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[[अर्जुन]] के प्रश्न को सुनकर भगवान् अब अगले दो श्लोकों में उसका संक्षेप से उत्तर देते हैं-  
 
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'''त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।'''<br/>
 
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'''सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु ।।2।।'''
 
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'''श्रीभगवान् बोले-'''
 
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मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पत्र श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनो प्रकार की ही होती है ।
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मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनो प्रकार की ही होती है ।
 
उसको तू मुझसे सुन ।।2।।
 
उसको तू मुझसे सुन ।।2।।
  
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'''Shri Bhagavan said-'''
 
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that untutored innate faith of men is of three kinds—Sattvika and Rajasika and Tamasika. Hear of it from Me.(2)
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According to the modes of nature acquired by the embodied soul, one's faith can be of three kinds-goodness, passion or ignorance. Now hear about these.(2)
 
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१२:१३, २४ नवम्बर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-17 श्लोक-2 / Gita Chapter-17 Verse-2

प्रसंग-


अर्जुन के प्रश्न को सुनकर भगवान् अब अगले दो श्लोकों में उसका संक्षेप से उत्तर देते हैं-


श्रीभगवानुवाच
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु ।।2।।



श्रीभगवान् बोले-


मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनो प्रकार की ही होती है । उसको तू मुझसे सुन ।।2।।

Shri Bhagavan said-


According to the modes of nature acquired by the embodied soul, one's faith can be of three kinds-goodness, passion or ignorance. Now hear about these.(2)


देहिनाम् = मनुष्यों की ; सा = वह (बिना शास्त्रीय संस्कारों के केवल) ; स्वभावजा = स्वभाव से उत्पन्न हुई ; श्रद्धा = श्रद्धा ; सात्त्विकी = सात्त्विकी ; = च = और ; राजसी =राजसी ; च = तथा ; तामसी = तामसी ; इति = ऐसे ; त्रिविधा = तीनों प्रकार की ; एव = ही; भवति =होती है ; ताम् = उसको (तूं) ; (मत्त:) = मेरे से श्रृणु = सुन



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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