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[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] के मरने के बाद लाहौर के तुर्क सरदारों ने आरामशाह को 1210 में सुल्तान घोषित कर दिया और आरामशाह ने 'मुज़फ़्फ़्र सुल्तान महमूद शाह' की उपाधि ली और अपने नाम की मुद्राएँ चलायीं। आरामशाह में सुल्तान बनने के गुण नहीं थे। सल्तनत की स्थिति भी संकटग्रस्त थी और आरामशाह के लिए स्थिति को सम्भालना दुष्कर काम था। इस बात पर भी सन्देह किया जाता है कि वह ऐबक का पुत्र था। विद्वानों की धारणा है कि वह ऐबक का पुत्र नहीं था वरन उसका प्रिय व्यक्ति था।
 
[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] के मरने के बाद लाहौर के तुर्क सरदारों ने आरामशाह को 1210 में सुल्तान घोषित कर दिया और आरामशाह ने 'मुज़फ़्फ़्र सुल्तान महमूद शाह' की उपाधि ली और अपने नाम की मुद्राएँ चलायीं। आरामशाह में सुल्तान बनने के गुण नहीं थे। सल्तनत की स्थिति भी संकटग्रस्त थी और आरामशाह के लिए स्थिति को सम्भालना दुष्कर काम था। इस बात पर भी सन्देह किया जाता है कि वह ऐबक का पुत्र था। विद्वानों की धारणा है कि वह ऐबक का पुत्र नहीं था वरन उसका प्रिय व्यक्ति था।
*इस बात का समर्थन इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने लिखा है कि -'लाहौर  के अमीरों ने शांति और सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए आरामशाह को सैंहासन पर बैठा दिया।
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*इस बात का समर्थन इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने लिखा है कि -'लाहौर  के अमीरों ने शांति और सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए आरामशाह को सिंहासन पर बैठा दिया।
 
*अब्दुल्ला वस्साफ ने लिखा है कि कुतुबुद्दीन का कोई पुत्र न था।
 
*अब्दुल्ला वस्साफ ने लिखा है कि कुतुबुद्दीन का कोई पुत्र न था।
*अबुल फजल के मतानुसार आरामशाह कुतुबुद्दीन ऐबक का भाई था।
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*[[अबुल फ़ज़ल]] के मतानुसार आरामशाह कुतुबुद्दीन ऐबक का भाई था।
दिल्ली के अमीरों ने इल्तुतमिश को , जो ऐबक का दामाद और एक योग्य एवम प्रतिभाशाली ग़ुलाम था, दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के लिए आमंत्रित किया।
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[[दिल्ली]] के अमीरों ने इल्तुतमिश को , जो ऐबक का दामाद और एक योग्य एवम प्रतिभाशाली ग़ुलाम था, दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के लिए आमंत्रित किया।
 
इल्तुतमिश ने अपनी सेना के साथ बदायूँ से दिल्ली की ओर कूच कर दिया। नगर के बाहर इल्तुतमिश की आरामशाह के साथ मुठभेड़ हुई। आरामशाह हार गया और क़ैद कर लिया गया। अमीरों ने इल्तुतमिश का स्वागत किया और 1210 में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान  बन गया। आरामशाह की या तो हत्या कर दी गयी या वह कारागार में मारा गया।
 
इल्तुतमिश ने अपनी सेना के साथ बदायूँ से दिल्ली की ओर कूच कर दिया। नगर के बाहर इल्तुतमिश की आरामशाह के साथ मुठभेड़ हुई। आरामशाह हार गया और क़ैद कर लिया गया। अमीरों ने इल्तुतमिश का स्वागत किया और 1210 में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान  बन गया। आरामशाह की या तो हत्या कर दी गयी या वह कारागार में मारा गया।
  
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१३:१८, १६ जनवरी २०११ के समय का अवतरण

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आरामशाह

कुतुबुद्दीन ऐबक के मरने के बाद लाहौर के तुर्क सरदारों ने आरामशाह को 1210 में सुल्तान घोषित कर दिया और आरामशाह ने 'मुज़फ़्फ़्र सुल्तान महमूद शाह' की उपाधि ली और अपने नाम की मुद्राएँ चलायीं। आरामशाह में सुल्तान बनने के गुण नहीं थे। सल्तनत की स्थिति भी संकटग्रस्त थी और आरामशाह के लिए स्थिति को सम्भालना दुष्कर काम था। इस बात पर भी सन्देह किया जाता है कि वह ऐबक का पुत्र था। विद्वानों की धारणा है कि वह ऐबक का पुत्र नहीं था वरन उसका प्रिय व्यक्ति था।

  • इस बात का समर्थन इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने लिखा है कि -'लाहौर के अमीरों ने शांति और सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए आरामशाह को सिंहासन पर बैठा दिया।
  • अब्दुल्ला वस्साफ ने लिखा है कि कुतुबुद्दीन का कोई पुत्र न था।
  • अबुल फ़ज़ल के मतानुसार आरामशाह कुतुबुद्दीन ऐबक का भाई था।

दिल्ली के अमीरों ने इल्तुतमिश को , जो ऐबक का दामाद और एक योग्य एवम प्रतिभाशाली ग़ुलाम था, दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के लिए आमंत्रित किया। इल्तुतमिश ने अपनी सेना के साथ बदायूँ से दिल्ली की ओर कूच कर दिया। नगर के बाहर इल्तुतमिश की आरामशाह के साथ मुठभेड़ हुई। आरामशाह हार गया और क़ैद कर लिया गया। अमीरों ने इल्तुतमिश का स्वागत किया और 1210 में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बन गया। आरामशाह की या तो हत्या कर दी गयी या वह कारागार में मारा गया।