ऋद्धि सिद्धि

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ऋद्धि सिद्धि / Riddhi Siddhi

ऋद्धि सिद्धि गणेश जी की पत्नियाँ हैं। गणेश की पूजा यदि विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है। प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-ऋद्धि नामक दो कन्याएँ हैं जो गणेश जी की पत्नियाँ हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के शोभासम्पन्न दो पुत्र हुए।

पौराणिक उल्लेख

  • शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्री गणेश की दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि व पुत्र लाभ व क्षेम बताए गए हैं। जिनको लोक पंरपराओं में शुभ-लाभ भी कहा जाता है।
  • जहां भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं तो उनकी पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाने वाली होती है।
  • वहीं शुभ-लाभ हर सुख-सौभाग्य देने के साथ उसे स्थायी और सुरक्षित रखते हैं।
  • शास्त्रों में ऐसे ही सुख-सौभाग्य की चाहत पूरी करने के लिए बुधवारचतुर्थी को गणेश पूजन में श्री गणेश के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम का विशेष मंत्रों से स्मरण व पूजा बहुत ही शुभ माना गया है।
श्री गणेश सहित पांच विशेष मंत्र व पूजा की सरल विधि -
  • बुधवार को स्नान के बाद ऋद्धि-सिद्धि सहित भगवान गणेश की मूर्ति को जल स्नान के बाद उनके आस-पास लाभ-क्षेम स्वरूप दो स्वस्तिक बनाएं।
  • श्री गणेश व परिवार की केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर पूजा करें। इसके बाद नीचे लिखे अलग-अलग मंत्र बोलकर श्री गणेश व उनके परिवार को फूल चढ़ाकर शुभ व मंगल कामनाएं करें -
श्री गणेश –

ॐ गं गणपतये नम:।

ऋद्धि –

ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:।

सिद्धि –

ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:।

लाभ –

ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:।

शुभ –

ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:।

  • पूजा व मंत्र स्मरण के बाद मोदक का भोग लगाएं। इसके बाद धूप व घी के दीप जलाकर गणेश आरती करें, प्रसाद बांटे व ग्रहण करें।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लिंक

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