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१२:०१, २६ अगस्त २००९ का अवतरण


अयोध्या / Ayodhya

अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है । अयोध्या फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता है । राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएँ तट पर स्थित है । प्राचीन काल में यह कौशल देश कहा जाता था । अयोध्या हिन्दुओं का प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है । अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है । रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी । कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा । अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है । यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं । जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था ।


अयोध्या के निकट, पूर्व-बौद्धकाल में बसा हुआ नगर जो अयोध्या का एक उपनगर था। वाल्मीकि रामायण से ज्ञात होता है कि श्रीराम के स्वर्गारोहण के पश्चात् अयोध्या उजाड़ हो गई थी। जान पड़ता है कि कालांतर में, इस नगरी के , गुप्तकाल में फिर से बसने के पूर्व ही साकेत नामक उपनगर स्थापित हो गया था। वाल्मीकि रामायण तथा महाभारत के प्राचीन भाग में साकेत का नाम नहीं है। बौद्ध साहित्य में अधिकतर, अयोध्या के उल्लेख के बजाय सर्वत्र साकेत का ही उल्लेख मिलता है, यद्यपि दोनों नगरियों का साथ-साथ वर्णन भी है ([१])। गुप्तकाल में साकेत तथा अयोध्या दोनों ही का नाम मिलता है। इस समय तक अयोध्या पुन: बस गई थी और चंद्रगुप्त द्वितीय ने यहां अपनी राजधानी भी बनाई थी। कुछ लोगों के मत में बौद्धकाल में साकेत तथा अयोध्या दोनों पर्यायवाची नाम थे किंतु यह सत्य नहीं जान पड़ता। अयोध्या की प्राचीन बस्ती इस समय भी रही होगी किंतु उजाड़ होने के कारण उसका पूर्व गौरव विलुप्त हो गया था।


  • वेबर के अनुसार साकेत नाम के कई नगर थे ([२])
  • कनिंघम ने साकेत का अभिज्ञान फाह्यान के शाचे और युवानच्वांग की विशाखा नगरी से किया है किंतु अब यह अभिज्ञान अशुद्ध प्रमाणित हो चुका है। सब बातों का निष्कर्ष यह जान पड़ता है कि अयोध्या की रामायणकालीन बस्ती के उजड़ जाने के पश्चात् बौद्धकाल के प्रारंभ में (6ठी-5वीं शती ई0पू0) साकेत नामक अयोध्या का एक उपनगर बस गया था जो गुप्तकाल तक प्रसिद्ध रहा और हिंदू धर्म के उत्कर्षकाल में अयोध्या की बस्ती फिर से बस जाने के पश्चात् धीरे-धीरे उसी का अंग बन कर अपना पृथक् अस्तित्व खो बैठा।
  • ऐतिहासिक दृष्टि से साकेत का सर्वप्रथम उल्लेख बौद्ध जातककथाओं में मिलता है। नंदियमिगजातक में साकेत को कोसल-राज की राजधानी बताया गया है।
  • महावग्ग [३]में साकेत को श्रावस्ती से 6 कोस दूर बताया गया है।
  • पतंजलि ने द्वितीय शती ई0पू0 में साकेत में ग्रीक (यवन) आक्रमणकारियों का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा साकेत के आक्रांत होने का वर्णन किया है, [४] अधिकांश विद्वानों के मत में पंतजलि ने यहां मेनेंडर (बौद्ध साहित्य का मिलिंद) के भारत-आक्रमण का उल्लेख किया है।
  • कालिदास ने रघुवंश में [५] रघु की राजधानी को साकेत कहा है-

'जनस्य साकेतनिवासिनस्तौ द्वावप्यभूतामविनन्द्य सत्वौ, गुरूप्रदेयाधिकनि:स्पृहोऽर्थी नृपोऽर्थिकामादधिकप्रदश्च'[६] में राम की राजधानी के निवासियों को साकेत नाम से अभिहित किया गया है।

'यां सैकतोत्संगसुखोचितानाम्'[७] में साकेत के उपवन का उल्लेख है जिसमें लंका से लौटने के पश्चात् श्रीराम को ठहराया गया था-

'साकेतोपवनमुदारमध्युवास'[८] में साकेत की पुरनारियों का वर्णन है-

'प्रासादवातायनदृश्यबंधै: साकेतनार्योऽन्चजलिभि: प्रणेमु:'

उपर्युक्त उद्धरणों से जान पड़ता है कि कालिदास ने अयोध्या और साकेत को एक नगरी माना है। यह स्थिति गुप्त काल अथवा कालिदास के समय में वास्तविक रूप में रही होगी क्योंकि इस समय तक अयोध्या की नई बस्ती फिर से बस चुकी थी और बौद्धकाल का साकेत इसी में सम्मिलित हो गया था। कालिदास ने अयोध्या का तो अनेक स्थानों पर उल्लेख किया ही है। । आनुषांगिक रूप से, इस तथ्य से कालिदास का समय गुप्तकाल ही सिद्ध होता है।

टीका-टिप्पणी

  1. राइस डेवीज-बुद्धिस्ट इंडिया, पृ0 39
  2. इंडियन एंटिक्वेरी, 2,208
  3. महावग्ग 7,11
  4. 'अरूनद् यवन: साकेतम् अरूनद् यवनों मध्यमिकाम्'।
  5. रघुवंश 5,31
  6. रघु0 13,62
  7. रघु0 13,79
  8. रघु0 14,13