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==अष्टछाप==
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हिन्दी साहित्य में कृष्णभक्ति काव्य की प्रेरणा देने का श्रेय श्री [[वल्लभाचार्य]] (1478 ई.-1530 ई,) को जाता है, जो [[पुष्टिमार्ग]] के संस्थापक और प्रवर्तक थे । इनके द्वारा पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर [[सूरदास]] आदि आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की थी । गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने सं.1602 के लगभग अपने पिता वल्लभ के 84 शिष्यों में से चार और अपने 252 शिष्यों में से चार को लेकर अष्टछाप के प्रसिद्ध भक्त कवियों की मंडली की स्थापना की । इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे -
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[[Category: कोश]]
*कुम्भनदास
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==अष्टछाप / Ashtchhap==
*सूरदास
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[[Category:कवि]]
*परमानंददास और
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हिन्दी साहित्य में कृष्णभक्ति काव्य की प्रेरणा देने का श्रेय श्री [[वल्लभाचार्य]] (1478 ई.-1530 ई,) को जाता है, जो [[वल्लभ संप्रदाय|पुष्टिमार्ग]] के संस्थापक और प्रवर्तक थे। इनके द्वारा पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर [[सूरदास]] आदि आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की थी। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने सं.1602 के लगभग अपने पिता वल्लभ के 84 शिष्यों में से चार और अपने 252 शिष्यों में से चार को लेकर अष्टछाप के प्रसिद्ध भक्त कवियों की मंडली की स्थापना की। इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे-
*कृष्णदास
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*[[कुम्भनदास]]
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*[[सूरदास]]
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*[[परमानंद दास]] और
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*[[कृष्णदास]]
 
अन्य चार गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे -
 
अन्य चार गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे -
*गोविंदस्वामी
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*[[गोविंदस्वामी]]
*नंददास
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*[[नंददास]]
*छीतस्वामी और 
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*[[छीतस्वामी]] और 
*चतुर्भुजदास 
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*[[चतुर्भुजदास]] 
ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे "अष्टसखा" की संज्ञा से जाना जाता है ।
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ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे 'अष्टसखा' की संज्ञा से जाना जाता है।
 
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अष्टछाप के भक्त कवियों में सबसे ज्येष्ठ [[कुम्भनदास]] थे और सबसे कनिष्ठ [[नंददास]] थे। काव्यसौष्ठव की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है तथा द्वितीय स्थान नंददास का है।      सूरदास पुष्टिमार्ग के नायक कहे जाते है। ये वात्सल्य रस एवं श्रृंगार रस के अप्रतिम चितेरे माने जाते है । इनकी महत्वपूर्ण रचना 'सूरसागर' मानी जाती है । नंददास काव्य सौष्ठव एवं भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनकी महत्वपूर्ण रचनाओ में "रासपंचाध्यायी","भवरगीत" एवं "सिन्धांतपंचाध्यायी" है। 
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* अष्टछाप के भक्त कवियों में सबसे ज्येष्ठ कुम्भनदास थे और सबसे कनिष्ठ नंददास थे। 
[[परमानंददास]] के पदों का संग्रह "परमानन्द-सागर" है। [[कृष्णदास]] की रचनायें"भ्रमरगीत" एवं "प्रेमतत्व निरूपण" है। कुम्भनदास के केवल फुटकर पद पाये जाते है। इनका कोई ग्रन्थ नही है। [[छीतस्वामी]] एवं [[गोविंदस्वामी]] का कोई ग्रन्थ नही मिलता ।
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* काव्यसौष्ठव की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है तथा द्वितीय स्थान नंददास का है।       
[[चतुर्भुजदास]] की भाषा प्रांजलता महत्वपूर्ण है। इनकी रचना द्वादश-यश, भक्ति-प्रताप आदि है।
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* सूरदास पुष्टिमार्ग के नायक कहे जाते है। ये वात्सल्य रस एवं श्रृंगार रस के अप्रतिम चितेरे माने जाते है। इनकी महत्वपूर्ण रचना 'सूरसागर' मानी जाती है।
सम्पूर्ण भक्तिकाल में किसी आचार्य द्वारा कवियों गायकों तथा कीर्तनकारों के संगठित मंडल का उल्लेख नही मिलता। अष्टछाप जैसा मंडल
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* नंददास काव्य सौष्ठव एवं भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनकी महत्वपूर्ण रचनाओ में 'रासपंचाध्यायी','भवरगीत' एवं 'सिन्धांतपंचाध्यायी' है। 
आधुनिककाल में भारतेंदु मंडल,रसिकमंडल,मतवाला मंडल,परिमल तथा प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के रूप में उभर कर आए।
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* परमानंद दास के पदों का संग्रह 'परमानन्द-सागर' है। कृष्णदास की रचनायें 'भ्रमरगीत' एवं 'प्रेमतत्व निरूपण' है।  
अष्टछाप के आठों भक्त-कवि समकालीन थे। इनका प्रभाव लगभग ८४ बर्ष तक रहा । ये सभी श्रेष्ठ कलाकार,संगीतज्ञ एवं कीर्तनकार थे । गोस्वामी बिट्ठल नाथ ने इन अष्ट भक्त कवियों पर अपने आशीर्वाद की छाप लगायी , अतः इनका नाम "अष्टछाप" पड़ा।
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* कुम्भनदास के केवल फुटकर पद पाये जाते है। इनका कोई ग्रन्थ नही है। 
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* छीतस्वामी एवं गोविंदस्वामी का कोई ग्रन्थ नही मिलता।
अष्टछाप-कोष्ठक
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* चतुर्भुजदास की भाषा प्रांजलता महत्वपूर्ण है। इनकी रचना द्वादश-यश, भक्ति-प्रताप आदि है।
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* सम्पूर्ण भक्तिकाल में किसी आचार्य द्वारा कवियों, गायकों तथा कीर्तनकारों के संगठित मंडल का उल्लेख नही मिलता। अष्टछाप जैसा मंडल आधुनिक काल में भारतेंदु मंडल, रसिकमंडल, मतवाला मंडल, परिमल तथा प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के रूप में उभर कर आए।
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* अष्टछाप के आठों भक्त-कवि समकालीन थे। इनका प्रभाव लगभग 84 वर्ष तक रहा। ये सभी श्रेष्ठ कलाकार,संगीतज्ञ एवं कीर्तनकार थे।
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* गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने इन अष्ट भक्त कवियों पर अपने आशीर्वाद की छाप लगायी, अतः इनका नाम 'अष्टछाप' पड़ा।
  
यहाँ हम एक ऐसा कोष्ठक दे रहे हैं, जिसमें अष्टछाप के कवियों के नाम, उनके दीक्षा- गुरु, जन्म- संवत उनकी जाति, अष्टछाप की स्थापना के समय उनकी आयु, उनका स्थायी निवास और उनके देहावसान के संवत दिए गए हैं। इस कोष्ठक से ज्ञात होगा कि अष्टछाप में ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र तीन वणाç के व्यक्ति के। उसमें वयोवृद्ध कवियों के साथ युवक कवि भी थे। दो कवि कुंभनदास और चतुर्भुजदास नाते में पिता- पुत्र थे। काव्य- महत्व की दृष्टि से उसमें सर्वोच्च श्रेणी के महाकवि से लेकर साधारण श्रेणी के कवि तक थे।
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==अष्टछाप-कोष्ठक==
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निम्न कोष्ठक में अष्टछाप के कवियों के नाम, उनके दीक्षा- गुरु, जन्म- संवत उनकी जाति, अष्टछाप की स्थापना के समय उनकी आयु, उनका स्थायी निवास और उनके देहावसान के संवत दिए गए हैं। इस कोष्ठक से पता चलता है कि अष्टछाप में ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र तीन वर्णों के व्यक्ति थे। उसमें वयोवृद्ध कवियों के साथ युवक कवि भी थे। दो कवि कुंभनदास और चतुर्भुजदास नाते में पिता- पुत्र थे। काव्य-महत्व की दृष्टि से उसमें सर्वोच्च श्रेणी के महाकवि से लेकर साधारण श्रेणी के कवि तक थे।
  
अष्टछाप का कोष्ठक
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अष्टछाप का कोष्ठक-
         दीक्षा- गुरु   जन्म संवत   जाति   अष्टछाप की स्थापना के समय आयु   स्थायी निवास   देहावसान
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||'''सं0''' || ''' नाम''' || ''' दीक्षा- गुरु ''' || '''जन्म संवत''' || ''' जाति ''' || '''अष्टछाप की स्थापना के समय आयु''' || '''स्थायी निवास''' || ''' देहावसान'''
|  सं.  ||  नाम     ||   दीक्षा- गुरु     ||   जन्म संवत   ||    जाति      ||  अष्टछाप की स्थापना के समय आयु    ||   स्थायी निवास ||   देहावसान
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| 1. |कुंभनदास    || श्रीबल्लाभाचार्य      ||  सं. 1525          || गौरवा क्षत्रिय            ||  77 वर्ष        ||  जमुनावतौ     || सं. 1640
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| 2. || सूरदास      || श्रीबल्लाभाचार्य     || सं. 1535            ||  सारस्व्त ब्राह्मण          ||  67 वर्ष        ||   पारसौली      || सं. 1603
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| 3. || परमानंद दास   || श्रीबल्लाभाचार्य      ||  सं. 1550            ||  कान्यकुब्ज ब्राह्मण        ||  53 वर्ष        ||  सुरभीकुण्ड      || सं. 1641
 
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| || कुंभनदास    ||   श्रीबल्लाभाचार्य   ||   सं. 1525    ||  गौरवा क्षत्रिय    ||   ७७ वर्ष                     || जमुनावतौ     ||   सं. 1640
+
| 4. || कृष्णदास      || श्रीबल्लाभाचार्य     || सं. 1553            ||  कुनवी कायस्थ          || 49 वर्ष         || बिलछूकुण्ड     || सं. 1636
 
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| || सूरदास     ||  श्रीबल्लाभाचार्य    ||  सं.१५३५      ||  सारस्व्त ब्राह्मण   ||   ६७ वर्ष                     ||   परासौली      ||   सं. १६०3
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| 5. || गोविंदस्वामी    || श्री विट्ठलनाथ     ||  सं. 1562            ||  सनाढ्य ब्राह्मण         || 40 वर्ष         || कदमखंडी    || सं. 1642
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| 6. || नंददास      || श्री विट्ठलनाथ     ||  सं. 1570            ||  सनाढ्य ब्राह्मण         || 32 वर्ष           ||  मानसीगंगा    ||  सं. 1640
 
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| 7. || छीतस्वामी     || श्री विट्ठलनाथ     ||  सं. 1573            ||  मथुरिया चौबे           || 29 वर्ष           ||  पूछरी       ||  सं. 1642
 
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| 8. ||  चतुर्भुजदास   || श्री विट्ठलनाथ     || सं. 1575            || गौरवा क्षत्रिय           || 27 वर्ष           ||  जमुनावतौ      || सं. 1642
 
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==सम्बंधित लिंक==
कुंभनदास
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{{कवि}}
श्रीबल्लाभाचार्य
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सं.१५२५
 
गौरवा क्षत्रिय
 
७७ वर्ष
 
जमुनावतौ 
 
सं. १६४०
 
 
सूरदास
 
श्रीबल्लाभाचार्य
 
सं.१५३५
 
सारस्व्त ब्राह्मण
 
६७ वर्ष
 
परासौली
 
सं. १६०
 
 
परमानंददास
 
श्रीबल्लाभाचार्य
 
सं.१५५०
 
कान्यकुब्ज ब्राह्मण
 
५३ वर्ष
 
सुरभीकुंड 
 
सं. १६४१
 
 
कृष्णदास
 
श्रीबल्लाभाचार्य
 
सं.१५५३
 
कुनवी कायस्थ
 
४९ वर्ष
 
बिलछूकुंड
 
सं. १६३६
 
 
गोविंदस्वामी
 
श्री विट्ठलनाथ
 
सं.१५६२
 
सनाढ्य ब्राह्मण
 
४० वर्ष
 
कदमखंडी
 
सं. १६४२
 
 
नंददास 
 
श्री विट्ठलनाथ
 
सं.१५७०
 
सनाढ्य ब्राह्मण
 
३२ वर्ष
 
मानसीगंगा
 
सं. १६४० 
 
 
छीतस्वामी
 
श्री विट्ठलनाथ
 
सं.१५७३
 
मथुरिया चौबे
 
२९ वर्ष
 
पूछरी
 
सं. १६४२
 
 
चतुर्भुजदास
 
श्री विट्ठलनाथ
 
सं.१५७५
 
गौरवा क्षत्रिय
 
२७ वर्ष
 
जमुनावतौ 
 
सं. १६४२
 
संदर्भ :-
 
 
१. संवत १९६० में प्रकाशित डाकोर संस्करण के अनुसार।
 
२. वही।
 
३. सं. १७५२ में लिखित और सिद्धपुर पाटन में प्राप्त "भावनायुक्त' प्रति के अनुसार।
 
४. "रसाल' कृत "हिंदी साहित्य का इतिहास' पृ. ३७४
 
५. अप्रैल सन १९३२ की "हिंदुस्तानी' पत्रिका में प्रकाशित।
 
६. हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. १४०, ३५२
 
७. प्राचीन वार्ता रहस्य, द्वितीय भाग, ""अष्टछाप पर अभिप्राय'' पृ. ३
 
८. गोपाल प्रसाद व्यास, ब्रज विभव, दिल्ली, १९८७ ई. पृ. २९५- ३०५
 
 
 

०५:५१, ८ जुलाई २०१० के समय का अवतरण

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अष्टछाप / Ashtchhap

हिन्दी साहित्य में कृष्णभक्ति काव्य की प्रेरणा देने का श्रेय श्री वल्लभाचार्य (1478 ई.-1530 ई,) को जाता है, जो पुष्टिमार्ग के संस्थापक और प्रवर्तक थे। इनके द्वारा पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर सूरदास आदि आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की थी। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने सं.1602 के लगभग अपने पिता वल्लभ के 84 शिष्यों में से चार और अपने 252 शिष्यों में से चार को लेकर अष्टछाप के प्रसिद्ध भक्त कवियों की मंडली की स्थापना की। इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे-

अन्य चार गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे -

ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे 'अष्टसखा' की संज्ञा से जाना जाता है।


  • अष्टछाप के भक्त कवियों में सबसे ज्येष्ठ कुम्भनदास थे और सबसे कनिष्ठ नंददास थे। 
  • काव्यसौष्ठव की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है तथा द्वितीय स्थान नंददास का है।
  • सूरदास पुष्टिमार्ग के नायक कहे जाते है। ये वात्सल्य रस एवं श्रृंगार रस के अप्रतिम चितेरे माने जाते है। इनकी महत्वपूर्ण रचना 'सूरसागर' मानी जाती है।
  • नंददास काव्य सौष्ठव एवं भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनकी महत्वपूर्ण रचनाओ में 'रासपंचाध्यायी','भवरगीत' एवं 'सिन्धांतपंचाध्यायी' है। 
  • परमानंद दास के पदों का संग्रह 'परमानन्द-सागर' है। कृष्णदास की रचनायें 'भ्रमरगीत' एवं 'प्रेमतत्व निरूपण' है।
  • कुम्भनदास के केवल फुटकर पद पाये जाते है। इनका कोई ग्रन्थ नही है। 
  • छीतस्वामी एवं गोविंदस्वामी का कोई ग्रन्थ नही मिलता।
  • चतुर्भुजदास की भाषा प्रांजलता महत्वपूर्ण है। इनकी रचना द्वादश-यश, भक्ति-प्रताप आदि है।
  • सम्पूर्ण भक्तिकाल में किसी आचार्य द्वारा कवियों, गायकों तथा कीर्तनकारों के संगठित मंडल का उल्लेख नही मिलता। अष्टछाप जैसा मंडल आधुनिक काल में भारतेंदु मंडल, रसिकमंडल, मतवाला मंडल, परिमल तथा प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के रूप में उभर कर आए।
  • अष्टछाप के आठों भक्त-कवि समकालीन थे। इनका प्रभाव लगभग 84 वर्ष तक रहा। ये सभी श्रेष्ठ कलाकार,संगीतज्ञ एवं कीर्तनकार थे।
  • गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने इन अष्ट भक्त कवियों पर अपने आशीर्वाद की छाप लगायी, अतः इनका नाम 'अष्टछाप' पड़ा।

अष्टछाप-कोष्ठक

निम्न कोष्ठक में अष्टछाप के कवियों के नाम, उनके दीक्षा- गुरु, जन्म- संवत उनकी जाति, अष्टछाप की स्थापना के समय उनकी आयु, उनका स्थायी निवास और उनके देहावसान के संवत दिए गए हैं। इस कोष्ठक से पता चलता है कि अष्टछाप में ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र तीन वर्णों के व्यक्ति थे। उसमें वयोवृद्ध कवियों के साथ युवक कवि भी थे। दो कवि कुंभनदास और चतुर्भुजदास नाते में पिता- पुत्र थे। काव्य-महत्व की दृष्टि से उसमें सर्वोच्च श्रेणी के महाकवि से लेकर साधारण श्रेणी के कवि तक थे।

अष्टछाप का कोष्ठक-

सं0 नाम दीक्षा- गुरु जन्म संवत जाति अष्टछाप की स्थापना के समय आयु स्थायी निवास देहावसान
1. कुंभनदास श्रीबल्लाभाचार्य सं. 1525 गौरवा क्षत्रिय 77 वर्ष जमुनावतौ सं. 1640
2. सूरदास श्रीबल्लाभाचार्य सं. 1535 सारस्व्त ब्राह्मण 67 वर्ष पारसौली सं. 1603
3. परमानंद दास श्रीबल्लाभाचार्य सं. 1550 कान्यकुब्ज ब्राह्मण 53 वर्ष सुरभीकुण्ड सं. 1641
4. कृष्णदास श्रीबल्लाभाचार्य सं. 1553 कुनवी कायस्थ 49 वर्ष बिलछूकुण्ड सं. 1636
5. गोविंदस्वामी श्री विट्ठलनाथ सं. 1562 सनाढ्य ब्राह्मण 40 वर्ष कदमखंडी सं. 1642
6. नंददास श्री विट्ठलनाथ सं. 1570 सनाढ्य ब्राह्मण 32 वर्ष मानसीगंगा सं. 1640
7. छीतस्वामी श्री विट्ठलनाथ सं. 1573 मथुरिया चौबे 29 वर्ष पूछरी सं. 1642
8. चतुर्भुजदास श्री विट्ठलनाथ सं. 1575 गौरवा क्षत्रिय 27 वर्ष जमुनावतौ सं. 1642

 

सम्बंधित लिंक

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