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− | *[[मथुरा]] भ्रमण के समय [[श्रीकृष्ण]], [[बलराम]] यहीं पर [[कंस]] की दासी | + | *[[मथुरा]] भ्रमण के समय [[श्रीकृष्ण]], [[बलराम]] यहीं पर [[कंस]] की दासी [[कुब्जा दासी|कुब्जा]] से मिले थे। |
*कुब्जा ने प्रीतिपूर्वक श्रीकृष्ण बलराम के अंगों में अंगराग सुशोभित किया था। | *कुब्जा ने प्रीतिपूर्वक श्रीकृष्ण बलराम के अंगों में अंगराग सुशोभित किया था। | ||
*श्रीकृष्ण ने देखते -देखते ही उसकी कमर और ठोढ़ी को अपने हाथों से स्पर्श कर उसे अप्सरा जैसी परम सुन्दरी किशोरी के रूप में परिणत कर दिया। | *श्रीकृष्ण ने देखते -देखते ही उसकी कमर और ठोढ़ी को अपने हाथों से स्पर्श कर उसे अप्सरा जैसी परम सुन्दरी किशोरी के रूप में परिणत कर दिया। | ||
*कुब्जा ने काम भरी लजीली आँखों से उनकी ओर देखकर उन्हें अपने घर ले जाना चाहा, किन्तु श्रीकृष्ण अपना कार्य पूर्ण होने पर पीछे आने का वचन देकर चले गये। | *कुब्जा ने काम भरी लजीली आँखों से उनकी ओर देखकर उन्हें अपने घर ले जाना चाहा, किन्तु श्रीकृष्ण अपना कार्य पूर्ण होने पर पीछे आने का वचन देकर चले गये। | ||
− | *कंस–वध के | + | *कंस–वध के पश्चात कृष्ण ने [[उद्धव|उद्धवजी]] के साथ उसके इसी निवास स्थान पर कुछ समय के लिए उपस्थित होकर उसका मनोरथ पूर्ण किया। |
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१३:२९, २० फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण
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कुब्जा कूप / Kubja Kup
- मथुरा भ्रमण के समय श्रीकृष्ण, बलराम यहीं पर कंस की दासी कुब्जा से मिले थे।
- कुब्जा ने प्रीतिपूर्वक श्रीकृष्ण बलराम के अंगों में अंगराग सुशोभित किया था।
- श्रीकृष्ण ने देखते -देखते ही उसकी कमर और ठोढ़ी को अपने हाथों से स्पर्श कर उसे अप्सरा जैसी परम सुन्दरी किशोरी के रूप में परिणत कर दिया।
- कुब्जा ने काम भरी लजीली आँखों से उनकी ओर देखकर उन्हें अपने घर ले जाना चाहा, किन्तु श्रीकृष्ण अपना कार्य पूर्ण होने पर पीछे आने का वचन देकर चले गये।
- कंस–वध के पश्चात कृष्ण ने उद्धवजी के साथ उसके इसी निवास स्थान पर कुछ समय के लिए उपस्थित होकर उसका मनोरथ पूर्ण किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लिंक
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