मेघनाद

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मेघनाद / Meghnad

  • इन्द्रजित रावण का बेटा था।
  • इसे मेघनाद के नाम से भी जाना जाता है।
  • उसने राम की सेना से मायावी युद्ध किया था। कभी अंतर्धान हो जाता, कभी प्रकट हो जाता।
  • विभीषण प्रज्ञास्त्र द्वारा उन दोनों को होश में लाया तथा सुग्रीव ने अभिमन्त्रित विशल्या नामक औषधि से उन्हें स्वस्थ किया।
  • विभीषण ने कुबेर की आज्ञा से गुह्यक जल श्वेतपर्वत से लाकर दिया, जिससे नेत्र धोकर अदृश्य को भी देखा जा सकता था। सभी प्रमुख योद्धाओं ने जल का प्रयोग किया तथा इन्द्रजित को मार डाला।
  • जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह मेघ गर्जन के समान जोर से रोया, इसी से उसका नाम मेघनाद रखा गया। [१]
  • रावण के पुत्र मेघनाद को इन्द्रजित भी कहते है, क्योंकि एक बार उसने इन्द्र को परास्त कर दिया था। [२] *कथा निम्न प्रकार है—देवलोक पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से रावण ने देवताओं से युद्ध किया। उस भयानक युद्ध में देवताओं और राक्षसों के अनेक सैनिक मारे गये। अंत में मेघनाद ने अपनी माया से चारों ओर अंधकार फैलाकर इन्द्र को बंदी बना लिया। मेघनाद इन्द्र को लेकर लंकापुरी चला गया। इससे परेशान होकर सब देवता ब्रह्मा को लेकर मेघनाद के पास पहुंचे। ब्रह्मा ने इन्द्र को छोड़ने के लिए कहा और बदले में मेघनाद को वर दिया कि
  1. वह इन्द्रजित कहलायेगा,
  2. उसे अनेक सिद्धियां प्राप्त होंगी
  3. युद्ध से पूर्व यज्ञ करने पर अग्नि से उसके लिए घोड़े सहित रथ निकलेगा, जिन पर बैठा वह अजेय रहेगा किंतु यदि कभी यज्ञ पूरा नहीं हो पाया तो वह युद्ध में मारा जायेगा। ब्रह्मा की प्रेरणा से इन्द्र ने वैष्णव यज्ञ किया, तभी वह देवलोक का अधिपति बनने का अधिकारी हुआ। देवता-गण उसे लेकर देवलोक चले गये। [३]
  • मेघनाद ने निकुंभिला के स्थान पर जाकर अग्निष्टोम, अश्वमेघ आदि सात यज्ञ करके शिव से अनेक वर प्राप्त किये थे। सबसे अंतिम माहेश्वर यज्ञ रह गया था। उन यज्ञों के फलस्वरुप उसे तामसी नामक माया की प्राप्ति हुई थी, जो कभी भी अंधकार फैला सकती थी। साथ ही आकाशगामी दिव्य रथ भी प्राप्त हुआ था।[४]
  • मेघनाद को ब्रह्मा के वरदान से ‘ब्रह्माशिर’ नाम का अस्त्र और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत देवताओं समेत इन्द्र भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था— 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में तुम्हारे यज्ञ समाप्त करने से पूर्व युद्ध करेगा तो तुम मार डाले जाओगे।'[५]
  • सब वीर राक्षसों को नष्टप्राय देखकर रावण ने मेघनाद को युद्ध करने के लिए कहा। मेघनाद ने युद्ध में जाने से पूर्व अग्नि में राक्षसी हवन किया। लाल पगड़ी बांधकर कई हज़ार राक्षसियां इन्द्रजित की रक्षा में व्यस्त हो गयीं। उस यज्ञ में सरपत के स्थान पर शस्त्र बिछाये गये थे। बहेड़े की लकड़ी, लाल वस्त्र और काले लोहे की स्त्रुवा लायी गयी थीं। शरपत्रों से अग्नि प्रज्वलित करके एक जीवित काले बकरे का गला पकड़ा और अग्नि में छोड़ दिया। धूम्ररहित अग्नि ने प्रज्वलित होकर विजय की सूचना दी। सुवर्ण अग्नि ने स्वयं प्रकट होकर दाहिनी ओर बढ़कर इन्द्रजित की दी हुई हवि को स्वीकार किया। हवन समाप्ति के उपरंत देवताओं, दानवों और राक्षसों को तृप्त किया गया।[६]
  • मायावी सीता को मरा जानकर हनुमान की आज्ञा से वानरों ने युद्ध बंद कर दिया। मेघनाद निकुंभिलादेवी के स्थान पर गया। वहां उसने हवन किया। मांस और रुधिर की आहुति से अग्नि प्रज्वलित हो गयी। मेघनाद को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि निकुंभिलादेवी के मंदिर यज्ञ समाप्त करने के उपरांत समस्त देवता एंव इन्द्र भी उसे पराजित न कर पायेंगे— किंतु यदि किसी शत्रु ने यज्ञ में विघ्न डाला तो वह मारा जायेगा। [७]
  • मेघनाद विशाल भयानक वटवृक्ष के पास भूतों को बलि देकर युद्ध में जाता था, इसी से वह अदृश्य होकर युद्ध कर पाता था। [८]
  • विभीषण ने लक्ष्मण और राम को मेघनाद की मायावी शक्ति के साथ यह बताया कि ब्रह्मा ने अनेक वर देते हुए यह भी कहा था कि 'यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में तुम्हारे यज्ञ समाप्त करने से पूर्व युद्ध करेगा तो तुम मार डाले जाओगे।' अतः लक्ष्मण ने मेघनाद के यज्ञ विघ्न डाला। ससैन्य लक्ष्मण को युद्धार्थ आया देखकर मेघनाद को लेकर एक भयानक वट-वृक्ष के पास पहुंचा और बोला कि मेघनाद इसी स्थान पर भूतों को बलि चढ़ाकर जाता है, इसी से वह अदृश्य होकर युद्ध करने में समर्थ रहता है। लक्ष्मण वहां प्रतीक्षा करते रहे। जब मेघनाद आया तो दोनों में युद्ध छिड़ गया। भयंकर युद्ध के बाद लक्ष्मण ने उसके घोड़े और सारथी को मार डाला। मेघनाद लंकापुरी गया तथा दूसरा रथ लेकर फिर युद्ध-कामना के साथ लौटा। दोनों का युद्ध पुनः आरंभ हुआ। अंत में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार डाला। [९]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 12, श्लोक 29-32
  2. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 44, श्लोक 36, सर्ग 45|22
  3. बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 28-29, सर्ग 30, 1-18
  4. बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 25, श्लोक 7-10
  5. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 85, श्लोक 11-15
  6. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 80, श्लोक 1-11
  7. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, 82|24-28|-
    बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 85, श्लोक 11-15
  8. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 87, श्लोक 4-5
  9. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 86 से 91,