गीता 12:11

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गीता अध्याय-12 श्लोक-11 / Gita Chapter-12 Verse-11

प्रसंग-


यहाँ <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को जिज्ञासा हो सकती है कि यदि उपर्युक्त प्रकार से आपके लिये मैं कर्म भी न कर सकूँ तो मुझे क्या करना चाहिये । इस पर कहते हैं


अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: ।
सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान् ।।11।।



यदि मेरी प्राप्ति रूप योग के आश्रित होकर उपर्युक्त साधन को करने में भी तू असमर्थ है तो मन-बुद्धि आदि पर विजय प्राप्त करने वाला होकर सब कर्मों के फल का त्याग कर ।।11।।

If, however, you are unable to work in this consciousness, then try to act giving up all results of your work and try to be self-situated. (11)


अथ = यदि; एतत् = इसको; कर्तुम् = करने के लिये; अशक्त: =असमर्थ; असि = है; तत: = तो; यतात्मवान् = जीते हुए मनवाला(और); मद्योगम् = मेरी प्राप्तिरूप योग के; आश्रित: = शरण हुआ; सर्वकर्मफलत्यागम् = सब कर्मों के फलका मेरे लिये त्याग; कुरु = कर



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

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