उपनिषद

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उपनिषद / Upnishad

वेद का वह भाग जिसमें विशुद्ध रीति से आध्यात्मिक चिन्तन को ही प्रधानता दी गयी है और फल सम्बन्धी कर्मों के दृढानुराग को शिथिल करना सुझाया गया है, 'उपनिषद' कहलाता है। वेद का यह भाग उसकी सभी शाखाओं में है, परंतु यह बात स्पष्ट-रूप से समझ लेनी चाहिये कि वर्तमान में उपनिषद संज्ञा के नाम से जितने ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनमें से कुछ उपनिषदों (ईशावास्य, बृहदारण्यक, तैत्तिरीय, छान्दोग्य आदि)- को छोड़कर बाक़ी के सभी उपनिषद–भाग में उपलब्ध हों, ऐसी बात नहीं है। शाखागत उपनिषदों में से कुछ अंश को सामयिक, सामाजिक या वैयक्तिक आवश्यकता के आधार पर उपनिषद संज्ञा दे दी गयी है। इसीलिए इनकी संख्या एवं उपलब्धियों में विविधता मिलती है। वेदों में जो उपनिषद-भाग हैं, वे अपनी शाखाओं में सर्वथा अक्षुण्ण हैं। उनको तथा उन्हीं शाखाओं के नाम से जो उपनिषद-संज्ञा के ग्रन्थ उपलब्ध हैं, दोनों को एक नहीं समझना चाहिये। उपलब्ध उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद तो सर्वमान्य हैं। इनके अतिरिक्त 5 और उपनिषद (श्वेताश्वतरादि), जिन पर आचार्यों की टीकाएँ तथा प्रमाण-उद्धरण आदि मिलते हैं, सर्वसम्मत कहे जाते हैं। इन 15 के अतिरिक्त जो उपनिषद उपलब्ध हैं, उनकी शब्दगत ओजस्विता तथा प्रतिपादनशैली आदि की विभिन्नता होने पर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि इनका प्रतिपाद्य ब्रह्म या आत्मतत्त्व निश्चयपूर्वक अपौरूषेय, नित्य, स्वत:प्रमाण वेद-शब्द-राशि से सम्बद्ध है।

उपनिषद परिचय

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भारतीय-संस्कृति की प्राचीनतम एवं अनुपम धरोहर के रूप में वेदों का नाम आता है। 'ॠग्वेद' विश्व-साहित्य की प्राचीनतम पुस्तक है। मनीषियों ने 'वेद' को ईश्वरीय 'बोध' अथवा 'ज्ञान' के रूप में पहचाना है। विद्वानों ने उपनिषदों को वेदों का अन्तिम भाष्य 'वेदान्त' का नाम दिया है। इससे पूर्व वेदों के लिए 'संहिता' 'ब्राह्मण' और 'आरण्यक' नाम भी प्रयुक्त किये जाते हैं। उपनिषद ब्रह्मज्ञान के ग्रन्थ हैं।

परिभाषा

  • उपनिषद शब्द 'उप' और 'ति' उपसर्ग तथा 'सद' धातु के संयोग से बना है। 'सद' धातु का प्रयोग 'गति',अर्थात गमन,ज्ञान और प्राप्त के सन्दर्भ में होता है। इसका अर्थ यह है कि जिस विद्या से परब्रह्म, अर्थात ईश्वर का सामीप्य प्राप्त हो, उसके साथ तादात्म्य स्थापित हो,वह विद्या 'उपनिषद' कहलाती है।
  • उपनिषद में 'सद' धातु के तीन अर्थ और भी हैं - विनाश, गति, अर्थात ज्ञान -प्राप्ति और शिथिल करना। इस प्रकार उपनिषद का अर्थ हुआ-'जो ज्ञान पाप का नाश करे, सच्चा ज्ञान प्राप्त कराये, आत्मा के रहस्य को समझाये तथा अज्ञान को शिथिल करे, वह उपनिषद है।'
  • अष्टाध्यायी<balloon title="अष्टाध्यायी 1/4/79" style=color:blue>*</balloon> में उपनिषद शब्द को परोक्ष या रहस्य के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध के गुप्त संकेतों की चर्चा में 'औपनिषद' शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे यह भाव प्रकट होता है कि उपनिषद का तात्पर्य रहस्यमय ज्ञान से है।
  • अमरकोष उपनिषद के विषय में कहा गया है-उपनिषद शब्द धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए प्रयुक्त होता है।<balloon title="'धर्मे रहस्युपनिषत् स्यात्'अमरकोष 3/99" style=color:blue>*</balloon>

उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति

विद्वानों ने 'उपनिषद' शब्द की व्युत्पत्ति 'उप'+'नि'+'सद' के रूप में मानी है। इनका अर्थ यही है कि जो ज्ञान व्यवधान-रहित होकर निकट आये, जो ज्ञान विशिष्ट और सम्पूर्ण हो तथा जो ज्ञान सच्चा हो, वह निश्चित रूप से उपनिषद ज्ञान कहलाता है। मूल भाव यही है कि जिस ज्ञान के द्वारा 'ब्रह्म' से साक्षात्कार किया जा सके, वही 'उपनिषद' है। इसे अध्यात्म-विद्या भी कहा जाता है।

प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

  • स्वामी विवेकानन्द—'मैं उपनिषदों को पढ़ता हूँ, तो मेरे आंसू बहने लगते है। यह कितना महान ज्ञान है? हमारे लिए यह आवश्यक है कि उपनिषदों में सन्निहित तेजस्विता को अपने जीवन में विशेष रूप से धारण करें। हमें शक्ति चाहिए। शक्ति के बिना काम नहीं चलेगा। यह शक्ति कहां से प्राप्त हो? उपनिषदें ही शक्ति की खानें हैं। उनमें ऐसी शक्ति भरी पड़ी है, जो सम्पूर्ण विश्व को बल, शौर्य एवं नवजीवन प्रदान कर सकें। उपनिषदें किसी भी देश, जाति, मत व सम्प्रदाय का भेद किये बिना हर दीन, दुर्बल, दुखी और दलित प्राणी को पुकार-पुकार कर कहती हैं- उठो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और बन्धनों को काट डालो। शारीरिक स्वाधीनता, मानसिक स्वाधीनता, अध्यात्मिक स्वाधीनता- यही उपनिषदों का मूल मन्त्र है।'
  • कवि रविन्द्रनाथ टैगोर–'चक्षु-सम्पन्न व्यक्ति देखेगें कि भारत का ब्रह्मज्ञान समस्त पृथिवी का धर्म बनने लगा है। प्रातः कालीन सूर्य की अरुणिम किरणों से पूर्व दिशा आलोकित होने लगी है। परन्तु जब वह सूर्य मध्याह्र गगन में प्रकाशित होगा, तब उस समय उसकी दीप्ति से समग्र भू-मण्डल दीप्तिमय हो उठेगा।'
  • डा॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन–'उपनिषदों को जो भी मूल संस्कृत में पढ़ता है, वह मानव आत्मा और परम सत्य के गुह्य और पवित्र सम्बन्धों को उजागर करने वाले उनके बहुत से उद्गारों के उत्कर्ष, काव्य और प्रबल सम्मोहन से मुग्ध हो जाता है और उसमें बहने लगता है।'
  • सन्त विनोवा भावे— 'उपनिषदों की महिमा अनेकों ने गायी है। हिमालय जैसा पर्वत और उपनिषदों- जैसी कोई पुस्तक नहीं है, परन्तु उपनिषद कोई साधारण पुस्तक नहीं है, वह एक दर्शन है। यद्यपि उस दर्शन को शब्दों में अंकित करने का प्रयत्न किया गया है, तथापि शब्दों के क़दम लड़खड़ा गये हैं। केवल निष्ठा के चिन्ह उभरे है। उस निष्ठा के शब्दों की सहायता से ह्रदय में भरकर, शब्दों को दूर हटाकर अनुभव किया जाये, तभी उपनिषदों का बोध हो सकता है। मेरे जीवन में 'गीता' ने 'मां का स्थान लिया है। वह स्थान तो उसी का है। लेकिन मैं जानता हूं कि उपनिषद मेरी मां की भी है। उसी श्रद्धा से मेरा उपनिषदों का मनन, निदिध्यासन पिछले बत्तीस वर्षों से चल रहा है।<balloon title="उपनिषद – एक अध्ययन" style=color:blue>*</balloon>'
  • गोविन्दबल्लभ –'उपनिषद सनातन दार्शनिक ज्ञान के मूल स्त्रोत है। वे केवल प्रखरतम बुद्धि का ही परिणाम नहीं है, अपितु प्राचीन ॠषियों की अनुभूतियों के फल हैं।'

भारतीय मनीषियों द्वारा जितने भी दर्शनों का उल्लेख मिलता है, उन सभी में वैदिक मन्त्रों में निहित ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ है। सांख्य तथा वेदान्त (उपनिषद) में ही नहीं, जैन और बौद्ध-दर्शनों में भी इसे देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति से उपनिषदों का अविच्छिन्न सम्बन्ध है। इनके अध्ययन से भारतीय संस्कृति के अध्यात्मिक स्वरूप का सच्चा ज्ञान हमें प्राप्त होता है।

पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

केवल भारतीय जिज्ञासुओं की ध्यान ही उपनिषदों की ओर नहीं गया है, अनेक पाश्चात्य विद्वानों को भी उपनिषदों को पढ़ने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ है। तभी वे इन उपनिषदों में छिपे ज्ञान के उदात्त स्वरूप से प्रभावित हुए है। इन उपनिषदों की समुन्नत विचारधारा, उदात्त चिन्तन, धार्मिक अनुभूति तथा अध्यात्मिक जगत की रहस्यमयी गूढ़ अभिव्य्क्तियों से वे चमत्कृत होते रहे हैं और मुक्त कण्ठ से इनकी प्रशंसा करते आये हैं।

  • अरबदेशीय विद्वान अलबरुनी—'उपनिषदों की सार-स्वरूपा 'गीता' भारतीय ज्ञान की महानता रचना है।'
  • दारा शिकोह— 'मैने क़ुरान, तौरेत, इञ्जील, जुबर आदि ग्रन्थ पढ़े। उनमें ईश्वर सम्बन्धी जो वर्णन है, उनसे मन की प्यास नहीं बुझी। तब हिन्दुओं की ईश्वरीय पुस्तकें पढ़ीं। इनमें से उपनिषदों का ज्ञान ऐसा है, जिससे आत्मा को शाश्वत शान्ति तथा आनन्द की प्राप्ति होती है। हज़रत नबी ने भी एक आयत में इन्हीं प्राचीन रहस्यमय पुस्तकों के सम्बन्ध में संकेत किया है।<balloon title="फारसी उपनिषद अनुवाद" style=color:blue>*</balloon>'
  • जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेन हॉवर— 'मेरा दार्शनिक मत उपनिषदों के मूल तत्त्वों के द्वारा विशेष रूप से प्रभावित है। मैं समझता हूं कि उपनिषदों के द्वारा वैदिक-साहित्य के साथ परिचय होना, वर्तमान शताब्दी का सनसे बड़ा लाभ है, जो इससे पहले किसी भी शताब्दी को प्राप्त नहीं हुआ। मुझे आशा है कि चौदहवीं शताब्दी में ग्रीक-साहित्य के पुनर्जागरण से यूरोपीय-साहित्य की जो उन्नति हुई थी, उसमें संस्कृत-साहित्य का प्रभाव, उसकी अपेक्षा कम फल देने वाला नहीं था। यदि पाठक प्राचीन भारतीय ज्ञान में दीक्षित हो सकें और गम्भीर उदारता के साथ उसे ग्रहण कर सकें, तो मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूं, उसे वे अच्छी तरह से समझ सकेंगे उपनिषदों में सर्वत्र कितनी सुन्दरता के साथ वेदों के भाव प्रकाशित हैं। जो कोई भी उपनिषदों के फ़ारसी, लैटिन अनुवाद का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगा, वह उपनिषदों की अनुपम भाव-धारा से निश्चित रूप से परिचित होगा। उसकी एक-एक पंक्ति कितनी सुदृढ़, सुनिर्दिष्ट और सुसमञ्जस अर्थ प्रकट करती है, इसे देखकर आंखें खुली रह जाती है। प्रत्येक वाक्य से अत्यन्त गम्भीर भावों का समूह और विचारों का आवेग प्रकट होता चला जाता है। सम्पूर्ण ग्रन्थ अत्यन्त उच्च, पवित्र और एकान्तिक अनुभूतियों से ओतप्रोत हैं। सम्पूर्ण भू-मण्डल पर मूल उपनिषदों के समान इतना अधिक फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कही नहीं हैं। इन्होंने मुझे जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरते समय भी यह मुझे शान्ति प्रदान करेंगे।'
  • शोपेन हॉवर ने आगे भी कहा— 'भारत में हमारे धर्म की जड़े कभी नहीं गड़ेंगी। मानव-जाति की ‘पौराणिक प्रज्ञा’ गैलीलियो की घटनाओं से कभी निराकृत नहीं होगी, वरन भारतीय ज्ञान की धारा यूरोप में प्रवाहित होगी तथा हमारे ज्ञान और विचारों में आमूल परिवर्तन ला देगी। उपनिषदों के प्रत्येक वाक्य से गहन मौलिक और उदात्त विचार प्रस्फुटित होते हैं और सभी कुछ एक विचित्र, उच्च, पवित्र और एकाग्र भावना से अनुप्राणित हो जाता है। समस्त संसार में उपनिषदों-जैसा कल्याणकारी व आत्मा को उन्नत करने वाला कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है। ये सर्वोच्च प्रतिभा के पुष्प हैं। देर-सवेर ये लोगों की आस्था के आधार बनकर रहेंगे।' शोपेन हॉवर के उपरान्त अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने उपनिषदों पर गहन विचार किया और उनकी महिमा को गाया।
  • इमर्सन— 'पाश्चात्य विचार निश्चय ही वेदान्त के द्वारा अनुप्राणित हैं।'
  • मैक्समूलर— 'मृत्यु के भय से बचने, मृत्यु के लिए पूरी तैयारी करने और सत्य को जानने के इच्छुक जिज्ञासुओं के लिए, उपनिषदों के अतिरिक्त कोई अन्य-मार्ग मेरी दृष्टि में नहीं है। उपनिषदों के ज्ञान से मुझे अपने जीवन के उत्कर्ष में भारी सहायता मिली है। मै उनका ॠणी हूं। ये उपनिषदें, आत्मिक उन्नति के लिए विश्व के समस्त धार्मिक साहित्य में अत्यन्त सम्मानीय रहे हैं और आगे भी सदा रहेंगे। यह ज्ञान, महान, मनीषियों की महान प्रज्ञा का परिणाम है। एक-न-एक दिन भारत का यह श्रेष्ठ ज्ञान यूरोप में प्रकाशित होगा और तब हमारे ज्ञान एवं विचारों में महान परिवर्तन उपस्थित होगा।'
  • प्रो॰ ह्यूम— 'सुकरात, अरस्तु, अफ़लातून आदि कितने ही दार्शनिक के ग्रन्थ मैंने ध्यानपूर्वक पढ़े है, परन्तु जैसी शान्तिमयी आत्मविद्या मैंने उपनिषदों में पायी, वैसी और कहीं देखने को नहीं मिली।<balloon title="Dogmas of Budhism" style=color:blue>*</balloon>'
  • प्रो॰ जी॰ आर्क— 'मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक गुत्थियां किस प्रकार सुलझ सकती है, इसका ज्ञान उपनिषदों से ही मिल सकता है। यह शिक्षा इतनी सत्य, शिव और सुन्दर है कि अन्तरात्मा की गहराई तक उसका प्रवेश हो जाता है। जब मनुष्य सांसरिक दुःखो और चिन्ताओं से घिरा हो, तो उसे शान्ति और सहारा देने के अमोघ साधन के रूप में उपनिषद ही सहायक हो सक्ते है।<balloon title="Is God Knowable" style=color:blue>*</balloon>'
  • पॉल डायसन— 'वेदान्त (उपनिषद-दर्शन) अपने अविकृत रूप में शुद्ध नैतिकता का सशक्ततम आधार है। जीवन और मृत्यु कि पीड़ाओं में सबसे बड़ी सान्तवना है।‘
  • डा॰ एनीबेसेंट— ‘भारतीय उपनिषद ज्ञान मानव चेतना की सर्वोच्च देन है।'
  • बेबर— 'भारतीय उपनिषद ईश्वरीय ज्ञान के महानतम ग्रन्थ हैं। इनसे सच्ची आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है। विश्व-साहित्य की ये अमूल्य धरोहर है।<balloon title="इण्डिशे स्टूडियन" style=color:blue>*</balloon>'

उपनिषदों के स्त्रोत और उनकी संख्या

प्रायः उपनिषद वेदों के मन्त्र भाग, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ आदि से सम्बन्धित हैं। कतिपय उत्तर वैदिककाल के ॠषियों द्वारा अस्तित्व में आये हैं, जिनका स्वतन्त्र अस्तित्व है।

  • ‘मुक्तिकोपनिषद’ में,(श्लोक संख्या 30 से 39 तक) 108 उपनिषदों की सूची दी गयी है। इन 108 उपनिषदों में से—
  1. ‘ॠग्वेद’ के 10 उपनिषद है।
  2. ‘शुक्ल यजुर्वेद‘ के 19 उपनिषद हैं।
  3. ‘कृष्ण यजुर्वेद’ के 32 उपनिषद हैं।
  4. ‘सामवेद’ के 16 उपनिषद हैं।
  5. ‘अथर्ववेद’ के 31 उपनिषद हैं।

‘मुक्तिकोपनिषद’ में चारों वेदों की शाखाओं की संख्या भी दी है और प्रत्येक शाखा का एक-एक उपनिषद होना बताया है। इस प्रकार चारों वेदों की अनेक शाखाएं है और उन शाखाओं की उपनिषदें भी अनेक हैं। विद्वानों ने ॠग्वेद की इक्कीस शाखाएं, यजुर्वेद की एक सौ नौ शाखाएं, सामवेद की एक हज़ार शाखाएं तथा अथर्ववेद की पचास हज़ार शाखाओं का उल्लेख किया हैं। इस दृष्टि से तो सभी वेदों की शाखाओं के अनुसार 1,180 उपनिषदें होनी चाहिए, परन्तु प्रायः 108 उपनिषदों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें भी कुछ उपनिषद तो अत्यन्त लघु हैं।

उपनिषदों का रचनाकाल

उपनिषदों के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। कुछ उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश माना गया है। ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। कुछ उपनिषद ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ ग्रन्थों के अंश स्वीकार किये गये हैं। इनका रचनाकाल संहिताओं के बाद का है। कुछ उपनिषद स्वतन्त्र रूप से रचे गये हैं। वे सभी बाद में लिखे गये हैं। उपनिषदों के काल-निर्णय के लिए मन्त्रों को आधार माना गया है। उनमें—

  1. भौगोलिक परिस्थितियां
  2. सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाओं या ॠषियों के नाम और
  3. खगोलीय योगों के विवरण आदि प्राप्त होते हैं। उनके द्वारा उपनिषदों के रचनाकाल की सम्भावना अभिव्यक्त की जाती है, परन्तु इनसे रचनात्मक का सटीक निरूपण नहीं हो पाता; क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियों में जिन नदियों आदि के नाम गिनाये जाते हैं, उनके उद्भव का काल ही निश्चित्त नहीं है। इसी प्रकार राजाओं और ॠषियों के एक-जैसे कितने ही नाम बार-बार ग्रन्थों में प्रयोग किये जाते हैं। वे कब और किस युग में हुए, इसका सही आकलन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। जहां तक खगोलीय योगों के वर्णन का प्रश्न है, उसे भी कुछ सीमा तक ही सुनिश्चित माना जा सकता है।

उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय

उपनिषदों के रचियता ॠषि-मुनियों ने अपनी अनुभुतियों के सत्य से जन-कल्याण की भावना को सर्वोपरि महत्त्व दिया है। उनका रचना-कौशल अत्यन्त सहज और सरल है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि इन ॠषियों ने कैसे इतने गूढ़ विषय को, इसके विविधापूर्ण तथ्यों को, अत्यन्त थोड़े शब्दों में तथा एक अत्यन्त सहज और सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है। भारतीय दर्शन की ऐसी कोई धारा नहीं है, जिसका सार तत्त्व इन उपनिषदों में विद्यमान न हो। सत्य की खोज अथवा ब्रह्म की पहचान इन उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है। जन्म और मृत्यु से पहले और बाद में हम कहां थे और कहां जायेंगे, इस सम्पूर्ण सृष्टि का नियन्ता कौन है, यह चराचर जगत किसकी इच्छा से परिचालित हो रहा है तथा हमारा उसके साथ क्या सम्बन्ध है— इन सभी जिज्ञासाओं का शमन उपनिषदों के द्वारा ही सम्भव हो सका है।

उपनिषदों की भाषा-शैली

  • उपनिषदों की भाषा देववाणी संस्कृत है। इस देवभाषा के साथ भावों का बड़ी सहजता के साथ सामञ्जस्य हुआ है। ॠषियों की सहज और गहन अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने में इस भाषा ने गागर में सागर भरने-जैसा कार्य किया है। उन ॠषियों ने अपने भाषा-ज्ञान को क्लिष्ट, आडम्बरपूर्ण अरु गूढ़ बनाकर अध्येताओं पर थोपने का किञ्जित भी प्रयास नहीं किया है। उन्होंने अपने अनुभवजन्य ज्ञान को अत्यन्त सहज रूप से, तर्कसम्मत, समीक्षात्मक, कथोपकथन, उदाहरण और समयानुकूल उपयोग करते हुए, अपने भावों को सहज ही बोधगम्य बनाने का उन्होंने प्रयास किया है।
  • उपनिषदों की शैली अद्भुत है। यद्यपि उन्होंने गूढ़ रहस्यों को समझने की तीव्र उत्कण्ठा और अनुभूति की गहन क्षमता को अभिव्यक्त करने में सहजता का सहारा लिया है, तथापि स्थान-स्थान पर सांकेतिक रहस्यात्मकता से पीछा छुड़ाने में वे विवश दिखाई पड़ते है। इसके अनेक कारण हो सकते है। अत्यन्त गूढ़ ज्ञान को सुगम बनाने में भाषा साथ छोड़ जाती है। गूंगे के गुड़ की भांति उनका रसास्वादन ‘संकेत’ तो देता है, पर शब्दों के चयन में वे विवश हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त अध्येता की अपनी भी बुद्धि-सीमा होती है जो उसे ग्रहण करने में सहायक नहीं हो पाती।

उपनिषदों का महत्व

  • उपनिषदों में ॠषियों ने अपने जीवन-पर्यन्त अनुभवों का निचोड़ डाला है। इसी कारण विश्व साहित्य में उपनिषदों का महत्व सर्वोपरि स्वीकार किया गया है।
  • जीवन के सभी विचार और चिन्तन बेमानी सिद्ध हो सकते हैं, किन्तु जीव और परमात्मा के मिलन के लिए किया गया अध्यात्मिक चिब्तब कभी बेमानी नहीं हो सकता। वह शाश्वत है, सनातन है और जीवन के महानतम लक्ष्य पर पहुंचाने वाला सारथि है। जिस प्रकार महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन के लिए सारथि का कार्य सम्पन्न किया था, उसी प्रकार जन-जन के लिए उपनिषदों ने यह महान का कार्य सम्पन्न किया है। वह आलोक है, जो समस्त मानवता के अज्ञानपूर्ण अन्धकार को दूर करने के लिए ॠषियों द्वारा अवतरित कराया गया है। इसीलिए उपनिषदों का महत्व, सर्व-कल्याण का श्रेष्ठतम प्रतीक है।


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