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==कश्मीर / काश्मीर / Kashmir==
 
==कश्मीर / काश्मीर / Kashmir==
प्राचीन नाम कश्यपमेरु या कश्यपमीर (कश्यप का झील)। किंवदंती है कि महर्षि [[कश्यप]] श्री नगर से तीन मील दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। जहाँ आजकल [[कश्मीर]] की घाटी है, वहाँ अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में एक बहुत बड़ी झील थी जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था।  भूविद्या-विशारदों के विचारों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि काश्मीर तथा [[हिमालय]] के एक विस्तृत भू-भाग में अब से सहस्त्रों वर्ष पूर्व समुद्र स्थित था। काश्मीर का इतिहास अतिप्राचीन है। वैदिक काल में यहाँ [[आर्य|आर्यों]] की बस्तियाँ थी। <ref>[[महाभारत]] वन 130, 10 में काश्मीरमंडल का उल्लेख है- 'काश्मीर मंडलं चैतत् सर्वपुण्यमरिंदम; महर्षिभिश्चाध्युषितं पश्येदं भ्रातृभि: सह्।'</ref> कश्मीर के लिए कश्मीरमंडल शब्द के प्रयोग से सूचित होता है कि [[महाभारत]] काल में भी वर्तमान कश्मीर के विशाल समूचे प्रदेश को ही कश्मीर समझा जाता था। उस काल में महर्षियों के रहने के अनेक स्थान थे, यह भी इस उद्धरण से ज्ञात होता है। <ref>महाभारत, सभा0 34, 12('द्राविडा:-सिंहलाश्चैव राजा काश्मीरकस्तथा') से सूचित हिता है कि कश्मीर का राजा भी [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में आया था। उसने भेंट में अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त अंगूर के गुच्छे भी युधिष्ठिर को दिए थे, 'काश्मीरराजोमार्द्वीकं शुद्धं च रसवन्मधु बलिं च कृत्स्ननादाय पांडवायाभ्युपाहरत'--सभा0 51, दक्षिणात्य पाठ्।</ref> कल्हण की राजतरंगिणी में जो कश्मीर का बृहत् इतिहास है, इस देश के इतिहास को अति प्राचीनकाल से प्रारम्भ किया गया है।  
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प्राचीन नाम कश्यपमेरु या कश्यपमीर (कश्यप का झील)। किंवदंती है कि महर्षि [[कश्यप]] श्री नगर से तीन मील दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। जहाँ आजकल [[कश्मीर]] की घाटी है, वहाँ अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में एक बहुत बड़ी झील थी जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था।  भूविद्या-विशारदों के विचारों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि काश्मीर तथा [[हिमालय]] के एक विस्तृत भू-भाग में अब से सहस्त्रों वर्ष पूर्व समुद्र स्थित था। काश्मीर का इतिहास अतिप्राचीन है। वैदिक काल में यहाँ [[आर्य|आर्यों]] की बस्तियाँ थी। <ref>[[महाभारत]] वन 130, 10 में काश्मीर मंडल का उल्लेख है- 'काश्मीर मंडलं चैतत् सर्वपुण्यमरिंदम; महर्षिभिश्चाध्युषितं पश्येदं भ्रातृभि: सह्।'</ref> कश्मीर के लिए कश्मीरमंडल शब्द के प्रयोग से सूचित होता है कि [[महाभारत]] काल में भी वर्तमान कश्मीर के विशाल समूचे प्रदेश को ही कश्मीर समझा जाता था। उस काल में महर्षियों के रहने के अनेक स्थान थे, यह भी इस उद्धरण से ज्ञात होता है। <ref>महाभारत, सभा0 34, 12('द्राविडा:-सिंहलाश्चैव राजा काश्मीरकस्तथा') से सूचित हिता है कि कश्मीर का राजा भी [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में आया था। उसने भेंट में अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त अंगूर के गुच्छे भी [[युधिष्ठिर]] को दिए थे, 'काश्मीरराजोमार्द्वीकं शुद्धं च रसवन्मधु बलिं च कृत्स्ननादाय पांडवायाभ्युपाहरत'--सभा0 51, दक्षिणात्य पाठ्।</ref> [[कल्हण]] की [[राजतरंगिणी]] में जो कश्मीर का बृहत् इतिहास है, इस देश के इतिहास को अति प्राचीनकाल से प्रारम्भ किया गया है।  
  
कश्मीर में [[अशोक]] के समय में बौद्धधर्म ने पहली बार प्रवेश किया। श्रीनगर की स्थापना इस [[मौर्य]] सम्राट ने ही की थी। दूसरी शती ई0 में कुशाननरेशों ने कश्मीर को अपने विशाल, मध्य एशिया तक फैले हुए साम्राज्य का अंग बनाया। कश्मीर से हाल में प्राप्त भारत-बैक्ट्रिआई और भारत-पार्थिआयी नरेशों के सिक्कों से प्रमाणित होता है कि गुप्तकाल के पूर्व, कश्मीर का सम्बन्ध उत्तरपश्चिम में स्थापित ग्रीक राज्यों से था। [[विष्णु पुराण]] के एक उल्लेख से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है--'सिंधु तटदाविकोर्वीचन्द्रभागा काश्मीरविषयांश्चव्रात्यम्लेच्छशूद्रादयो भोक्ष्यन्ति' <ref>विष्णु पुराण 4, 24, 69</ref>। इससे कश्मीर आदि देशों में संभवत: गुप्तपूर्वकाल में अनार्य जातियों के राज्य का होना सूचित होता है। गुप्तकाल में ही [[बौद्ध]]-धर्म की अवनति अन्य प्रदेशों की भाति कश्मीर में भी प्रारम्भ हो गई थी और [[शैव धर्म]] का उत्कर्ष धीरे -धीरे बढ़ रहा था। शैवमत के तथा पुनरुज्जीवित हिन्दूधर्म के प्रचार में अभिनवगुप्त तथा [[शंकराचार्य]] जैसे दार्शनिकों का बड़ा हाथ था। श्रीनगर के पास शंकराचार्य की पहाड़ी, दक्षिण के महान आचार्य की सुदूर उत्तर के इस देश की दार्शनिक दिग्विजय-यात्रा का स्मारक है। हिंदूधर्म के उत्कर्ष के साथ ही साथ कश्मीर की राजनैतिक शक्ति का भी तेजी से विकास हुआ।  
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कश्मीर में [[अशोक]] के समय में बौद्धधर्म ने पहली बार प्रवेश किया। श्रीनगर की स्थापना इस [[मौर्य]] सम्राट ने ही की थी। दूसरी शती ई0 में कुशाननरेशों ने कश्मीर को अपने विशाल, मध्य एशिया तक फैले हुए साम्राज्य का अंग बनाया। कश्मीर से हाल में प्राप्त भारत-बैक्ट्रिआई और भारत-पार्थिआयी नरेशों के सिक्कों से प्रमाणित होता है कि गुप्तकाल के पूर्व, कश्मीर का सम्बन्ध उत्तरपश्चिम में स्थापित ग्रीक राज्यों से था। [[विष्णु पुराण]] के एक उल्लेख से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है--'सिंधु तटदाविकोर्वीचन्द्रभागा काश्मीरविषयांश्चव्रात्यम्लेच्छशूद्रादयो भोक्ष्यन्ति' <ref>विष्णु पुराण 4, 24, 69</ref>। इससे कश्मीर आदि देशों में संभवत: गुप्तपूर्वकाल में अनार्य जातियों के राज्य का होना सूचित होता है। गुप्तकाल में ही [[बौद्ध]]-धर्म की अवनति अन्य प्रदेशों की भाति कश्मीर में भी प्रारम्भ हो गई थी और शैव धर्म का उत्कर्ष धीरे -धीरे बढ़ रहा था। [[शैवमत]] के तथा पुनरुज्जीवित हिन्दूधर्म के प्रचार में अभिनवगुप्त तथा [[शंकराचार्य]] जैसे दार्शनिकों का बड़ा हाथ था। श्रीनगर के पास शंकराचार्य की पहाड़ी, दक्षिण के महान आचार्य की सुदूर उत्तर के इस देश की दार्शनिक दिग्विजय-यात्रा का स्मारक है। हिंदूधर्म के उत्कर्ष के साथ ही साथ कश्मीर की राजनैतिक शक्ति का भी तेजी से विकास हुआ।  
  
राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर-नरेश मुक्तापीड ललितादित्य ने 8वीं शती में सन्पूर्ण उत्तर भारत में [[कान्यकुब्ज]] तथा पार्श्ववर्ती प्रदेश तक, अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। 13वीं शती में कश्मीर मुसलमानों के प्रभाव में आया। ईरान के हज़रत सैयद अली हमदान नामक संत ने अपने धर्म का यहाँ जोरों से प्रचार किया और धीरे-धीरे राज्यसत्ता भी मुसलमानों के हाथ में पहुँच गई। कश्मीर के मुसलमानों का राज्य 1338 ई0 से 1587 ई0 तक रहा और ज़ेनुलअब्दीन के शासनकाल  में कश्मीर भारत-ईरानी संस्कृति का प्रख्यात केंद्र बन गया। इस शासक को उसके उदार विचारों और संस्कृति प्रेम के कारण काश्मीर का [[अकबर]] कहा जाता है। 1587 से 1739 ई0 तक कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा। [[जहांगीर]] और [[शाहजहां]] के समय के अनेक स्मारक आज भी कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट स्मारक माने जाते हैं। इनमें निशात बाग़, शालामार उद्यान आदि प्रमुख हैं। 1739 से 1819 ई0 तक काबुल के राजाओं ने कश्मीर पर राज्य किया। 1819 ई0 में पंजाब केसरी रणजीत सिंह ने कश्मीर को काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद से छीन लिया किन्तु शीघ्र ही पंजाब कश्मीर के सहित अंग्रेजों के हाथ में हाथ में आ गया। 1846 ई0 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कश्मीर को डोंगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों बेच दिया। इस वंश का 1947 तक वहाँ शासन रहा।  
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राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर-नरेश मुक्तापीड ललितादित्य ने 8वीं शती में सन्पूर्ण उत्तर भारत में [[कान्यकुब्ज]] तथा पार्श्ववर्ती प्रदेश तक, अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। 13वीं शती में कश्मीर मुसलमानों के प्रभाव में आया। ईरान के हज़रत सैयद अली हमदान नामक संत ने अपने धर्म का यहाँ जोरों से प्रचार किया और धीरे-धीरे राज्यसत्ता भी मुसलमानों के हाथ में पहुँच गई। कश्मीर के मुसलमानों का राज्य 1338 ई0 से 1587 ई0 तक रहा और ज़ेनुलअब्दीन के शासनकाल  में कश्मीर भारत-ईरानी संस्कृति का प्रख्यात केंद्र बन गया। इस शासक को उसके उदार विचारों और संस्कृति प्रेम के कारण काश्मीर का [[अकबर]] कहा जाता है। 1587 से 1739 ई0 तक कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा। [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के समय के अनेक स्मारक आज भी कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट स्मारक माने जाते हैं। इनमें निशात बाग़, शालामार उद्यान आदि प्रमुख हैं। 1739 से 1819 ई0 तक काबुल के राजाओं ने कश्मीर पर राज्य किया। 1819 ई0 में पंजाब केसरी रणजीत सिंह ने कश्मीर को काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद से छीन लिया किन्तु शीघ्र ही पंजाब कश्मीर के सहित अंग्रेजों के हाथ में हाथ में आ गया। 1846 ई0 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कश्मीर को डोंगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों बेच दिया। इस वंश का 1947 तक वहाँ शासन रहा।  
  
 
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१६:३८, १३ दिसम्बर २००९ का अवतरण


कश्मीर / काश्मीर / Kashmir

प्राचीन नाम कश्यपमेरु या कश्यपमीर (कश्यप का झील)। किंवदंती है कि महर्षि कश्यप श्री नगर से तीन मील दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। जहाँ आजकल कश्मीर की घाटी है, वहाँ अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में एक बहुत बड़ी झील थी जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था। भूविद्या-विशारदों के विचारों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि काश्मीर तथा हिमालय के एक विस्तृत भू-भाग में अब से सहस्त्रों वर्ष पूर्व समुद्र स्थित था। काश्मीर का इतिहास अतिप्राचीन है। वैदिक काल में यहाँ आर्यों की बस्तियाँ थी। [१] कश्मीर के लिए कश्मीरमंडल शब्द के प्रयोग से सूचित होता है कि महाभारत काल में भी वर्तमान कश्मीर के विशाल समूचे प्रदेश को ही कश्मीर समझा जाता था। उस काल में महर्षियों के रहने के अनेक स्थान थे, यह भी इस उद्धरण से ज्ञात होता है। [२] कल्हण की राजतरंगिणी में जो कश्मीर का बृहत् इतिहास है, इस देश के इतिहास को अति प्राचीनकाल से प्रारम्भ किया गया है।

कश्मीर में अशोक के समय में बौद्धधर्म ने पहली बार प्रवेश किया। श्रीनगर की स्थापना इस मौर्य सम्राट ने ही की थी। दूसरी शती ई0 में कुशाननरेशों ने कश्मीर को अपने विशाल, मध्य एशिया तक फैले हुए साम्राज्य का अंग बनाया। कश्मीर से हाल में प्राप्त भारत-बैक्ट्रिआई और भारत-पार्थिआयी नरेशों के सिक्कों से प्रमाणित होता है कि गुप्तकाल के पूर्व, कश्मीर का सम्बन्ध उत्तरपश्चिम में स्थापित ग्रीक राज्यों से था। विष्णु पुराण के एक उल्लेख से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है--'सिंधु तटदाविकोर्वीचन्द्रभागा काश्मीरविषयांश्चव्रात्यम्लेच्छशूद्रादयो भोक्ष्यन्ति' [३]। इससे कश्मीर आदि देशों में संभवत: गुप्तपूर्वकाल में अनार्य जातियों के राज्य का होना सूचित होता है। गुप्तकाल में ही बौद्ध-धर्म की अवनति अन्य प्रदेशों की भाति कश्मीर में भी प्रारम्भ हो गई थी और शैव धर्म का उत्कर्ष धीरे -धीरे बढ़ रहा था। शैवमत के तथा पुनरुज्जीवित हिन्दूधर्म के प्रचार में अभिनवगुप्त तथा शंकराचार्य जैसे दार्शनिकों का बड़ा हाथ था। श्रीनगर के पास शंकराचार्य की पहाड़ी, दक्षिण के महान आचार्य की सुदूर उत्तर के इस देश की दार्शनिक दिग्विजय-यात्रा का स्मारक है। हिंदूधर्म के उत्कर्ष के साथ ही साथ कश्मीर की राजनैतिक शक्ति का भी तेजी से विकास हुआ।

राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर-नरेश मुक्तापीड ललितादित्य ने 8वीं शती में सन्पूर्ण उत्तर भारत में कान्यकुब्ज तथा पार्श्ववर्ती प्रदेश तक, अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। 13वीं शती में कश्मीर मुसलमानों के प्रभाव में आया। ईरान के हज़रत सैयद अली हमदान नामक संत ने अपने धर्म का यहाँ जोरों से प्रचार किया और धीरे-धीरे राज्यसत्ता भी मुसलमानों के हाथ में पहुँच गई। कश्मीर के मुसलमानों का राज्य 1338 ई0 से 1587 ई0 तक रहा और ज़ेनुलअब्दीन के शासनकाल में कश्मीर भारत-ईरानी संस्कृति का प्रख्यात केंद्र बन गया। इस शासक को उसके उदार विचारों और संस्कृति प्रेम के कारण काश्मीर का अकबर कहा जाता है। 1587 से 1739 ई0 तक कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा। जहाँगीर और शाहजहाँ के समय के अनेक स्मारक आज भी कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट स्मारक माने जाते हैं। इनमें निशात बाग़, शालामार उद्यान आदि प्रमुख हैं। 1739 से 1819 ई0 तक काबुल के राजाओं ने कश्मीर पर राज्य किया। 1819 ई0 में पंजाब केसरी रणजीत सिंह ने कश्मीर को काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद से छीन लिया किन्तु शीघ्र ही पंजाब कश्मीर के सहित अंग्रेजों के हाथ में हाथ में आ गया। 1846 ई0 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कश्मीर को डोंगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों बेच दिया। इस वंश का 1947 तक वहाँ शासन रहा।

टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत वन 130, 10 में काश्मीर मंडल का उल्लेख है- 'काश्मीर मंडलं चैतत् सर्वपुण्यमरिंदम; महर्षिभिश्चाध्युषितं पश्येदं भ्रातृभि: सह्।'
  2. महाभारत, सभा0 34, 12('द्राविडा:-सिंहलाश्चैव राजा काश्मीरकस्तथा') से सूचित हिता है कि कश्मीर का राजा भी युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आया था। उसने भेंट में अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त अंगूर के गुच्छे भी युधिष्ठिर को दिए थे, 'काश्मीरराजोमार्द्वीकं शुद्धं च रसवन्मधु बलिं च कृत्स्ननादाय पांडवायाभ्युपाहरत'--सभा0 51, दक्षिणात्य पाठ्।
  3. विष्णु पुराण 4, 24, 69