"कंकाली टीला" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति ६: पंक्ति ६:
 
====<u>इतिहास</u>====
 
====<u>इतिहास</u>====
 
[[काली]] के विकराल रूप जिसे कंकाली कहा जाता है, के नाम पर यह टीला है। लोककथा के अनुसार [[कंकाली देवी मन्दिर|कंकाली देवी]] [[कंस]] द्वारा पूजी जाती थीं। पुरातत्त्व उत्खनन के अनुसार यहाँ एक प्राचीन जैन स्तूप स्थित होने के प्रमाण मिले। यहाँ मिली सभी वस्तुऐं जैनकालीन है। इसके सबसे पुराने अवशेष ई.पू. प्रथम शताब्दी के माने जाते है और सबसे नये 1177 ई. के माने जाते हैं। लखनऊ संग्रहालय में स्थित एक अभिलेख के अनुसार यहाँ के बौद्धस्तूप में प्रतिमा की स्थापना का विवरण 157 ई. का है। नये उत्खनन के अनुसार जो कि सड़क के किनारे वाले टीले का हुआ है जो बौद्ध विहार होने का संकेत देता है। साथ ही ईंटों के बने एक चौकोर कुण्ड भी है जिसकी सम्भावना कृष्ण कालीन होने की हैं।
 
[[काली]] के विकराल रूप जिसे कंकाली कहा जाता है, के नाम पर यह टीला है। लोककथा के अनुसार [[कंकाली देवी मन्दिर|कंकाली देवी]] [[कंस]] द्वारा पूजी जाती थीं। पुरातत्त्व उत्खनन के अनुसार यहाँ एक प्राचीन जैन स्तूप स्थित होने के प्रमाण मिले। यहाँ मिली सभी वस्तुऐं जैनकालीन है। इसके सबसे पुराने अवशेष ई.पू. प्रथम शताब्दी के माने जाते है और सबसे नये 1177 ई. के माने जाते हैं। लखनऊ संग्रहालय में स्थित एक अभिलेख के अनुसार यहाँ के बौद्धस्तूप में प्रतिमा की स्थापना का विवरण 157 ई. का है। नये उत्खनन के अनुसार जो कि सड़क के किनारे वाले टीले का हुआ है जो बौद्ध विहार होने का संकेत देता है। साथ ही ईंटों के बने एक चौकोर कुण्ड भी है जिसकी सम्भावना कृष्ण कालीन होने की हैं।
 +
==वीथिका==
 
<gallery widths="145px" perrow="4">
 
<gallery widths="145px" perrow="4">
 
चित्र:Kankali-Tila-Mathura-2.jpg|कंकाली टीला, [[मथुरा]]<br /> Kankali Tila, Mathura
 
चित्र:Kankali-Tila-Mathura-2.jpg|कंकाली टीला, [[मथुरा]]<br /> Kankali Tila, Mathura

१०:३७, ३ फ़रवरी २०१० का अवतरण

कंकाली टीला / Kankali Tila

कंकाली टीला, मथुरा
Kankali Tila, Mathura

कंकाली टीला को जैनी टीला भी कहा जाता है। मथुरा में यह भूतेश्वर योगमाया परिक्रमा मार्ग, भूतेश्वर और बी.एस.ए. कालेज के बीच में स्थिति है। वर्तमान में यहाँ कंकाली देवी एवं हनुमान मन्दिर है। यहाँ एक अष्टकोणीय चबुतरायुक्त कुआ है जो भगवान कृष्ण के समय का बताया जाता है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तमाल किया गया है।

इतिहास

काली के विकराल रूप जिसे कंकाली कहा जाता है, के नाम पर यह टीला है। लोककथा के अनुसार कंकाली देवी कंस द्वारा पूजी जाती थीं। पुरातत्त्व उत्खनन के अनुसार यहाँ एक प्राचीन जैन स्तूप स्थित होने के प्रमाण मिले। यहाँ मिली सभी वस्तुऐं जैनकालीन है। इसके सबसे पुराने अवशेष ई.पू. प्रथम शताब्दी के माने जाते है और सबसे नये 1177 ई. के माने जाते हैं। लखनऊ संग्रहालय में स्थित एक अभिलेख के अनुसार यहाँ के बौद्धस्तूप में प्रतिमा की स्थापना का विवरण 157 ई. का है। नये उत्खनन के अनुसार जो कि सड़क के किनारे वाले टीले का हुआ है जो बौद्ध विहार होने का संकेत देता है। साथ ही ईंटों के बने एक चौकोर कुण्ड भी है जिसकी सम्भावना कृष्ण कालीन होने की हैं।

वीथिका