कदम्ब

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कदम्ब

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।

जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ॥

पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।

जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥