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पुराणों के अनुसार यह अन्धक-वृष्णि संघ के गणमुख्य उग्रसेन का पुत्र था ।  इसमें स्वच्छन्द शासकीय या अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ जागृत हुई और पिता को अपदस्थ करके यह स्वयं राजा बन बैठा । इसकी बहिन देवकी और बहनोई वसुदेव थे । इनको भी इसने कारागार में डाल दिया । यहीं पर इनसे कृष्ण का जन्म हुआ अत: कृष्ण के साथ उसका विरोध स्वाभाविक था । कृष्ण ने उसका वध कर दिया । अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों के कारण कंस का चित्रण राक्षस के रूप में हुआ है ।
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[[श्रीकृष्ण]] के जन्म के पहले [[शूरसेन]] जनपद का शासक कंस था, जो [[अंधकवंशी]] [[उग्रसेन]] का पुत्र था। बचपन से ही कंस स्वेच्छाचारी था। बड़ा होने पर वह जनता को अधिक कष्ट पहुंचाने लगा। उसे गणतंत्र की परम्परा रूचिकर न थी और शूरसेन जनपद में वह स्वेच्छाचारी नृपतंत्र स्थापित करना चाहता था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाकर उग्रसेन को पदच्युत कर दिया और स्वंय [[मथुरा]] के [[यादवों]] का अधिपति बन गया। इससे जनता के एक बड़े भाग का दुभित होना स्वाभाविक था। परन्तु कंस की अनीति वहीं तक सीमित नहीं रही; वह शीघ्र ही मथुरा का निरंकुश शासक बन गया और प्रजा की अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा। इससे प्रजा में कंस के प्रति गहरा असंतोष फैल गया। पर कंस की शक्ति इतनी प्रबल थी और उसका आंतक इतना छाया हुआ था कि बहुत समय तक जनता उसके अत्याचारों को सहती रही और उसके विरूद्ध कुछ कर सकने में असमर्थ रही।
 
[[श्रीकृष्ण]] के जन्म के पहले [[शूरसेन]] जनपद का शासक कंस था, जो [[अंधकवंशी]] [[उग्रसेन]] का पुत्र था। बचपन से ही कंस स्वेच्छाचारी था। बड़ा होने पर वह जनता को अधिक कष्ट पहुंचाने लगा। उसे गणतंत्र की परम्परा रूचिकर न थी और शूरसेन जनपद में वह स्वेच्छाचारी नृपतंत्र स्थापित करना चाहता था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाकर उग्रसेन को पदच्युत कर दिया और स्वंय [[मथुरा]] के [[यादवों]] का अधिपति बन गया। इससे जनता के एक बड़े भाग का दुभित होना स्वाभाविक था। परन्तु कंस की अनीति वहीं तक सीमित नहीं रही; वह शीघ्र ही मथुरा का निरंकुश शासक बन गया और प्रजा की अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा। इससे प्रजा में कंस के प्रति गहरा असंतोष फैल गया। पर कंस की शक्ति इतनी प्रबल थी और उसका आंतक इतना छाया हुआ था कि बहुत समय तक जनता उसके अत्याचारों को सहती रही और उसके विरूद्ध कुछ कर सकने में असमर्थ रही।
 
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११:५८, १४ जून २००९ का अवतरण

कंस

पुराणों के अनुसार यह अन्धक-वृष्णि संघ के गणमुख्य उग्रसेन का पुत्र था । इसमें स्वच्छन्द शासकीय या अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ जागृत हुई और पिता को अपदस्थ करके यह स्वयं राजा बन बैठा । इसकी बहिन देवकी और बहनोई वसुदेव थे । इनको भी इसने कारागार में डाल दिया । यहीं पर इनसे कृष्ण का जन्म हुआ अत: कृष्ण के साथ उसका विरोध स्वाभाविक था । कृष्ण ने उसका वध कर दिया । अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों के कारण कंस का चित्रण राक्षस के रूप में हुआ है ।


श्रीकृष्ण के जन्म के पहले शूरसेन जनपद का शासक कंस था, जो अंधकवंशी उग्रसेन का पुत्र था। बचपन से ही कंस स्वेच्छाचारी था। बड़ा होने पर वह जनता को अधिक कष्ट पहुंचाने लगा। उसे गणतंत्र की परम्परा रूचिकर न थी और शूरसेन जनपद में वह स्वेच्छाचारी नृपतंत्र स्थापित करना चाहता था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाकर उग्रसेन को पदच्युत कर दिया और स्वंय मथुरा के यादवों का अधिपति बन गया। इससे जनता के एक बड़े भाग का दुभित होना स्वाभाविक था। परन्तु कंस की अनीति वहीं तक सीमित नहीं रही; वह शीघ्र ही मथुरा का निरंकुश शासक बन गया और प्रजा की अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा। इससे प्रजा में कंस के प्रति गहरा असंतोष फैल गया। पर कंस की शक्ति इतनी प्रबल थी और उसका आंतक इतना छाया हुआ था कि बहुत समय तक जनता उसके अत्याचारों को सहती रही और उसके विरूद्ध कुछ कर सकने में असमर्थ रही।


दुवंशी राजा शूरसेन मथुरा में रहकर राज्य करते थे। उनके पुत्र वसुदेव का विवाह देवक की कन्या देवकी से हुआ। उग्रसेन का लड़का कंस अपनी चचेरी बहन देवकी के रथ को हांकने लगा। उसका देवकी से बहुत स्नेह था, तभी आकाशवाणी सुनायी पड़ी-"जिसे तू चाहता है, उस देवकी का आठवां बालक तुझे मार डालेगा।" ऐसा सुनकर कंस ने बहन को मारने के लिए तलवार निकाल ली। वसुदेव ने उसे शांत किया तथा वादा किया कि अपना पुत्र उसे सौंप दिया करेंगे। पहला पुत्र होने पर जब वसुदेव कंस के पास पहुंचे तो नन्हे बालक को वैसे ही लौटाकर कंस ने कहा कि उसे तो आठवां बेटा चाहिए। एक दिन नारद ने कंस के पास पहुंचकर बताया कि यदुवंशी सब देवता, अप्सरा आदि हैं- वे दैत्यों का संहार करने के लिए जन्मे हैं, तो कंस ने सोचा – क्योंकि पूर्व जन्म में वह स्वयं भी 'कालनेमि' नामक राक्षस था, जिसे विष्णु ने मारा था, इसलिए अब भी देवकी के उदर से विष्णु ही जन्म लेंगे। ऐसा विचार कर उसने वसुदेव और देवकी को कैद कर लिया। कंस ने एक-एक करके देवकी के छह बेटों को जन्मते ही मार डाला। सातवें गर्भ में श्रीहरि के अंशरूप श्रीशेष (अनंत) ने प्रवेश किया था। कंस उसे भी मार डालेगा, ऐसा सोचकर भगवान ने योगमाया से देवकी का गर्भ ब्रजनिवासिनी वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर में रखवा दिया। देवकी के गर्भ से खींचे जाने के कारण वे 'संकर्षण' , लोकरंजन के कारण 'राम' तथा बलवान के होने के कारण बलभद्र नाम से विख्यात हुए। देवकी का गर्भपात हो गया। तदनंतर आठवें बेटे की बारी में श्रीहरि ने स्वयं देवकी के उदर से पूर्णावतार लिया तथा योगमाया को यशोदा के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया। श्रीकृष्ण जन्म लेकर, देवकी तथा वसुदेव को अपने विराट् रूप के दर्शन देकर, पुन: एक साधारण बालक बन गये। योगमाया के प्रभाव से जेल के पहरेदारों से लेकर ब्रजवासियों तक सभी बेसुध हो गये थे। योगमाया ने यशोदा के घर में जन्म लिया था। पर वह पुत्र है या पुत्री , अभी किसी को ज्ञात नहीं था। तभी वसुदेव मथुरा से शिशु कृष्ण को लेकर नंद के घर पहुंच गये। जेल के दरवाजे स्वयं ही खुलते चले गये। नदी ने भी वसुदेव को मार्ग दिया। नंद की नवजात शिशु (श्रीकृष्ण) को बदल लिया। कंस ने उसे ही टांगों से उठाकर पटका। वह यक कहती हुई कि "तुझे मारने वाला तो अन्यत्र जन्म ले चुका है,' आकाश की ओर उड़ गयी तथा अंतर्धान हो गयी। कंस ने वसुदेव तथा देवकी को छोड़ दिया। उसके मंत्रियों ने अपने प्रवेश के सभी नवजात शिशुओं को मारना अथवा तंग करना प्रारंभ कर दिया। मंत्रियों की सलाह से कंस ने ब्राह्मणों को भी मारना प्रारंभ कर दिया। उसने अनेक आसुरी प्रवृत्ति वाले लोगों से कृष्ण को मरवाना चाहा पर सभी कृष्ण तथा बलराम के हाथों मारे गये। कंस ने एक समारोह के अवसर पर कृष्ण तथा बलराम को आमंत्रित किया। उसकी योजना वहीं उन्हें मरवा डालने की थी किंतु कृष्ण ने कंस को बालों से पकड़कर उसकी गद्दी से खींचकर उसे फर्श पर पटक दिया। उसे मारकर वे लोग देवकी तथा वसुदेव को जेल से मुक्त करवाने गये। जब उन्होंने माता-पिता के चरणों में वंदना की तो देवकी तथा वसुदेव कृष्ण को जगदीश्वर समझकर हृदय से लगाने में संकोच करते रहे। [१]


कंस की इस शक्ति का प्रधान कारण यह था कि उसे आर्यावर्त के तत्कालीन सर्वप्रतापी राजा जरासंध का सहारा प्राप्त था। वह जरासंध पौरव वंश का था और मगध के विशाल साम्राज्य का शासक था। उसने अनेक प्रदेशों के राजाओं से मैत्री-संबंध स्थापित कर लिये थे, जिनके द्वारा उसे अपनी शक्ति बढ़ाने में बड़ी सहायता मिली। कंस को जरासंध ने अस्ति और प्राप्ति नामक अपनी दो लड़कियाँ ब्याह दीं और इस प्रकार उससे अपना घनिष्ट संबंध-जोड़ लिया। चेदि के यादव वंशी राजा शिशुपाल को भी जरासंध ने अपना गहरा मित्र बना लिया। इधर उत्तर-पश्चिम में उसने कुरूराज दुर्योधन को अपना सहायक बनाया। पूर्वोत्तर की ओर आसाम के राजा भगदन्त से भी उसने मित्रता जोड़ी। इस प्रकार उत्तर भारत के प्रधान राजाओं से मैत्री संबंध स्थापित कर जरासंध ने अपने पड़ोसी राज्यों-काशी, कौशल, अंग बंग आदि पर अपना अधिकार जमा लिया। कुछ समय बाद कलिंग का राज्य भी उसके अधीन हो गया। अब जरासंध पंजाब से लेकर आसाम और उड़ीसा तक के प्रदेश का सबसे अधिक प्रभावशाली शासक बन गया।

कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं स्वेच्छाचारी राजा के रुप में मथुरा के सिंहासन पर आरुढ़ हो गया। उसी क्रूर अत्याचारी कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी तथा उसके पति वसुदेव को किसी आकाशवाणी को सुनकर अपने को निर्भय रखने के विचार से जेल में डाल दिया था। कंस तथा उसके क्रूर शासन को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से कारागृह में जन्म लिया और अद्भुत लीलाओं के क्रमों का विकास करते हुए अपने मामा कंस का वध करके ब्रजवासियों के कष्टों को दूर किया। अपने माता-पिता तथा नाना उग्रसेन को कारागृह से मुक्त कराया तथा उन्हें पुन: सिंहासन पर बिठाया

न केवल वैदिक साहित्य में अपितु बौद्ध एवं जैन साहित्य में भी ब्रज संबन्धी विविध उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध साहित्य के अन्तर्गत घट जातक में वासुदेव कान्हा और कंस की कथा है। बौद्ध अवदान साहित्य में दिव्यावदान मुख्य है। इस ग्रंथ में मथुरा में भगवान बुद्ध का आगमन तथा शिष्यों के साथ उनका विविध विषयों पर विचार-विमर्श वर्णित है। इसके अतिरिक्त ललित विस्तर, मझिमनिकाय, महावत्थु, पेतवत्थु, विमानवत्थु, अट्ठकथा आदि ग्रंथों एवं उनकी टीकाओं में जो विविध उल्लेख मिलते हैं उनसे मथुरा की राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति पर बहुत-कुछ प्रकाश पड़ता है।

  1. श्रीमद् भा0,10।1-4,10।44।– हरि0 वं0पु0, विष्णुपर्व । 1-30 । वि0पु0, 5 । 1-20।–