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[[मैना]] और हिमालय ने आदिशक्ति के वरदान से आदिशक्ति को कन्या के रूप में प्राप्त किया। उसका नाम [[पार्वती]] रखा गया। वह भूतपर्व [[सती]] तथा आदिशक्ति थी। उसी को [[उमा]], गिरिजा और [[शिवा]] भी कहते हैं। पार्वती के विवाह संबंधी दो कथाएं हैं:
 
#पार्वती ने स्वयंवर में [[शिव]] को न देखकर स्मरण किया और वे आकाश में प्रकट हुए। पार्वती ने उन्हीं का वरण किया।  
 
#पार्वती ने स्वयंवर में [[शिव]] को न देखकर स्मरण किया और वे आकाश में प्रकट हुए। पार्वती ने उन्हीं का वरण किया।  
#हिमालय का पुरोहित पार्वती की इच्छा जानकर शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचा। शिव ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन:आग्रह पर वे मान गये। शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान कीं नाई ने वह मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रूष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आया है। नाई ने ऐसा ही कुछ जाकर राजा से कह सुनाया। पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे शिव के पास जाने की राय दी। शिव ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शिव की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुंचें। शिव हंस भर दिये और राजा के मिथ्याभिमान को नष्ट करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके [[नंदी]] का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमालय की ओर बढ़े। मार्ग में लोगों को यह बताने पर कि वे शिव हैं और पार्वती से विवाह करने आये हैं, स्त्रियों ने घेरकर उन्हें पीटा। स्त्रियां नोच, काट, खसोटकर चल दीं और शिव ने मुस्कुराकर अपनी झोली में से निकालकर ततैये उनके पीछे छोड़ दिये। उनका शरीर ततैयों के काटने से सूज गया। शुक्र और शनीचर दुखी हुए पर शिव हंसते रहे। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक सखी को बुलाकर शिव तक पहुंचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। पार्वती की प्रेरणा से हिमालय शिव की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमालय उन्हें साथ ले गये। एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमालय के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शिव ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी और वे तृप्त हो गये। हिमालय पुन:अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शिव ने गिरिजा से विवाह किया।<ref> शिव पुराण, पूर्वार्द्ध 3।8।30।,</ref>
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#हिमालय का पुरोहित पार्वती की इच्छा जानकर शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचा। शिव ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन:आग्रह पर वे मान गये। शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान कीं नाई ने वह मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रुष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आया है। नाई ने ऐसा ही कुछ जाकर राजा से कह सुनाया। पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे शिव के पास जाने की राय दी। शिव ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शिव की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुंचें। शिव हंस भर दिये और राजा के मिथ्याभिमान को नष्ट करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके [[नंदी]] का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमालय की ओर बढ़े। मार्ग में लोगों को यह बताने पर कि वे शिव हैं और पार्वती से विवाह करने आये हैं, स्त्रियों ने घेरकर उन्हें पीटा। स्त्रियां नोच, काट, खसोटकर चल दीं और शिव ने मुस्कुराकर अपनी झोली में से निकालकर ततैये उनके पीछे छोड़ दिये। उनका शरीर ततैयों के काटने से सूज गया। शुक्र और शनीचर दुखी हुए पर शिव हंसते रहे। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक सखी को बुलाकर शिव तक पहुंचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। पार्वती की प्रेरणा से हिमालय शिव की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमालय उन्हें साथ ले गये। एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमालय के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शिव ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी और वे तृप्त हो गये। हिमालय पुन:अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शिव ने गिरिजा से विवाह किया।<ref> शिव पुराण, पूर्वार्द्ध 3।8।30।,</ref>
  
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
 
 
 
 
 
==टीका-टिप्पणी==
 
 
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[[en:Girja]]
 
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०७:१६, २९ अगस्त २०१० के समय का अवतरण

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गिरिजा / Girja

मैना और हिमालय ने आदिशक्ति के वरदान से आदिशक्ति को कन्या के रूप में प्राप्त किया। उसका नाम पार्वती रखा गया। वह भूतपर्व सती तथा आदिशक्ति थी। उसी को उमा, गिरिजा और शिवा भी कहते हैं। पार्वती के विवाह संबंधी दो कथाएं हैं:

  1. पार्वती ने स्वयंवर में शिव को न देखकर स्मरण किया और वे आकाश में प्रकट हुए। पार्वती ने उन्हीं का वरण किया।
  2. हिमालय का पुरोहित पार्वती की इच्छा जानकर शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचा। शिव ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन:आग्रह पर वे मान गये। शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान कीं नाई ने वह मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रुष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आया है। नाई ने ऐसा ही कुछ जाकर राजा से कह सुनाया। पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे शिव के पास जाने की राय दी। शिव ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शिव की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुंचें। शिव हंस भर दिये और राजा के मिथ्याभिमान को नष्ट करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके नंदी का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमालय की ओर बढ़े। मार्ग में लोगों को यह बताने पर कि वे शिव हैं और पार्वती से विवाह करने आये हैं, स्त्रियों ने घेरकर उन्हें पीटा। स्त्रियां नोच, काट, खसोटकर चल दीं और शिव ने मुस्कुराकर अपनी झोली में से निकालकर ततैये उनके पीछे छोड़ दिये। उनका शरीर ततैयों के काटने से सूज गया। शुक्र और शनीचर दुखी हुए पर शिव हंसते रहे। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक सखी को बुलाकर शिव तक पहुंचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। पार्वती की प्रेरणा से हिमालय शिव की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमालय उन्हें साथ ले गये। एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमालय के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शिव ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी और वे तृप्त हो गये। हिमालय पुन:अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शिव ने गिरिजा से विवाह किया।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शिव पुराण, पूर्वार्द्ध 3।8।30।,