कालयवन

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Sonia sinha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:५५, ७ सितम्बर २०११ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

कालयवन यवन देश का राजा था। जन्म से ब्राह्मण, पर कर्म से म्लेच्छ (मलेच्छ) था।

शल्य ने जरासंध को यह सलाह दी कि वे कृष्ण को हराने के लिए कालयवन से सहायता मांगे।


कालयवन के पिता

कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। वे 'गर्ग गोत्र' के थे। एक बार वे किसी सिद्धि की प्राप्ति के लिए अनुष्ठान कर रहे थे, जिसके लिए १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना था। उन्हीं दिनों एक गोष्ठी मे किसी ने उन्हें 'नपुंसक' कह दिया जो उन्हें चुभ गया। उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें ऐसा पुत्र होगा जो अजेय हो, कोई योद्धा उसे जीत न सके।

इसलिए वे भगवान शिव के तपस्या में लग गए। भगवान शिव प्रसन्न हो कर प्रकट हो गए -
शिव: "हे मुनि! हम प्रसन्न हैं, जो मांगना है मांगो। "
मुनि : "मुझे ऐसा पुत्र दें जो अजेय हो, जिसे कोई हरा न सके। सारे शस्त्र निस्तेज हो जायें। कोई उसका सामना न कर सके।"
शिव : "तुम्हारा पुत्र संसार मे अजेय होगा। कोई अस्त्र शस्त्र से हत्या नहीं होगी। सूर्यवंशी या चंद्रवंशी कोई योद्धा उसे परास्त नहीं कर पायेगा। यह वरदान मांगने के पीछे तुम्हारे भोग विलास की इच्छा छिपी हुई है। हमारे वरदान से तुम्हें राजसी वैभव प्राप्त होगा।"

उसके बाद ऋषि शेशिरायण का शरीर अति सुन्दर हो गया। वरदान प्राप्ति के पश्चात ऋषि शेशिरायण एक झरने के पास से जा रहे थे कि उन्होंने एक स्त्री को जल क्रीडा करते देखा जो अप्सरा रम्भा थी। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए और उनका पुत्र कालयवन हुआ। 'रंभा' समय समाप्ति पर स्वर्गलोक वापस चली गयी और अपना पुत्र ऋषि को सौंप गयी। रम्भा के जाते ही ऋषि का मन पुन: भक्ति में लग गया।

काल जंग

मलीच देश पर वीर प्रतापी राजा राज करता था - काल जंग समस्त राजा उससे डरते थे। उसे कोई संतान ना थी, जिसके कारण वह परेशान रहता था। उसका मंत्री उसे आनंदगिरी पर्वत के बाबा के पास ले गया। उन्होंने उसे बताया की वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले। ऋषि शेशिरायण पहले तो नहीं माने, पर जब उन्हें बाबा जी के वाणी और यह कि उन्हें शिव जी के वरदान के बारे में पता था, यह सुन उन्होंने अपने पुत्र को काल जुंग को दे दिया। इस प्रकार कालयवन यवन देश का राजा बना। उसके समान वीर कोई ना था। एक बार उसने नारद जी से पूछा कि वह किससे युद्ध करे, जो उसके सामान वीर हो। नारद जी ने उससे श्री कृष्ण का नाम बताया।

शल्य ने कालयवन को मथुरा पर आक्रमण के लिए मनाया और वह मान गया। कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण के लिए सब तैयारियां कर ली। दूसरी ओर जरासंध भी सेना ले कर निकल गया।

कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया. उसने मथुरा नरेश के नाम सन्देश भेजा की कालयवन युध्ह की एक दिन का समय दीया . श्री कृष्ण ने उत्तर मे भेजा के युध्ह केवल कृष्ण ओर कालयवन मे हो सेना को व्यर्थ क्यूँ लार्डे . कालयवन ने स्वीकार कर लिया .

यह सुन अक्रूरजी ओर बलरामजी चिंतित हो गए तब श्री कृष्ण ने उन्हें कालयवन को शिव द्वारा देये वरदान के बारे मे बताया. और यह बताया की वे उसे रजा मुचुकुन्द के द्वारा मृतु देंगे

मुचुकुन्द

रजा मुचुकुन्द त्रेता युग का इश्वकू वंश के राजा थे .उनके पिता मान्धाता थे . उन्होंने देवताओं का साथ देय और दानवों का संघर क्या जेस के कारन देवता युद्ध जीत गए . इन्द्र ने उन्हें वर मांगने को कहा . तब उन्होंने वापस पृथ्वीलोक जाने की इच्चा व्यक्त की तब इन्द्र ने उन्हें बताया की पृथ्वी पर ओर देवलोक मे समय का बहुत अंतर है जेस कारन अब वह समय नाहे रहा ओर सब बंधू मर चुके है उनके वंश का कोई नाहे बचा . यह जान मुचुकंद दुह्खे हुए ओर वर माँगा की उन्हें सोना है तब इन्द्र ने वरदान देय की केसे निर्जन स्थान पर सो जाये यादे कोई उठाएगा तो मुचुकंद की दृष्टि परते ही वह जल जायेगा .




टीका टिप्पणी और संदर्भ

अन्य लिंक