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− | + | *इनमें प्रथम तीर्थंकर ॠषभदेव हैं। | |
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*[[जैन|जैन]] साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है। | *[[जैन|जैन]] साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है। | ||
− | *युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें ‘प्रजापति’ <ref>आचार्य समन्तभद्र, स्वयम्भुस्तोत्र, श्लोक 2|</ref>, माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’ <ref>जिनसेन, महापुराण, 12-95</ref>, विमलसूरि-<ref>पउमचरियं, 3-68|</ref>, दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’ <ref>आ॰ समन्तभद्र, स्वयम्भू स्तोत्र, श्लोक 5|</ref>, शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ <ref>मदनकीर्ति, शासनचतुस्त्रिंशिका, श्लोक 6, संपा॰ डॉ॰ दरबारी लाल कोठिया।</ref>एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ <ref>मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |</ref> और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ <ref>मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |</ref>कहा गया है। | + | *युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें ‘प्रजापति’ <ref>आचार्य [[समन्तभद्र]], स्वयम्भुस्तोत्र, श्लोक 2|</ref>, माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’ <ref>जिनसेन, महापुराण, 12-95</ref>, विमलसूरि-<ref>पउमचरियं, 3-68|</ref>, दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’ <ref>आ॰ समन्तभद्र, स्वयम्भू स्तोत्र, श्लोक 5|</ref>, शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ <ref>मदनकीर्ति, शासनचतुस्त्रिंशिका, श्लोक 6, संपा॰ डॉ॰ दरबारी लाल कोठिया।</ref>एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ <ref>मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |</ref> और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ <ref>मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |</ref>कहा गया है। |
− | *इनके पिता का नाम नाभिराय होने से इन्हें ‘नाभिसूनु’ भी कहा गया है। | + | *इनके पिता का नाम नाभिराय होने से इन्हें ‘नाभिसूनु’ भी कहा गया है। |
*इनकी माता का नाम मरुदेवी था। | *इनकी माता का नाम मरुदेवी था। | ||
*ये आसमुद्रान्त सारे भारत (वसुधा) के अधिपति थे- पृथ्वी का अन्य शासक कोई शासक नहीं था। अन्त में विरक्त होकर व समग्र राजपाट को छोड़कर दीक्षापूर्वक दिगम्बर साधु हो गये थे। | *ये आसमुद्रान्त सारे भारत (वसुधा) के अधिपति थे- पृथ्वी का अन्य शासक कोई शासक नहीं था। अन्त में विरक्त होकर व समग्र राजपाट को छोड़कर दीक्षापूर्वक दिगम्बर साधु हो गये थे। | ||
− | *मोक्षमार्ग का प्रथम उपदेश देने से आद्य | + | *मोक्षमार्ग का प्रथम उपदेश देने से आद्य तीर्थंकर ( धर्मोपदेष्टा) के रूप में समग्र जैन साहित्य में मान्य हैं। |
*भरत इनके ज्येष्ठ पुत्र थे, जो उनके राज्य के उत्तराधिकारी तो हुए ही, प्रथम सम्राट भी थे और जिनके नाम पर हमारे राष्ट्र का नाम ‘भारत’ पड़ा। | *भरत इनके ज्येष्ठ पुत्र थे, जो उनके राज्य के उत्तराधिकारी तो हुए ही, प्रथम सम्राट भी थे और जिनके नाम पर हमारे राष्ट्र का नाम ‘भारत’ पड़ा। | ||
*[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]] <ref>(श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्द-5 अध्याय-4)</ref> में कहा गया है ‘भगवान ॠषभदेव के अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में सौ पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सहयोगी ‘ भरत’ को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोक इसे ‘भारतवर्ष’ कहने लगे। <ref>‘येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति।‘</ref>इसके पूर्व अपने इस भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर ‘ अजनाभवर्ष’ प्रसिद्ध था। | *[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]] <ref>(श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्द-5 अध्याय-4)</ref> में कहा गया है ‘भगवान ॠषभदेव के अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में सौ पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सहयोगी ‘ भरत’ को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोक इसे ‘भारतवर्ष’ कहने लगे। <ref>‘येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति।‘</ref>इसके पूर्व अपने इस भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर ‘ अजनाभवर्ष’ प्रसिद्ध था। | ||
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*[[ॠग्वेद|ॠग्वेद]] आदि प्राचीन वैदिक साहित्य में भी इनका आदर के साथ संस्तवन किया गया है। | *[[ॠग्वेद|ॠग्वेद]] आदि प्राचीन वैदिक साहित्य में भी इनका आदर के साथ संस्तवन किया गया है। | ||
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+ | चित्र:Thirthankara-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-1.jpg|तीर्थंकर ऋषभनाथ<br /> Tirthankara Rishabhanath | ||
+ | चित्र:Tirthankara-Rishabhanath-Mathura-Museum-34.jpg|तीर्थंकर ऋषभनाथ<br /> Tirthankara Rishabhanath | ||
+ | चित्र:Torso-Of-Tirthankara-Rishabhanatha-Mathura-Museum-31.jpg|तीर्थंकर ऋषभनाथ का धड़<br /> Tirthankara Rishabhanath | ||
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१२:०७, १६ सितम्बर २०११ के समय का अवतरण
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ॠषभनाथ तीर्थंकर / Rishabhnath Tirthankar
- इनमें प्रथम तीर्थंकर ॠषभदेव हैं।
- जैन साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।
- युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें ‘प्रजापति’ [१], माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’ [२], विमलसूरि-[३], दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’ [४], शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ [५]एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ [६] और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ [७]कहा गया है।
- इनके पिता का नाम नाभिराय होने से इन्हें ‘नाभिसूनु’ भी कहा गया है।
- इनकी माता का नाम मरुदेवी था।
- ये आसमुद्रान्त सारे भारत (वसुधा) के अधिपति थे- पृथ्वी का अन्य शासक कोई शासक नहीं था। अन्त में विरक्त होकर व समग्र राजपाट को छोड़कर दीक्षापूर्वक दिगम्बर साधु हो गये थे।
- मोक्षमार्ग का प्रथम उपदेश देने से आद्य तीर्थंकर ( धर्मोपदेष्टा) के रूप में समग्र जैन साहित्य में मान्य हैं।
- भरत इनके ज्येष्ठ पुत्र थे, जो उनके राज्य के उत्तराधिकारी तो हुए ही, प्रथम सम्राट भी थे और जिनके नाम पर हमारे राष्ट्र का नाम ‘भारत’ पड़ा।
- श्रीमद्भागवत पुराण [८] में कहा गया है ‘भगवान ॠषभदेव के अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में सौ पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सहयोगी ‘ भरत’ को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोक इसे ‘भारतवर्ष’ कहने लगे। [९]इसके पूर्व अपने इस भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर ‘ अजनाभवर्ष’ प्रसिद्ध था।
- वैदिक धर्म में भी ॠषभदेव को एक अवतार के रूप में माना गया है।
- ‘भागवत’ में ‘अर्हन्’ राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। इसमें भरत आदि 100 पुत्रों का कथन जैन धर्म की तरह ही किया गया है।
- अन्त में वे दिगम्बर (नग्न) साधु होकर सारे भारत में विहार करने का भी उल्लेख किया गया है।
- ॠग्वेद आदि प्राचीन वैदिक साहित्य में भी इनका आदर के साथ संस्तवन किया गया है।
वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आचार्य समन्तभद्र, स्वयम्भुस्तोत्र, श्लोक 2|
- ↑ जिनसेन, महापुराण, 12-95
- ↑ पउमचरियं, 3-68|
- ↑ आ॰ समन्तभद्र, स्वयम्भू स्तोत्र, श्लोक 5|
- ↑ मदनकीर्ति, शासनचतुस्त्रिंशिका, श्लोक 6, संपा॰ डॉ॰ दरबारी लाल कोठिया।
- ↑ मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |
- ↑ मानतुङ्ग, भक्तामर आदिनाथ स्तोत्र, श्लोक 1, 25 |
- ↑ (श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्द-5 अध्याय-4)
- ↑ ‘येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति।‘
सम्बंधित लिंक
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