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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | पूर्व श्लोक में सगुण-साकार परमेश्वर के उपासकों को उत्तम योगवेत्ता बतलाया, इस पर यह जिज्ञासा हो सकती है कि तो क्या निर्गुण निराकार | + | पूर्व श्लोक में सगुण-साकार परमेश्वर के उपासकों को उत्तम योगवेत्ता बतलाया, इस पर यह जिज्ञासा हो सकती है कि तो क्या निर्गुण निराकार ब्रह्मा के उपासक उत्तम योगवेत्ता नहीं हैं ? इस पर कहते हैं- |
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'''ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते ।'''<br/> | '''ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते ।'''<br/> | ||
− | '''सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं | + | '''सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ।।3।।'''<br/> |
'''संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: ।'''<br/> | '''संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: ।'''<br/> | ||
'''ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ।।4।।''' | '''ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ।।4।।''' | ||
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− | परन्तु जो | + | परन्तु जो पुरुष इन्द्रियों के समुदाय को भली प्रकार वश में करके मन-बुद्धि से परे सर्वव्यापी, अकथनीय स्वरूप और सदा एकरस रहने वाले, नित्य, अचल, निराकार, अविनाशी सच्चिदानन्दघन <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को निरन्तर एकीभाव से ध्यान करते हुए भजते हैं, वे सम्पूर्ण भूतों के हित में रत और सबमें समान भाव वाले योगी मुझको ही प्राप्त होते हैं ।।3-4।। |
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− | तु = और ; ये =जो | + | तु = और ; ये =जो पुरुष ; इन्द्रियग्रामम् = इन्द्रियोंके समुदायको ; संनियम्य = अच्छी प्रकार वशमें करके ; अचिन्त्यम् = मन बुद्धिसे परे ; सर्वत्रगम् = सर्वव्यापी ; अनिर्देश्यम् = अकथनीय स्वरूप ; च =और ; कूटस्थम् = सदा एकरस रहने वाले सर्वत्र = सबमें ; समबुद्धय: = समान भाव वाले योगी; ध्रुवम् = नित्य ; अचलम् = अचल ; अव्यक्तम् = निराकार ; अक्षरम् = सच्चिदानन्दघन ब्रह्मको ; पर्युपासते = भाव से ध्यान करते हुए उपासते हैं ; ते = वे ; सर्वभूतहितेरता: = संपूर्ण भूतोंके हित में रत हुए (भी) ; माम् = मेरे को ; एव = ही ; प्राप्नुवन्ति = प्राप्त होते हैं |
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१९:०३, ४ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-12 श्लोक-3, 4 / Gita Chapter-12 Verse-3, 4
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