कुणाल
कुणाल / Kunal
सम्राट अशोक के एक पुत्र का नाम ‘कुणाल’था ।हिमालय की तराइयों में कुणाल एक पक्षी पाया जाता है जिसकी आँखे बहुत ही सुन्दर होती हैं। इस बालक के नयन कुणाल पक्षी के सदृश थे। बौद्ध ग्रंथों में कुणाल की कहानी मिलती है। ‘कुणाल अवदाना’ के अनुसार पाटलिपुत्र के सम्राट अशोक की अनेकों रानियाँ थीं। उनमे से एक पद्मावती (जैन मतावलंबी) थी, जिसके पुत्र का नाम कुणाल था। उसे वीर कुणाल और ‘धर्म विवर्धना’ कह कर संबोधित किया गया है। कुणाल की आँखें बहुत सुंदर थी और उसमें लोगों को सम्मोहित करने की भी विशेषता थी। वह ऊर्जा से भरपूर था और गठीला बदन उसके पौरुष की पहचान थी। उसकी अनेकों विमाताओं में एक का नाम तिश्यरक्षा था। सम्राट अशोक की युवा रानी,जो बहुत ही सुन्दर थी। उसके सामने अप्सराएँ भी शर्माती थीं। तिश्यरक्षा कुणाल की आँखों के सम्मोहन से मोहित हो गयी और उसके प्रेम के लिए इतनी आतुर हो गयी कि एक दिन कुणाल को अपने कक्ष में बुलाकर अपने बाहुपाश में जकड लेती है और प्रणय निवेदन करने लगती है. कुणाल किसी तरह अपने आप को अलग कर, अपनी विमाता को धिक्कारते हुए, कलंकित होने से बच निकलता है. इस प्रकार तिरस्कृत किया जाना तिश्यरक्षा के लिए असहनीय था. क्रोध से काँपते हुए अपनी शैय्या में गिर कर लोटने लगती है. कुछ देर बाद सहज होकर ध्रिड निश्चय करती है कि वह उन आँखों से बदला लेगी जिसने उसे आसक्त किया था. कुछ दिन बीत गये. तक्षशिला से समाचार मिला कि वहाँ का राज्यपाल (संभवतः तिश्यरक्षा के कहने पर) बग़ावत पर उतारू है. उसे नियंत्रित करने के लिए सम्राट अशोक ने अपने पुत्र कुणाल को चुना. कुणाल अपनी पत्नी कंचनमाला को साथ ले, जिसके प्रति वह पूर्ण निष्ठावान था, एक सैनिक टुकड़ी के साथ तक्षशिला की ओर कूच कर गया. इधर सम्राट अशोक अपने प्रिय पुत्र कुणाल के विरह में बुरी तरह बीमार पड़ गया. तिश्यरक्षा की देखभाल और दिन रात की सेवा से सम्राट अशोक पुनः स्वस्थ हो गया. सम्राट ने प्रतिफल स्वरूप तिश्यरक्षा को एक साप्ताह तक साम्राज्ञी के रूप में साम्राज्य के एकल संचालन के लिए अधिकृत कर दिया. तिश्यरक्षा ने इस अवसर का फायदा उठाना चाहा और तक्षशिला के राज्यपाल को निर्देशित किया कि वह कुणाल की आँखें निकाल दे. यह पत्र धोके से कुणाल के हातों पड़ गया और अपनी विमाता की इक्षा पूर्ति करते हुए उसने स्वयं अपने ही हाथों अपनी आँखें फोड़ लीं. कंचनमाला अंधे कुणाल को साथ लेकर वापस पाटलीपुत्र पहुँचती है. सम्राट अशोक को तिश्यरक्षा के षड्यंत्र की कोई जानकारी नहीं रहती. वह तो केवल यही जनता था कि उसका प्रिय पुत्र अब अँधा हो गया है. अपने पुत्र की दयनीय अवस्था को देख सम्राट की आँखों से अनवरत अश्रु धारा बहने लगती है. कुणाल को अपनी विमाता से कोई द्वेष नहीं था और उसके मन में उसके प्रति आदर भाव यथावत रहा. कुणाल की निश्चलता के कारण कालांतर में उसे उसकी दृष्टि वापस मिल जाती है. एक और कहानी के अनुसार सम्राट अशोक अपने आठ वर्षीय पुत्र कुणाल को लालन पालन एवं विद्यार्जन के लिए उज्जैन भेजता है. वह कुणाल के भावी गुरु को प्राकृत में पत्र लिखता है और शिक्षा प्रारंभ करने के लिए “अधियव” शब्द का प्रयोग करता है. तिश्यरक्षा उस पत्र को पढ़ती है और अपने स्वयं के पुत्र को उत्तराधिकारी बनाने की नीयत से “अधियव” शब्द को परिवर्तित कर “अन्धियव” कर देती है. अब इस से आशय यह बनता है कि कुणाल अंधत्व को प्राप्त हो. यहाँ भी पत्र युवा कुणाल के हाथों मे लग जाता है और वह स्वयं अपने ही हाथों से अपने आँखों की पुतलियाँ निकाल देता है. “अशोकवदना” के अनुसार कहानी का अंत कुछ भिन्न है. जब सम्राट अशोक को सही जानकारी मिलती है तो वह अपने प्रधान मंत्री यश की सलाह पर तिश्यरक्षा को जिंदा ही जलवा देता है. एक बौद्ध भिक्षु “गॉश” या “घोष” की चिकित्सा से कुणाल को अपनी दृष्टि वापस मिल जाती है. कहा जाता है कि पूर्व जन्म में कुणाल ने ५०० हिरणों की आँखें ली थीं जिसका फल उसे भुगतना पड़ा था. एक और कहानी के अनुसार अँधा कुणाल वर्षों बाद अशोक के दरबार में एक संगीतकार के रूप में पहुंकता है और अपने गायन से सम्राट को प्रसन्न कर देता है. सम्राट इस गायक से अपने लिए उपहार चुनने के लिए कहता है जिसके उत्तर में गायक कहता है “मै कुणाल हूँ, मुझे साम्राज्य चाहिए”. अशोक दुखी होते हुए कहता है कि अंधत्व के कारण तुम अब इस योग्य नहीं रहे. तब कुणाल बताता है कि साम्राज्य उसे नहीं वरन उसके बेटे के लिए चाहिए. आश्चर्य से अशोक पूछता है कि तुम्हे पुत्र कब हुआ. “संप्रति” अर्थात अभी अभी और यही नाम कुणाल के पुत्र का रख दिया गया. उसे अशोक का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया गया हालाकि अभी वह गोद में ही था. ऐसा कहा जाता है कि कुमार कुणाल ने मिथिला में अपना राज्य स्थापित किया था. भारत – नेपाल सीमा पर कोसी नदी के तट पर वर्तमान कुनौली ग्राम ही कभी कुणाल की नगरी रही होगी.