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गीता अध्याय-12 श्लोक-9 / Gita Chapter-12 Verse-9
प्रसंग-
यहाँ यह जिज्ञासा हो सकती है कि यदि मैं उपर्युक्त प्रकार से आप में मन-बुद्धि न लगा सकूँ तो मुझे क्या करना चाहिये । इस पर कहते हैं-
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् ।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनंजय ।।9।।
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यदि तू मन को मुझमें अचल स्थापन करने के लिये समर्थ नहीं है तो हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! अभ्यास रूप योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिये इच्छा कर ।।9।।
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If you cannot stadily fix the mind on me. Arjuna, then seek to attain me through the yoga of repeated practice. (9)
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चित्तम् = मनको; मयि = मेरे में; स्थिरम् = अचल; समाधातुम् = स्थापन करनेके लिये; न शक्रोषि = समर्थ नहीं है; तत: = तो; धनंजय = हे अर्जुन; अभ्यासयोगेन = अभ्यासरूप योगके द्वारा; माम् = मेरे को; आप्तुम् = प्राप्त होने के लिये; इच्छ = इच्छा कर
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