कोटवन

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कोटवन / Kotvan

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कोसी तथा होडल के बीच में दिल्ली-मथुरा राजमार्ग के आसपास कोटवन है। इसका पूर्व नाम कोटरवन है। यह स्थान चरणपहाड़ी से चार मील उत्तर और कुछ पूर्व में है यहाँ शीतल कुण्ड है और सूर्यकुण्ड दर्शनीय है। यह कृष्ण के गोचारण और क्रीड़ा-विलास का स्थान है ।

शेषशाई

वासोली से डेढ़ मील दक्षिण तथा कुछ पूर्व दिशा में एक लीला स्थली विराजमान है । पास में ही क्षीरसागर ग्राम है । क्षीरसागर के पश्चिमी तट पर मन्दिर में भगवान अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे हैं तथा लक्ष्मीजी उनकी चरण सेवा कर रही हैं।

प्रसंग

किसी समय कौतुकी कृष्ण राधिका एवं सखियों के साथ यहाँ विलास कर रहे थे। किसी प्रसंग में उनके बीच में अनन्तशायी भगवान विष्णु की कथा-चर्चा उठी। राधिका के हृदय में अनन्तशायी विष्णु की शयन लीला देखने की प्रबल इच्छा हो गयी।अत: कृष्ण ने स्वयं उन्हें लीला का दर्शन कराया। अनन्तशायी के भाव में आविष्ट हो श्रीकृष्ण ने क्षीरसागर के मध्य सहस्त्र दल कमल के ऊपर शयन किया और राधिका ने लक्ष्मी के आवेश में उनके चरणों की सेवा की। गोपी-मण्डली इस लीला का दर्शनकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुई। श्री रघुनाथदास गोस्वामी ने ब्रजविलास स्तव में इस लीला को इंगित किया है। अतिशय कोमलांगी राधिका श्रीकृष्ण के अतिश कोमल सुमनोहर चरण कमलों को अपने वक्षस्थल के समीप लाकर भी उन्हें अपने वक्षस्थल पर इस भय से धारण नहीं कर सकीं कि कहीं हमारे कर्कश कुचाग्र के स्पर्श से उन्हें कष्ट न हो। उन शेषशायी कृष्ण के मनोरम गोष्ठ में मेरी स्थिति हो।[१] श्रीचैतन्य महाप्रभु ब्रजदर्शन के समय यहाँ पर उपस्थित हुए थे तथा इस लीलास्थली का दर्शनकर प्रेमाविष्ट हो गये। यहाँ मनोहर कदम्ब वन है, यहीं पर प्रौढ़नाथ तथा हिण्डोले का दर्शन है। पास ही श्रीवल्लभाचार्य जी की बैठक है।

खामी गाँव

इसका अन्य नाम खम्बहर है। यह गाँव ब्रज की सीमा पर स्थित है। श्रीवज्रनाभ महाराज ने ब्रज की सीमा का निर्णय करने के लिए यहाँ पर पत्थर का एक खम्बा गाढ़ा था। पास ही वनचारी गाँव भी है। ये दोनों गाँव ब्रज की उत्तर-पश्चिम सीमा पर होड़ल से चार मील उत्तर-पूर्व में स्थित हैं। यहाँ लक्ष्मीनारायण और महादेवीजी के दर्शन है ।

खयेरो

इसका दूसरा नाम खरेरो भी है। द्वारकापुरी से आकर यहाँ बलदेवजी ने सखाओं से खैर अर्थात मंगल समाचार पूछा था। यह गोचारण का स्थान है। यह स्थान शेषशाई से चार मील दक्षिण में (कुछ पूर्व में) स्थित है।

बनछौली

यह गाँव खरेरो से ढ़ाई मील पूर्व तथा पयगाँव से चार मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यहाँ पर कृष्ण की रासलीला हुई थी।

ऊजानी

यह गाँव पयगाँव से चार मील उत्तर-पूर्व में छाता –शेरगढ़ राजमार्ग के निकट स्थित है। श्रीकृष्ण की सुमधर वंशीध्वनि को सुनकर यमुनाजी उल्टी बहने लगी थीं। ऊजानी शब्द का अर्थ उल्टी बहने से है। आज भी यह दृश्य यहाँ दर्शनीय है।

खेलन वन

इसका नामान्तर शेरगढ़ है। यह स्थान ऊजानी से दो मील दक्षिण-पूर्व में अवस्थित है। यहाँ पर गोचारण के समय श्रीकृष्ण और श्रीबलराम सखाओं के साथ विविध प्रकार के खेल खेलते थे। राधिका भी यहाँ अपनी सखियों के साथ खेलती थीं। इन्हीं सब कारणों से इस स्थान का नाम खेलन वन है।

प्रसंग

एक समय नन्दबाबा गोप, गोपी और गऊओं के साथ यहीं पर निवास कर रहे थे। वृषभानु बाबा भी अपने पूरे परिवार और गोधन के साथ इधर ही कहीं निवास कर रहे थे। 'जटिला और कुटिला' दोनों ही अपने को ब्रज में पतिव्रता नारी समझती थीं। ऐसा देखकर एक दिन कृष्ण ने अस्वस्थ होने का बहाना किया। उन्होंने इस प्रकार दिखलाया कि मानो उनके प्राण निकल रहे हों। यशोदाजी ने वैद्यों तथा मन्त्रज्ञ ब्राह्मणों को बुलवाया , किन्तु वे कुछ भी नहीं कर सके। अंत में योगमाया पूर्णिमाजी वहाँ उपस्थित हुईं। उन्होंने कहा-यदि कोई पतिव्रता नारी मेरे दिये हुए सैंकड़ों छिद्रों से युक्त इस घड़े में यमुना का जल भर लाये और मैं मन्त्रद्वारा कृष्ण का अभिषेक कर दूँ तो कन्हैया अभी स्वस्थ हो सकता है, अन्यथा बचना असंभव है। यशोदाजी ने जटिला-कुटिला को बुलवाया और उनसे उस विशेष घड़े में यमुना जल लाने के लिए अनुरोध किया। बारी-बारी से वे दोनों यमुना के घाट पर जल भरने के लिए गई, किन्तु जल की एक बूंद भी उस घड़े में लाने में असमर्थ रहीं। वे यमुना घाट पर उक्त कलस को रखकर उधर-से-उधर ही घर लौट गयीं। अब योगमाया पूर्णिमाजी के परामर्श से मैया यशोदा जी ने राधिका से सहस्त्र छिद्रयुक्त उस घड़े में यमुना जल लाने के लिए अनुरोध किया। उनके बार-बार अनुरोध करने पर राधिका उस सहस्त्र छिद्रयुक्त घड़े में यमुनाजल भरकर ले आईं। एक बूंद जल भी उस घड़े में से नीचे नहीं गिरा। पूर्णमासी जी ने उस जल से कृष्ण का अभिषेक किया। अभिषेक करते ही कृष्ण सम्पूर्णरूप से स्वस्थ हो गये। सारे ब्रजवासी इस अद्भुत घटना को देखकर विस्मित हो गये। फिर तो सर्वत्र ही राधिका जी के पातिव्रत्य धर्म की प्रशंसा होने लगी। यहाँ बलराम कुण्ड, खेलनवन, गोपी घाट, श्रीराधागोविन्दजी, श्रीराधागोपीनाथ और श्रीराधामदनमोहन दर्शनीय हैं।

रामघाट

शेरगढ़ दो मील पूर्व में यमुना के तट पर रामघाट स्थित है। इस गाँव का वर्तमान नाम ओबे है। यहाँ बलदेवजी ने रासलीला की थी। द्वारिका में रहते-रहते श्रीकृष्ण बलराम को बहुत दिन बीत गये। उनके विरह में ब्रजवासी बड़े ही व्याकुल थे। उनको सांत्वना देने के लिए श्रीकृष्ण ने श्रीबलदेव को ब्रज में भेजा था। उस समय नन्दगोकुल यहीं आस-पास निवास कर रहा था। बलदेवजी ने चैत्र और वैशाखा दो मास नन्द ब्रज में रहकर माता-पिता, सखा और गोपियों को सांत्वना देने की भरपूर चेष्टा की।[२] अंत में गोपियों की विरह-व्याकुलता को दूर करने के लिए उनके साथ नृत्य और गीत पूर्ण रास का आयोजन किया, किन्तु उनका यह रास अपने यूथ की ब्रजयुवतियों के साथ ही सम्पन्न हुआ।[३] उस समय वरुणदेव की प्रेरणा से परम सुगन्धमयी वारूणी (वृक्षों मधुर रस) बहने लगी। प्रियाओं के साथ बलदेव जी उस सुगन्धमयी वारूणी (मधु) का पानकर रास-विलास में प्रमत्त हो गये जल-क्रीड़ा तथा गोपियों की पिपासा शान्त करने के लिए उन्होंने कुछ दूर पर बहती हुई यमुना जी को बुलाया, किन्तु न आने पर उन्होंने अपने हलके द्वारा यमुना जी को आकर्षित किया। फिर गोपियों के साथ यमुना जल में जलविहार आदि क्रीड़ाएँ कीं। आज भी यमुना अपना स्वाभाविक प्रवाह छोड़कर रामघाट पर प्रवाहित होती हैं। यमुनाजी स्वयं विशाखाजी हैं। वे कृष्ण प्रिया हैं तथा राधिका की प्रधान सहेली हैं। समुद्रगामिनी यमुना विशाखास्वरूपिणी यमुनाजी का प्रकाश हैं। उन्हीं को बलदेवजी ने अपने हलकी नींक से खींचा था, श्रीकृष्णप्रिया यमुना को नहीं। श्रीनित्यानन्द प्रभु ब्रजमंडल भ्रमण के समय यहाँ पधारे थे। इस विहार भूमि का दर्शनकर वे भावविष्ट हो गये थे। यहाँ बलरामजी के मन्दिर के पास ही एक अश्वत्थ वृक्ष है, जो बलरामजी के सखा के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहीं वह रासलीला हुई थीं।

ब्रह्मघाट

रामघाट के पास ही अत्यन्त मनोरम ब्रह्मघाट स्थित है, जहाँ ब्रह्माजी ने श्रीकृष्ण-आराधना के द्वारा बछड़े चुराने का अपराध क्षमा कराया था।

कच्छवन

रामघाट के पास ही कच्छवन है। यहाँ पर कृष्ण सखाओं के साथ कछुए बनकर खेला करते थे।

भूषणवन

कच्छवन के पास ही भूषणवन है। यहाँ गोचारण के समय सखाओं ने विविध प्रकार के पुष्पों से कृष्ण को भूषित किया था। इसलिए इसका नाम भूषणवन है।

गुञ्जवन

भूषणवन के पास ही गुञ्जवन है। यहाँ गोपियों ने गुञ्जा की माला से कृष्ण का अद्भुत श्रृंगार किया था तथा कृष्ण ने गुञ्जामाला के द्वारा राधिका का श्रृंगार किया था। रामघाट से डेढ़ मील दक्षिण- पश्चिम में बिहारवन है


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यस्य श्रीमच्चरणकमले कोमले कोमलापि' श्रीराधाचैर्निजसुखकृते सन्नयन्ती कुचाग्रे। भीतापयारादय नहि दधातयस्य कार्कशयदोषात स श्रीगोष्ठे प्रथयतु सदा शेषशायी स्थिति न:। (स्तवावली ब्रजविलास, श्लोक-91)
  2. द्वौ मासौ तत्र चावात्सीन्मधुं माधवमेव च। राम: क्षपासु भगवान् गोपीनां रतिमावहन्।। श्रीमद्भागवत /10/65/17
  3. ततश्च प्रश्यात्र वसन्तवेषौ श्रीरामकृष्णौ ब्रजसुन्दरीभि:। विक्रीडतु: स्व स्व यूथेश्वरीभि: समं रसज्ञौ कल धौत मण्डितौ।। नृत्यनतौ गोपीभि: सार्द्ध गायन्तौ रसभावितौ। गायन्तीभिश्च रामाभिर्नृत्यन्तीभिश्च शोभितौ।। (श्रीमुरारिगुप्तकृत श्रीकृष्णचैतन्यचरित)

सम्बंधित लिंक

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