उर्वशी

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उर्वशी / Urvashi

कालिदास ने पुरूरवा और उर्वशी का वैदिक और उत्तर वैदिक वर्णन किया है । कालीदास के नाटक में उर्वशी एक कोमलांगी सुकुमार सुन्दरी है । सुरलोक की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी उर्वशी को इन्द्र बहुत चाहते थे । एक दिन जब चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई । अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, "हे अर्जुन ! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें । " उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, "हे देवि ! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं । देवि ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ । " अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, " तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे । " इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई । जब इन्द्र को इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तो वे अर्जुन से बोले, " वत्स ! तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था । उर्वशी का यह शाप भी भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा । अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्व की प्राप्ति हो जायेगी । "