कंस

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कंस

श्रीकृष्ण के जन्म के पहले शूरसेन जनपद का शासक कंस था, जो अंधकवंशी उग्रसेन का पुत्र था। बचपन से ही कंस स्वेच्छाचारी था। बड़ा होने पर वह जनता को अधिक कष्ट पहुंचाने लगा। उसे गणतंत्र की परम्परा रूचिकर न थी और शूरसेन जनपद में वह स्वेच्छाचारी नृपतंत्र स्थापित करना चाहता था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाकर उग्रसेन को पदच्युत कर दिया और स्वंय मथुरा के यादवों का अधिपति बन गया। इससे जनता के एक बड़े भाग का दुभित होना स्वाभाविक था। परन्तु कंस की अनीति वहीं तक सीमित नहीं रही; वह शीघ्र ही मथुरा का निरंकुश शासक बन गया और प्रजा की अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा। इससे प्रजा में कंस के प्रति गहरा असंतोष फैल गया। पर कंस की शक्ति इतनी प्रबल थी और उसका आंतक इतना छाया हुआ था कि बहुत समय तक जनता उसके अत्याचारों को सहती रही और उसके विरूद्ध कुछ कर सकने में असमर्थ रही।

कंस की इस शक्ति का प्रधान कारण यह था कि उसे आर्यावर्त के तत्कालीन सर्वप्रतापी राजा जरासंध का सहारा प्राप्त था। वह जरासंध पौरव वंश का था और मगध के विशाल साम्राज्य का शासक था। उसने अनेक प्रदेशों के राजाओं से मैत्री-संबंध स्थापित कर लिये थे, जिनके द्वारा उसे अपनी शक्ति बढ़ाने में बड़ी सहायता मिली। कंस को जरासंध ने अस्ति और प्राप्ति नामक अपनी दो लड़कियाँ ब्याह दीं और इस प्रकार उससे अपना घनिष्ट संबंध-जोड़ लिया। चेदि के यादव वंशी राजा शिशुपाल को भी जरासंध ने अपना गहरा मित्र बना लिया। इधर उत्तर-पश्चिम में उसने कुरूराज दुर्योधन को अपना सहायक बनाया। पूर्वोत्तर की ओर आसाम के राजा भगदन्त से भी उसने मित्रता जोड़ी। इस प्रकार उत्तर भारत के प्रधान राजाओं से मैत्री संबंध स्थापित कर जरासंध ने अपने पड़ोसी राज्यों-काशी, कौशल, अंग बंग आदि पर अपना अधिकार जमा लिया। कुछ समय बाद कलिंग का राज्य भी उसके अधीन हो गया। अब जरासंध पंजाब से लेकर आसाम और उड़ीसा तक के प्रदेश का सबसे अधिक प्रभावशाली शासक बन गया।

कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं स्वेच्छाचारी राजा के रुप में मथुरा के सिंहासन पर आरुढ़ हो गया। उसी क्रूर अत्याचारी कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी तथा उसके पति वसुदेव को किसी आकाशवाणी को सुनकर अपने को निर्भय रखने के विचार से जेल में डाल दिया था। कंस तथा उसके क्रूर शासन को समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ से कारागृह में जन्म लिया और अद्भुत लीलाओं के क्रमों का विकास करते हुए अपने मामा कंस का वध करके ब्रजवासियों के कष्टों को दूर किया। अपने माता-पिता तथा नाना उग्रसेन को कारागृह से मुक्त कराया तथा उन्हें पुन: सिंहासन पर बिठाया

न केवल वैदिक साहित्य में अपितु बौद्ध एवं जैन साहित्य में भी ब्रज संबन्धी विविध उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध साहित्य के अन्तर्गत घट जातक में वासुदेव कान्हा और कंस की कथा है। बौद्ध अवदान साहित्य में दिव्यावदान मुख्य है। इस ग्रंथ में मथुरा में भगवान बुद्ध का आगमन तथा शिष्यों के साथ उनका विविध विषयों पर विचार-विमर्श वर्णित है। इसके अतिरिक्त ललित विस्तर, मझिमनिकाय, महावत्थु, पेतवत्थु, विमानवत्थु, अट्ठकथा आदि ग्रंथों एवं उनकी टीकाओं में जो विविध उल्लेख मिलते हैं उनसे मथुरा की राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति पर बहुत-कुछ प्रकाश पड़ता है।