87
  3. 'मतंगवाप्यां य: स्नानादेकरात्रेण सिद्धयति, विगाहति ह्यनालंबमंधकं वै सनातनम्'।
  4. महाभारत शांति पर्व 81, 29
  5. 'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चांधकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोका लोकेश्वराश्च ये।'
  6. 'भेदाद् विनाश: संघानां संघ मुख्योसिकेशव (महाभारत शांति0 81,25)