आदिम काल (कृष्ण पूर्व काल)

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आदिम काल
आदिम काल (कृष्ण पूर्व काल)
कृष्ण काल

आदिम काल (कृष्ण पूर्व काल)

राजा कुरू के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य कुरूक्षेत्र कहा गया । प्राचीन समय के राजाओं की वंशावली का अध्ययन करने से पता चलता है कि पंचाल राजा सुदास के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा रहा होगा । इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था । अंधक अपने पिता भीम के समान वीर न था । इस युद्ध से ज्ञात होता है कि वह भी सुदास से हार गया था ।

तीर्थकर नेमिनाथ जैन - अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं । जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का मथुरा से संबंध था । जैन धर्म में की प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार, नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव के आदेश से इंद्र ने 52 देशों की रचना की थी । शूरसेन देश और उसकी राजधानी मथुरा भी उन देशों में थी (जिनसेनाचार्य कृत महापुराण- पर्व 16,श्लोक 155) । जैन `हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत के जिन 18 महाराज्यों का उल्लेख हुआ है, उनमें शूरसेन और उसकी राजधानी मथुरा का नाम भी है । जैन मान्यता के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए थे ।

जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का विहार मथुरा में हुआ था । सन्दर्भ त्रुटि: <ref> टैग के लिए समाप्ति </ref> टैग नहीं मिला जिस समय भगवान् बुद्ध मथुरा आये थे,तब उन्होंने आनन्द से कहा था कि यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिये राजा (महासम्मत) चुना था । [१] पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ `अगुत्तर निकाय' में भगवान बुद्ध से पहिले के जिन 16 महाजन- पदों का नामोल्लेख मिलता है, उनमें पहिला नाम `शूरसेन जनपद का है । इस प्रकार बौद्ध धर्म के साहित्य में भी ब्रज की प्रागैतिहासिक परंपरा के उल्लेख प्राप्त होते हैं ।

भारत

भारत के नामकरण के संम्बध में विद्वान एकमत नहीं हैं । मुख्य रुप से राजा दुष्यंत के पुत्र 'भरत' एवं ॠषभदेव के पुत्र 'भरत 'के नाम पर भारत का नामकरण होने का उल्लेख मिलता है । भारत के नामकरण के संबंध में डा प्रभुदयाल मीतल का मत- विविध पुराणों में आदि मनु स्वायंभुव के पुत्र प्रियव्रत के वंशज नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव का उल्लेख हुआ है, जिन्हें विष्णु के चौबीस अवतारों में दशम माना जाता है । उनकी योग-सिद्धि और अवधूत-वृत्ति का विशद वर्णन श्रीमद्भागवत पंचम स्कंध (5) में मिलता है । ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम भरत था । वे बड़े प्रतापी नरेश थे, जिनके नाम पर ही यह देश `भारतवर्ष' कहलाने लगा था । उनसे पहिले यह देश भरत के पूर्वज नाभिराज अथवा अजनाभ के नाम पर `अजनाभवर्ष' कहलाता था । कुछ विद्वान दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर इस देश के नामकरण की बात कहते हैं, किंतु उनका मत ठीक नहीं है । ऋषभदेव का मथुरा से घनिष्ठ संबंध रहा है, जो इसके प्रागैतिहासिक महत्व का परिचायक है ।- डा प्रभुदयाल मीतल

मधुपुर, मधुवन और मधुपुरी

पुराणों में अनेक राजाओं और शासकों के विषय में प्राय: अधूरे वर्णन अवश्य मिलते हैं । यथा उशनस ने एक सौ अश्वमेघ यज्ञ किये । क्रथ-भीम के भाई कौशिक से यादवों के चेदिवंश का प्रारम्भ है । बाद में विदर्भ का शासक भीमरथ हुआ, जिसकी पुत्री दमयंती निषधराज राजा नल को ब्याही गई । यादवों में मधु एक प्रतापी शासक माना जाता है । यह इक्ष्वाकु वंशी राजा दिलीप द्वितीय का अथवा उसके उत्तराधिकारी दीर्घबाहु का समकालीन रहा होगा । मधु के गुजरात से लेकर यमुना तट तक के स्वामी होने का वर्णन है । [२] , प्राय: मधु को `असुर`, दैत्य, दानव आदि कहा गया है । साथ ही यह भी है कि मधु बड़ा धार्मिक एवं न्यायप्रिय शासक था । मधु की स्त्री का नाम कुंभीनसी था, जिससे लवण का जन्म हुआ ।

लवण बड़ा होने पर लोगों को अनेक प्रकार से कष्ट पहुँचाने लगा । लवण को अत्याचारी राजा कहा गया है । इस पर दु:खी होकर कुछ ऋषियों ने अयोध्या जाकर श्री राम से सब बातें बताई और उनसे प्रार्थना की कि लवण के अत्याचारों से लोगों को शीघ्र छुटकारा दिलाया जाय । अन्त में श्रीराम ने शत्रुध्न को मधुपुर जाने की आज्ञा दी । लवण को मार कर शत्रुध्न ने उसके प्रदेश पर अपना अधिकार किया । पुराणों तथा बाल्मीकि रामायण के अनुसार मधु के नाम पर मधुपुर या मधुपुरी नगर यमुना तट पर बसाया गया । [३] इसके आसपास का घना वन `मधुवन` कहलाता था । मधु को लीला नामक असुर का ज्येष्ठ पुत्र लिखा है और उसे बड़ा धर्मात्मा, बुद्धिमान और परोपकारी राजा कहा गया है । मधु ने शिव की तपस्या कर उनसे एक अमोघ त्रिशूल प्राप्त किया ।

निश्चय ही लवण एक शक्तिशाली शासक था । किन्तु श्री कृष्ण दत्त वाजपेयी के मतानुसार 'चन्द्रवंश की 61 वीं पीढ़ी में हुआ उक्त 'मधु' तथा लवण-पिता 'मधु' एक ही थे अथवा नही, यह विवादास्पद है । पुराणों आदि की तालिका में पुर्वोक्त मधु के पिता का नाम देवन तथा पुत्र का नाम पुरूवंश दिया है और इसको अयोध्या नरेश रघु के पूर्ववर्ती दीर्घवाहु का समकालीन दिखाया गया है, न कि राम या दशरथ का । इससे तथा पुराणों के हर्यश्च-मधुमती उपाख्यान' [४] से भासित होता है कि संभवत: यदुवंशी मधु तथा लवण-पिता मधु एक व्यक्ति न थे ।'

मथुरा नगरी

लवण ने अपने राज्य को विस्तृत कर लिया । इस काम में अपने बहनोई हृर्यश्व से मदद ली होगी । लवण ने राज्य की पूर्वी सीमा गंगा नदी तक बढ़ा ली और राम को कहलवाया कि 'मै तुम्हारे राज्य के निकट के ही राज्य का राजा हूँ ।' लवण की चुनौती से स्प्ष्ट था कि लवण की शक्ति बढ़ गई थी । लवण के द्वारा रावण की सराहना तथा राम की निंदा इस बात की सूचक है कि रावण की नीति और कार्य उसे पसंद थे । इससे पता चलता है कि लवण और उसका पिता मधु संभवत: किसी अनार्य शाखा के थे । प्राचीन साहित्य में मधु की नगरी मधुपुरी के वर्णनों से ज्ञात होता है कि उस नगरी का स्थापत्य श्रेष्ठ कोटि का था । शत्रुध्न भी उस मनमोहक नगर को देख कर आर्श्चयचकित हो गये । वैदिक साहित्य में अनार्यौं के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव मकानों के वर्णन मिलते हैं । संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो । यह अधिकार लवण के समय से समाप्त हो गया ।

मधुवन और मधुपुरी के निवासियों या लवण के अनुयायिओं को शत्रुध्न ने समाप्त कर दिया होगा । संभवत: उन्होंने मधुपुरी को नष्ट नहीं किया । उन्होंने जंगल को साफ करवाया तथा प्राचीन मधुपुरी को एक नये ढंग से आबाद कर उसे सुशोभित किया । (प्राचीन पौराणिक उल्लेखों तथा रामायण के वर्णन से यही प्रकट होता है ) रामायण में देवों से वर माँगते हुए शत्रुध्न कहते हैं- `हे देवतागण, मुझे वर दें कि यह सुन्दर मधुपुरी या मथुरा नगरी, जो ऐसी सुशोभित है मानों देवताओं ने स्वयं बनाई हो, शीघ्र बस जाय ।` देवताओं ने `एवमस्तु` कहा और मथुरा नगरी बस गई । बारह वर्ष में इस मथुरा तथा इसके निकटस्थ प्रदेश की काया ही पलट गई । [५]

टीका-टिप्पणी

  1. उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास, पृष्ठ 181
  2. हरिवंश 1,54,22; विष्णु पु0 1, 12, 3 आदि इसका एक कारण यह कहा जा सकता है कि पुराणकारों आदि ने भ्रमवश मधुकैटभ दैत्य और यादव राजा मधु को एक समझ लिया ।
  3. यही नगर बाद में `मधुरा' या `मथुरा' हुआ । वाजपेयी-मथुरा-परिचय (मथुरा, 1950) पृष्ठ 38 ।
  4. मधु ने हृर्यश्व कहा -`तुम्हारा वंश कालांतर में ययाति वाले यदुवंश के साथ घुल-मिल जायेगा । और तुम्हारी संतति चद्रवंश की एक शाखा हो जायेगी` यायातमपि वंशस्ते समेष्यति च याद्वम् । अनुवंश च वंशस्ते सोमस्य भविता किल । । (हरि० 2, 37, 34) इसके बाद हृर्यश्व के द्वारा राज्य-विस्तार तथा उनके द्वारा गिरि पर एक नगर (संभवत: गोवर्द्धन) बसाने का उल्लेख है और शासन की प्रशंसा हैं।
  5. इयं मधुपुरी रम्या मथुरा देवनिर्मिता ।