"कृष्ण काल" के अवतरणों में अंतर

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मैत्रायणी उपनिषद् सबसे पीछे का उपनिषद् कहा जाता है और उसमें छांदोग्योपनिषद् के अवतरण मिलते है, इसलिए छांदोग्य मैत्रीयणी से पूर्व का उपनिषद् हुआ । शतपथ ब्राह्मण और उपनिषद् आजकल के विद्वानों के मतानुसार एक ही काल की रचनाएं हैं, अत: छांदोग्य का काल भी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व का हुआ । छांदोग्य उपनिषद् में देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख मिलता है । ( छान्दोग्य उपनिषद्,प्रथम भाग,खण्ड 17) “देवकी पुत्र” विशेषण के कारण उक्त उल्लेख के कृष्ण स्पष्ट रूप से वृष्णि वंश के कृष्ण हैं । इस प्रकार कृष्ण का समय प्राय: 5000 वर्ष पूर्व का ज्ञात होता है ।" - डा प्रभुदयाल मीतल  
 
मैत्रायणी उपनिषद् सबसे पीछे का उपनिषद् कहा जाता है और उसमें छांदोग्योपनिषद् के अवतरण मिलते है, इसलिए छांदोग्य मैत्रीयणी से पूर्व का उपनिषद् हुआ । शतपथ ब्राह्मण और उपनिषद् आजकल के विद्वानों के मतानुसार एक ही काल की रचनाएं हैं, अत: छांदोग्य का काल भी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व का हुआ । छांदोग्य उपनिषद् में देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख मिलता है । ( छान्दोग्य उपनिषद्,प्रथम भाग,खण्ड 17) “देवकी पुत्र” विशेषण के कारण उक्त उल्लेख के कृष्ण स्पष्ट रूप से वृष्णि वंश के कृष्ण हैं । इस प्रकार कृष्ण का समय प्राय: 5000 वर्ष पूर्व का ज्ञात होता है ।" - डा प्रभुदयाल मीतल  
 
डा मीतल ने किस आधार पर छांदोग्योपनिषद्  को 5000 वर्ष प्राचीन बताया है यह कहीं उल्लेख नहीं है । छांदोग्योपनिषद् के ई पू 500 से 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन होने के प्रमाण नहीं मिलते । ( यदि प्रमाण हों तो पाठकों से निवेदन है कि ब्रज डिस्कवरी को अवश्य भेजें । साथ ही ज्योतिष गणनाओं का कोई अन्य आधार जो प्रमाणिक हो अवश्य भेजें ।)
 
डा मीतल ने किस आधार पर छांदोग्योपनिषद्  को 5000 वर्ष प्राचीन बताया है यह कहीं उल्लेख नहीं है । छांदोग्योपनिषद् के ई पू 500 से 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन होने के प्रमाण नहीं मिलते । ( यदि प्रमाण हों तो पाठकों से निवेदन है कि ब्रज डिस्कवरी को अवश्य भेजें । साथ ही ज्योतिष गणनाओं का कोई अन्य आधार जो प्रमाणिक हो अवश्य भेजें ।)
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==कृष्ण का समय==
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डा मीतल लिखते हैं -" परीक्षित के समय में सप्तर्षि (आकाश के सात तारे) मघा नक्षत्र पर थे, जैसा शुक्रदेव द्वारा परीक्षित से कहे हुए वाक्य से प्रमाणित है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्तर्षि एक नक्षत्रपर एक सौ वर्ष तक रहते है । आजकल सप्तर्षि कृतिका नक्षत्र पर है जो मघा से 21 वां नक्षत्र है । इस प्रकार मघा के कृतिक पर आने में 2100 वर्ष लगे हैं किंतु यह 2100 वर्ष की अवधि महाभारत काल कदापि नहीं है । इससे यह मानना होगा कि मघा से आरम्भ कर 27 नक्षत्रों का एक चक्र पूरा हो चुका था और दूसरे चक्र में ही सप्तर्षि उस काल में मघा पर आये थे । पहिले चक्र के 2700 वर्ष में दूसरे चक्र के 2100 वर्ष जोड़ने से 4800 वर्ष हुए । यह काल परीक्षित की विद्यमानता का हुआ । परीक्षित के पितामह [[अर्जुन]] थे, जो आयु में श्रीकृष्ण से 18 वर्ष छोटे थे । इस प्रकार ज्योतष की उक्त गणना के अनुसार कृष्ण-काल अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व का सिद्ध होता है ।"
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आजकल के चैत्र मास के वर्ष का आरम्भ माना जाता है, जब कि कृष्ण काल में वह मार्गशीर्ष से होता था । बसन्त ऋतु भी इस काल में मार्गशीर्ष माह में होती थी । [[महाभारत]] में मार्गशीर्ष मास से ही कई स्थलों पर महीनों की गणना की गयी है । गीता में जहाँ भगवान की विभूतियों का वर्णन हुआ हैं, वहाँ “मासानां मार्गशीर्षोऽहम” और “ऋतुनां कुसुमाकर” के उल्लेखों से भी उक्त कथन की पुष्टि होती है । ज्योतिष शास्त्र के विद्धानों ने सिद्ध किया है कि मार्ग शीर्ष में वसन्त सम्पात अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व होता था । (भारतीय ज्योतिषशाला,पृष्ठ 34) इस प्रकार भी श्रीकृष्ण काल के 5000 वर्ष प्राचीन होने की पुष्टि होती है ।
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श्रीकृष्ण द्वापर युग के अन्त और कलियुग के आरम्भ के सन्धि-काल में विद्यमान थे । भारतीय ज्योतिषियों के मतानुसार कलियुग का आरम्भ [[शक]] संवत् से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शु. 1 को हुआ था । आजकल 1887 शक संवत् है । इस प्रकार कलियुग को आरम्भ हुए 5066 वर्ष हो गये है । कलियुग के आरम्भ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरम्भ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था । उस समय श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष की थी । उनका तिरोधान 119 वर्ष की आयु में हुआ था । इस प्रकार भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत् पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत् पूर्व 3144 तक है । भारत के विख्यात ज्योतिषी वराह मिहिर, आर्यभट, [[ब्रह्मगुप्त]] आदि के समय से ही यह मान्यता प्रचलित है । भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत् जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है ।
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पुरातत्ववेत्ताओं  का मत है कि अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व एक प्रकार का प्रलय हुआ था । उस समय भयंकर भूकम्प और आंधी तूफानों से समुद्र में बड़ा भारी उफान आया था । उस समय नदियों के प्रवाह परिवर्तित हो गये थे, विविध स्थानों पर ज्वालामुखी पर्वत फूट पड़े थे और पहाड़ के श्रृंग टूट-टूटकर गिर गये थे । वह भीषण दैवी दुर्घटना वर्तमान इराक में बगदाद के पास और वर्तमान मैक्सिको के प्राचीन प्रदेशों में हुई थी, जिसका काल 5000 वर्ष पूर्व का माना जाता है । उसी प्रकार की दुर्घटनाओं का वर्णन महाभारत और भागवत आदि [[पुराणों]] भी मिलता है । इनसे ज्ञात होता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् उसी प्रकार के भीषण भूकम्प हस्तिनापुर और द्वारिका में भी हुए थे, जिनके कारण द्वारिका तो सर्वथा नष्ट ही हो गयी थी ।
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बगदाद और [[हस्तिनापुर]] तथा प्राचीन मग प्रदेश और [[द्वारिका]] प्राय: एक से आक्षांशों पर स्थित हैं, अत: उनकी दुर्घटनाओं का पारिस्परिक सम्बन्ध विज्ञान सम्मत है । बगदाद प्रलय के पश्चात वहाँ बताये गये “उर” नगर को तथा मैक्सिको स्थित मय प्रदेश के ध्वंस को जब 5000 वर्ष प्राचीन माना जा सकता है, जब [[महाभारत]] और भागवत में वर्णित वैसी ही घटनाओं, जो कृष्ण के समय में हुई थी, उसी काल का माना जायगा । ऐसी दशा में पुरातत्व के साक्ष्य से भी कृष्ण-काल 5000 वर्ष प्राचीन सिद्ध होता है । यह दूसरी बात है कि महाभारत और [[भागवत]] ग्रंथों की रचना बहुत बाद में हुई थी, किंतु उनमें वर्णित कथा 5000 वर्ष पुरानी ही है ।
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ज्योतिष और पुरातत्व के अतिरिक्त इतिहास के प्रमाण से भी कृष्ण-काल विषयक भारतीय मान्यता की पुष्टि होती है । यवन नरेश सैल्युक्स ने [[मैगस्थनीज]] नामक अपना एक राजदूत भारतीय नरेश चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था । मैगस्थनीज ने उस समय के अपने अनुभव लेखबद्ध किये थे । इस समय उस यूनान राजदूत का मूल ग्रंन्थ तो नहीं मिलता है, किंतु उसके जो अंश एरियन आदि अन्य यवन लेखकों ने उद्धृत किये थे, वे प्रकाशित हो चुके है ।
 
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१२:३८, १९ मई २००९ का अवतरण

पौराणिक इतिहास मौर्य काल शुंग काल शक-कुषाण काल गुप्त काल मध्य काल
आदिम काल
आदिम काल (कृष्ण पूर्व काल)
कृष्ण काल

कृष्ण काल

संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया । - डा राम मनोहर लोहिया


श्री कृष्ण के समय का निर्धारण विभिन्न विद्वानों ने किया है । अनेक इतिहासकार कृष्ण को ऐतिहासिक चरित्र नहीं मानते । यूँ भी आस्था के प्रश्नों का हल इतिहास में तलाशने का कोई अर्थ नहीं है ( लेकिन क्या करें ? इसमें आनन्द आता है) । आपने जो इतिहास की सामग्री अक्सर ख़ँगाली होगी वह संभवतया कृष्ण की ऐतिहासिता पर अनेक प्रश्नचिन्ह लगाती होगी । हमारा प्रयास है कि जो जैसा उपलब्ध है । आप तक पहुँचायें । आजकल के कई विद्वान श्री कृष्ण को 3500 वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं मानते है । भारतीय मान्यता के अनुसार कृष्ण का काल 5000 वर्ष से भी कुछ अधिक पुराना लगता है । इसका वैज्ञानिक और ऐतिहासिक आधार भी कुछ विद्वानों ने सिद्ध करने का प्रयास किया है ।

श्रीकृष्ण का समय के संबंध में श्री कृष्ण दत्त वाजपेयी का मत- "वर्तमान ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग ई० पू० 1500 माना जाता है । ये सम्भवत: 100 वर्ष से कुछ ऊपर की आयु तक जीवित रहे । अपने इस दीर्घजीवन में उन्हें विविध प्रकार के कार्यो में व्यस्त रहना पड़ा । उनका प्रारंभिक जीवन तो ब्रज में कटा और शेष द्वारका में व्यतीत हुआ । बीच-बीच में उन्हें अन्य अनेक जनपदों में भी जाना पडा़ । जो अनेक घटनाएं उनके समय में घटी उनकी विस्तृत चर्चा पुराणों तथा महाभारत में मिलती है । वैदिक साहित्य में तो कृष्ण का उल्लेख बहुत कम मिलता है और उसमें उन्हें मानव-रूप में ही दिखाया गया है, न कि नारायण का विष्णु के अवतार रूप में । [१]" -श्री कृष्ण दत्त वाजपेयी

डा प्रभुदयाल मीतल द्वारा प्रस्तुत प्रमाण कृष्ण काल को 5000 वर्ष पूर्व का प्रमाणित करते हैं उन्होंने छांदोग्योपनिषद् के श्लोक का हवाला दिया है । [२] ज्योतिष का प्रमाण देते हुए श्री मीतल लिखते हैं- "मैत्रायणी उपनिषद् और शतपथ ब्राह्मण के “कृतिका स्वादधीत” उल्लेख से तत्कालीन खगोल-स्थिति की गणना कर ट्रेनिंग कालेज, पूना के गणित प्राध्यापक स्व. शंकर बालकृष्ण दीक्षित महोदय ने मैत्रायणी उपनिषद् की ईसवी सन् ने 1600 पूर्व का और शतपथ ब्राह्मण को 3000 वर्ष का माना था ।

मैत्रायणी उपनिषद् सबसे पीछे का उपनिषद् कहा जाता है और उसमें छांदोग्योपनिषद् के अवतरण मिलते है, इसलिए छांदोग्य मैत्रीयणी से पूर्व का उपनिषद् हुआ । शतपथ ब्राह्मण और उपनिषद् आजकल के विद्वानों के मतानुसार एक ही काल की रचनाएं हैं, अत: छांदोग्य का काल भी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व का हुआ । छांदोग्य उपनिषद् में देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख मिलता है । ( छान्दोग्य उपनिषद्,प्रथम भाग,खण्ड 17) “देवकी पुत्र” विशेषण के कारण उक्त उल्लेख के कृष्ण स्पष्ट रूप से वृष्णि वंश के कृष्ण हैं । इस प्रकार कृष्ण का समय प्राय: 5000 वर्ष पूर्व का ज्ञात होता है ।" - डा प्रभुदयाल मीतल डा मीतल ने किस आधार पर छांदोग्योपनिषद् को 5000 वर्ष प्राचीन बताया है यह कहीं उल्लेख नहीं है । छांदोग्योपनिषद् के ई पू 500 से 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन होने के प्रमाण नहीं मिलते । ( यदि प्रमाण हों तो पाठकों से निवेदन है कि ब्रज डिस्कवरी को अवश्य भेजें । साथ ही ज्योतिष गणनाओं का कोई अन्य आधार जो प्रमाणिक हो अवश्य भेजें ।)

कृष्ण का समय

डा मीतल लिखते हैं -" परीक्षित के समय में सप्तर्षि (आकाश के सात तारे) मघा नक्षत्र पर थे, जैसा शुक्रदेव द्वारा परीक्षित से कहे हुए वाक्य से प्रमाणित है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्तर्षि एक नक्षत्रपर एक सौ वर्ष तक रहते है । आजकल सप्तर्षि कृतिका नक्षत्र पर है जो मघा से 21 वां नक्षत्र है । इस प्रकार मघा के कृतिक पर आने में 2100 वर्ष लगे हैं किंतु यह 2100 वर्ष की अवधि महाभारत काल कदापि नहीं है । इससे यह मानना होगा कि मघा से आरम्भ कर 27 नक्षत्रों का एक चक्र पूरा हो चुका था और दूसरे चक्र में ही सप्तर्षि उस काल में मघा पर आये थे । पहिले चक्र के 2700 वर्ष में दूसरे चक्र के 2100 वर्ष जोड़ने से 4800 वर्ष हुए । यह काल परीक्षित की विद्यमानता का हुआ । परीक्षित के पितामह अर्जुन थे, जो आयु में श्रीकृष्ण से 18 वर्ष छोटे थे । इस प्रकार ज्योतष की उक्त गणना के अनुसार कृष्ण-काल अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व का सिद्ध होता है ।"

आजकल के चैत्र मास के वर्ष का आरम्भ माना जाता है, जब कि कृष्ण काल में वह मार्गशीर्ष से होता था । बसन्त ऋतु भी इस काल में मार्गशीर्ष माह में होती थी । महाभारत में मार्गशीर्ष मास से ही कई स्थलों पर महीनों की गणना की गयी है । गीता में जहाँ भगवान की विभूतियों का वर्णन हुआ हैं, वहाँ “मासानां मार्गशीर्षोऽहम” और “ऋतुनां कुसुमाकर” के उल्लेखों से भी उक्त कथन की पुष्टि होती है । ज्योतिष शास्त्र के विद्धानों ने सिद्ध किया है कि मार्ग शीर्ष में वसन्त सम्पात अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व होता था । (भारतीय ज्योतिषशाला,पृष्ठ 34) इस प्रकार भी श्रीकृष्ण काल के 5000 वर्ष प्राचीन होने की पुष्टि होती है ।

श्रीकृष्ण द्वापर युग के अन्त और कलियुग के आरम्भ के सन्धि-काल में विद्यमान थे । भारतीय ज्योतिषियों के मतानुसार कलियुग का आरम्भ शक संवत् से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शु. 1 को हुआ था । आजकल 1887 शक संवत् है । इस प्रकार कलियुग को आरम्भ हुए 5066 वर्ष हो गये है । कलियुग के आरम्भ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरम्भ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था । उस समय श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष की थी । उनका तिरोधान 119 वर्ष की आयु में हुआ था । इस प्रकार भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत् पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत् पूर्व 3144 तक है । भारत के विख्यात ज्योतिषी वराह मिहिर, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त आदि के समय से ही यह मान्यता प्रचलित है । भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत् जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है ।

पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि अब से प्राय: 5000 वर्ष पूर्व एक प्रकार का प्रलय हुआ था । उस समय भयंकर भूकम्प और आंधी तूफानों से समुद्र में बड़ा भारी उफान आया था । उस समय नदियों के प्रवाह परिवर्तित हो गये थे, विविध स्थानों पर ज्वालामुखी पर्वत फूट पड़े थे और पहाड़ के श्रृंग टूट-टूटकर गिर गये थे । वह भीषण दैवी दुर्घटना वर्तमान इराक में बगदाद के पास और वर्तमान मैक्सिको के प्राचीन प्रदेशों में हुई थी, जिसका काल 5000 वर्ष पूर्व का माना जाता है । उसी प्रकार की दुर्घटनाओं का वर्णन महाभारत और भागवत आदि पुराणों भी मिलता है । इनसे ज्ञात होता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् उसी प्रकार के भीषण भूकम्प हस्तिनापुर और द्वारिका में भी हुए थे, जिनके कारण द्वारिका तो सर्वथा नष्ट ही हो गयी थी ।

बगदाद और हस्तिनापुर तथा प्राचीन मग प्रदेश और द्वारिका प्राय: एक से आक्षांशों पर स्थित हैं, अत: उनकी दुर्घटनाओं का पारिस्परिक सम्बन्ध विज्ञान सम्मत है । बगदाद प्रलय के पश्चात वहाँ बताये गये “उर” नगर को तथा मैक्सिको स्थित मय प्रदेश के ध्वंस को जब 5000 वर्ष प्राचीन माना जा सकता है, जब महाभारत और भागवत में वर्णित वैसी ही घटनाओं, जो कृष्ण के समय में हुई थी, उसी काल का माना जायगा । ऐसी दशा में पुरातत्व के साक्ष्य से भी कृष्ण-काल 5000 वर्ष प्राचीन सिद्ध होता है । यह दूसरी बात है कि महाभारत और भागवत ग्रंथों की रचना बहुत बाद में हुई थी, किंतु उनमें वर्णित कथा 5000 वर्ष पुरानी ही है ।

ज्योतिष और पुरातत्व के अतिरिक्त इतिहास के प्रमाण से भी कृष्ण-काल विषयक भारतीय मान्यता की पुष्टि होती है । यवन नरेश सैल्युक्स ने मैगस्थनीज नामक अपना एक राजदूत भारतीय नरेश चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था । मैगस्थनीज ने उस समय के अपने अनुभव लेखबद्ध किये थे । इस समय उस यूनान राजदूत का मूल ग्रंन्थ तो नहीं मिलता है, किंतु उसके जो अंश एरियन आदि अन्य यवन लेखकों ने उद्धृत किये थे, वे प्रकाशित हो चुके है ।


  1. श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता तथा तत्संबंधी अन्य समस्याओं के लिए देखिए- राय चौधरी-अर्ली हिस्ट्री आफ वैष्णव सेक्ट, पृ० 39, 52; आर०जी० भंडारकार-ग्रंथमाला, जिल्द 2, पृ० 58-291; विंटरनीज-हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द 1, पृ० 456; मैकडॉनल तथा कीथ-वैदिक इंडेक्स, जि० 1, पृ० 184; ग्रियर्सन-एनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजंस (`भक्ति' पर निबंध); भगवानदास-कृष्ण; तदपत्रिकर-दि कृष्ण प्रायलम; पार्जीटर-ऎश्यंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रेडीशन आदि।
  2. तध्दैत्दघोर आगिंरस कृष्ण्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स बभूव सोऽन्तवेलायामेतत्त्रय प्रतिपद्ये ताक्षितमस्यच्युतमसि प्राण्सँशितमसीति तत्रैते द्वे ॠचौ भवत: ॥ छांदोग्य उपनिषद् (3,17,6), जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य कहा है। परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या विष्णु रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है (दे० तैत्तिरीय आरण्यक, 10, 1, 6; पाणिनि-अष्टाध्यायी, 4, 3, 98 आदि)। महाभारत तथा हरिवंश, विष्णु, ब्रह्म, वायु, भागवत, पह्म, देवी भागवत अग्नि तथा ब्रह्मवैबर्त पुराणों में उन्हें प्राय: भागवान् रूप में ही दिखाया गया है। इन ग्रंथो में यद्यपि कृष्ण के आलौकिक तत्व की प्रधानता है तो भी उनके मानव या ऐतिहासिक रूप के भी दर्शन यत्र-तत्र मिलते हैं। पुराणों में कृष्ण-संबंधी विभिन्न वर्णनों के आधार पर कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह कल्पना करने का अवसर मिला कि कृष्ण ऐतिहासिक पुरूष नहीं थे। इस कल्पना की पुष्टि में अनेक दलीलें दी गई हैं, जो ठीक नहीं सिद्ध होती। यदि महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त, ब्राह्मण-ग्रंथों तथा उपनिषदों के उल्लेख देखे जायें तो कृष्ण के ऐतिहासिक तत्व का पता चल जायगा। बौद्ध-ग्रंथ घट जातक तथा जैन-ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र से भी श्रीकृष्ण का ऐतिहासिक होना सिद्ध है। यह मत भी भ्रामक है कि ब्रज के कृष्ण, द्वारका के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थ