करवा चौथ

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करवा चौथ
Karva Chauth

करवा चौथ का पर्व भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है। परंतु इनमें करवा चौथ का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। वामन पुराण मे करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है।

करवा चौथ व्रत को रखने वाली स्त्रियों को प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करना चाहिए। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।

सामग्री

करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री :-

  • कुंकुम
  • शहद
  • अगरबत्ती
  • पुष्प
  • कच्चा दूध
  • शक्कर
  • शुद्ध घी
  • दही
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  • मिठाई
  • गंगाजल
  • चंदन
  • अक्षत (चावल)
  • सिंदूर
  • मेहँदी
  • महावर
  • कंघा
  • बिंदी
  • चुनरी
  • चूड़ी
  • बिछुआ
  • मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन
  • दीपक
  • रुई
  • कपूर
  • गेहूँ
  • शक्कर का बूरा
  • हल्दी
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  • पानी का लोटा
  • गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
  • लकड़ी का आसन
  • छलनी
  • आठ पूरियों की अठावरी
  • हलुआ
  • दक्षिणा के लिए पैसे

व्रत की प्रक्रिया

  • करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें।
  • व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
  • पूरे दिन निर्जल रहें।
  • दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
  • आठ पूरियों की अठावरी बनाएँ। हलुआ बनाएँ। पक्के पकवान बनाएँ।
  • पीली मिट्टी से गौरी बनाएँ और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएँ।
  • गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएँ। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएँ। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
  • जल से भरा हुआ लोटा रखें।
  • बायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूँ और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
  • रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएँ।
  • गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें। नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
  • करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूँ या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
  • कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
  • तेरह दाने गेहूँ के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
  • रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्ध्य दें।
  • इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएँ और स्वयं भी भोजन कर लें।
खाँड़ (शक्कर) का करवा
  • जिस वर्ष लड़की की शादी होती है उस वर्ष उसके पीहर से चौदह चीनी के करवों, बर्तनों, कपड़ों और गेहूँ आदि के साथ बायना भी आता है।

Blockquote-open.gifहमारे पौराणिक साहित्य के सबसे आदर्श और सबसे आकर्षक युगल शिव-पार्वती हैं और हमारे भारत में पति-पत्नी के बीच के सारे पर्व और त्योहार शिव और पार्वती जी से जुड़े हुए हैं। वह पर्व चाहे हरतालिका तीज हो, मंगलागौरी, जया-पार्वती हो या फिर करवा चौथ हो।Blockquote-close.gif

सरगी

सास भी अपनी बहू का सरगी भेजती है। सरगी में मिठाई, फल, सेवइयां आदि होती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले करती हैं।

उजमन

अन्य व्रतों के समान करवा चौथ का भी उजमन किया जाता है। करवा चौथ के उजमन में एक थाल में तेरह जगह चार-चार पूड़ियाँ रखकर उनके ऊपर सूजी का हलुवा रखा जाता है। इसके ऊपर साड़ी-ब्लाउज और रुपये रखे जाते हैं। हाथ में रोली, चावल लेकर थाल में चारों ओर हाथ घुमाने के बाद यह बायना सास को दिया जाता है। तेरह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाकर और सुहाग की वस्तुएँ एवं दक्षिणा देकर विदा कर दिया जाता है।

पौराणिक साहित्य

हमारे पौराणिक साहित्य के सबसे आदर्श और सबसे आकर्षक युगल शिव-पार्वती हैं और हमारे भारत में पति-पत्नी के बीच के सारे पर्व और त्योहार शिव और पार्वती जी से जुड़े हुए हैं। वह पर्व चाहे हरतालिका तीज हो, मंगलागौरी, जया-पार्वती हो या फिर करवा चौथ हो। अपने पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत हर विवाहित स्त्री के जीवन में एक नई उमंग लाता है। कुंवारी लड़की अपने लिए शिव की तरह प्रेम करने वाले पति की कामना करती है और इसके लिए सोमवार से लेकर जया-पार्वती तक के सभी व्रत पूरी आस्था से करती है। इसी तरह करवा चौथ का संबंध भी शिव और पार्वती से है।

भारत में स्थिति

अमेरिका में चालीस की उम्र तक पहुँचते- पहुँचते साठ प्रतिशत से ज्यादा पति-पत्नी कम से कम तीन बार अपना जोड़ा बदल लेते हैं। दिन में कई बार प्रेम जताने के बावज़ूद परिवार संस्था की यह हालत हैं। भारत में स्थिति थोड़ी अलग है। भारत में लोग शिव-पार्वती को अपने दांपत्य जीवन का आदर्श मानते है। कम से कम कहते तो ऐसा ही है। दोनों मे से कोई किसी के प्रति बार-बार प्रेम-प्रणय के दावे नहीं करता। लेकिन उसका दांपत्य जीवन दुनिया और समाजों की तुलना में स्थिर, समरस और अक्सर ताउम्र चलने वाला होता है। शादी की सालगिरह अब मनाई जाने लगी है। वरना पति- पत्नी के प्रेम और संबंधो को याद करने का एक दिन सार्वजनिक तौर पर था। उस दिन को करवा चौथ कहते हैं।

परंपरा और विश्वास का त्योहार

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ओ चाँद तुझे पता है क्या?
तू कितना अनमोल है
देखने को धरती की सारी पत्नियाँ
बेसब्र फलक को ताकेंगी
कब आयेगा, तू कब छायेगा?
देगा उनको आशीर्वचन
होगा उनका प्रेम अमर

परंपरा वक्त की मांग के अनुसार बनी होती है, वक़्त के साथ परंपरा में संशोधन किया जाना चाहिये पर उसको तिरस्कृत नहीं करना चाहिये, आखिर यही परम्परा हमारे पूर्वजों की धरोहर है। भारतीय महिलाओं की आस्था, परंपरा, धार्मिकता, अपने पति के लिये प्यार, सम्मान, समर्पण, इस एक व्रत में सब कुछ निहित है। भारतीय पत्नी की सारी दुनिया, उसके पति से शुरू होती है उन्हीं पर समाप्त होती है। चाँद को इसीलिये इसका प्रतीक माना गया होगा क्योंकि चाँद भी धरती के कक्षा में जिस तन्मयता, प्यार समर्पण से वो धरती के इर्द गिर्द रहता है, हमारी भारतीय औरतें उसी प्रतीक को अपना लेती हैं। वैसे भी हमारा भारत, अपनी परंपराओं, प्रकृति प्रेम, अध्यात्मिकता, वृहद संस्कृति, उच्च विचार और धार्मिक पुरजोरता के आधार पर विश्व में अपने अलग पहचान बनाने में सक्षम है। इसके उदाहरण स्वरूप करवा चौथ से अच्छा कौन सा व्रत हो सकता है जो कि परंपरा, अध्यात्म, प्यार, समर्पण, प्रकृति प्रेम, और जीवन सबको एक साथ, एक सूत्र में पिरोकर, सदियों से चलता आ रहा है।

मिट्टी का करवा

यह पावन व्रत किसी परंपरा के आधार पर न होकर, युगल के अपने ताल-मेल पर हो तो बेहतर है। जहाँ पत्नी इस कामना के साथ दिन भर निर्जला रहकर रात को चाँद देखकर अपने चाँद के शाश्वत जीवन की कामना करती है, वह कामना सच्चे दिल से शाश्वत प्रेम से परिपूर्ण हो, न कि सिर्फ इसलिये हो को ऐसी परंपरा है। यह तभी संभव होगा जब युगल का व्यक्तिगत जीवन परंपरा के आधार पर न जाकर, प्रेम के आधार पर हो, शादी सिर्फ एक बंधन न हो, बल्कि शादी नवजीवन का खुला आकाश हो, जिसमें प्यार का ऐसा वृक्ष लहरायें जिसकी जड़ों में परंपरा का दीमक नहीं प्यार का अमृत बरसता हो, जिसकी शाखाओं में, बंधन का नहीं प्रेम का आधार हो। जब ऐसा युगल एक दूसरे के लिये, करवा चौथ का व्रत करके चाँद से अपने प्यार के शाश्वत होने का आशीर्वचन माँगेगा तो चाँद ही क्या, पूरी कायनात से उनको वो आशीर्वचन मिलेगा। करवाचौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्चास का कि हम साथ साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि हमारा साथ ना छूटे। आज हम कितना भी आधुनिक हो जायें, पर क्या ये आधुनिकता हमारे बीच के प्यार को मिटाने के लिये होनी चाहिये।

दंपत्ति के संबंधों की अहमियत

आज भी करवा चौथ का त्यौहार या व्रत पूरे उत्साह से और ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। जिन लोगों को इस व्रत पर्व के बारे में मालूम नहीं था। वे शादी की सालगिरह के प्रति कम ही जागरुक होते थे। कुछ संपन्न शिक्षित और कुलीन परिवारों में दांपत्य के पचास साल पूरे हो जाने पर समारोह मनाया जाता था। आज भी मनाया जाता है। उस समारोह में दंपत्ति के नाती-पोते भी शामिल होते हैं। दंपत्ति के निजी संबध या जीवन की अहमियत सिर्फ इतनी है कि वह खुद के लिए नहीं हैं। मर्यादा में रहते हुए उनके रुझान, पूरे परिवार पर ही केंद्रित होते थे।

वास्ताविक नाम

आप पुराने परिवारों को देखें, जिन्हें अक्सर ग्रामीण या बुजुर्गी का हवाला दे कर हेय समझ लिया जाता हैं, तो पाएंगे कि वहां पति-पत्नी एक दूसरे को उनके वास्ताविक नामों से नहीं बच्चों के नाम से या देवर और बहिन के नाम से पुकारते हैं। इससे पति- पत्नि का प्रेम कम नहीं हो जाता। उन परिवारों में भी स्त्रियां परिवार का इतना ध्यान रखती हैं कि वे सबसे आख़िर मे भोजन करती हैं, सबसे पहले जागती हैं, और सबके सो जाने के बाद सोती हैं। यहां सबका मतलब परिवार के उन सदस्यों से है जो दिन भर बाहर काम करते हैं, या वृद्ध अथवा बच्चे हैं। जिन पर ज़्यादा ध्यान देने की जरुरत है।

शास्त्रों-पुराणों मे उल्लेख

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करवा चौथ का व्रत तब भी प्रचलित था और जैसा कि शास्त्रों-पुराणों मे उल्लेख मिलता है यह अपने जीवन साथी के स्वस्थ और दीर्घायु होने कि कामना से किया जाता था। पर्व का स्वरुप थोड़े फेरबदल के साथ अब भी वही है। लेकिन यह पति-पत्नी तक ही सीमित नहीं हैं। दोनों चूंकि गृहस्थी रुपी गाड़ी के दो पहिये है। और निष्ठा की धुरी से जुड़े हैं। इसलिए उनके संबंधों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। असल में तो यह पूरे परिवार के हित और कल्याण के लिए है।

अशुभ का परिहार्य

पुराने दिनों में करवा-चौथ के दिन कोई अनर्थ होता तो इस व्रत-पर्व को अगले किसी उपयुक्त अवसर तक स्थगित कर दिया जाता था। वह उपयुक्त अवसर करवा-चौथ के दिन कोई शुभ घटना होने के रुप में ही होता। विधान फिर से शुरु करने के लिए पहले घट चुके अशुभ का परिहार्य होने तक इंतजार किया जाता।

सजती है हर सुहागिन

करवा चौथ के दिन भारत की हर महिला दिनभर उपवास के बाद शाम को 18 साल की लड़की से लेकर 75 साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-संवरती है। करवाचौथ के दिन एक खूबसूरत रिश्ता साल-दर-साल मजबूत होता है। कुंवारी लड़कियां (कुछ संप्रदायों में सगाई के बाद) शिव की तरह के पति की चाहत में, तो शादीशुदा स्त्रियां अपनी पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं।

परंपरा का विस्तार

करवा चौथ के दिन अब पत्नी ही नहीं पति भी व्रत करते हैं। यह परंपरा का विस्तार है। करवा चौथ को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है। करवाचौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है। पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही ख़ासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवाचौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है।

Blockquote-open.gifकरवाचौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्चास का कि हम साथ साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि हमारा साथ ना छूटे। आज हम कितना भी आधुनिक हो जायें, पर क्या ये आधुनिकता हमारे बीच के प्यार को मिटाने के लिये होनी चाहिये?Blockquote-close.gif

व्रत सिर्फ पति के लिए या स्त्री पुरुष की बराबरी का मानने के लिए पति द्धारा पत्नी के लिए भी करने तक ही सीमित नहीं है। पुरुष चाहें तो वे पत्नी या प्रेयसी के लिए व्रत रखें, लेकिन यह चलन करवा- चौथ की भावना को सतही तौर पर ही छूता है। पति द्धारा व्रत करने को परंपरा के विस्तार के रुप में देखना चाहिए। इस के पीछे सफल और खुशहाल दाम्पत्य की भावना भी है। चलन और पक्का होता जा रहा है और करवाचौथ में पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है। त्योंहार बहुत कुछ भावनाओं पर केंद्रित हो गया हैं। करवाचौथ के मर्म तक नहीं पहुंच पाने के कारण यह पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक भी हुआ करता होगा लेकिन अब दोनों के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की गरमाहट से भी दमकने लगा है।

करवा चौथ कथा

एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहाँ हर समय अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहाँ हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया। भगवान वहाँ उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले- 'एक बार पार्वती जी ने भी शिवजी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी-मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई-

कथा

'प्राचीनकाल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया। कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाड़ली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी। उसका फूल सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों के लिए बहन की यह वेदना असह्य थी। अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे। उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी। तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा- देखो ! चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्ध्य देकर भोजन करो।' बहन उठी और चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। वह रोने चिल्लाने लगी। दैवयोग से इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहाँ से जा रही थीं। रोने की आवाज सुन वे वहाँ गईं और उससे रोने का कारण पूछा।

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ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया। तब इन्द्राणी ने कहा- 'तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करों, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो तथा चंद्रोदय के बाद अर्ध्य देकर अन्न-जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।' ब्राह्मण कन्या ने अगले वर्ष 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका मृत पति जीवित हो गया। इस प्रकार यह कथा कहकर श्री कृष्ण द्रौपदी से बोले- 'यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी।' फिर द्रौपदी ने श्री कृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पाण्डवों की जीत हुई।

करवा चौथ कथा द्वितीय

प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। वह अपने पति के साथ नदी किनारे के एक गाँव में रहती थी। उसका पति वृद्ध था। एक दिन वह नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगर ने उसे पकड़ लिया। इस पर व्यक्ति 'करवा करवा' चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा। करवा पतिव्रता स्त्री थी। आवाज को सुनकर करवा भागकर अपने पति के पास पहुँची और दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया। मगर को सूत के कच्चे धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुँची। वे उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे। करवा ने सात सींक ले उन्हें झाड़ना शुरू किया, यमराज के खाते आकाश में उड़ने लगे। यमराज घबरा गए और बोले- 'देवी! तू क्या चाहती है?' करवा ने कहा- 'हे प्रभु! एक मगर ने नदी के जल में मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को आप अपनी शक्ति से अपने लोक (नरक) में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो।'


करवा की बात सुनकर यमराज बोले- 'देवी! अभी मगर की आयु शेष है। अत: आयु रहते हुए मैं असमय मगर को मार नहीं सकता।' इस पर करवा ने कहा- 'यदि मगर को मारकर आप मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे, तो मैं शाप देकर आपको नष्ट कर दूंगी।' करवा की धमकी से यमराज डर गए। वे करवा के साथ वहाँ आए, जहाँ मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था। यमराज ने मगर को मारकर यमलोक पहुँचा दिया और करवा के पति की प्राण रक्षा कर उसे दीर्घायु प्रदान की। जाते समय वह करवा को सुख-समृद्धि देते गए तथा यह वर भी दिया- 'जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा।' करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी। इस घटना के दिन से करवा चौथ का व्रत करवा के नाम से प्रचलित हो गया। जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ थी। हे करवा माता! जैसे आपने (करवा) अपने पति की प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना।

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