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मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
 
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
  
जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन
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जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन
  
 
पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।
 
पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।
  
 
जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥
 
जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥

१२:१५, १७ मई २००९ का अवतरण

कदम्ब

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।

जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ॥

पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।

जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥