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१०:३७, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-17 श्लोक-23 / Gita Chapter-17 Verse-23

प्रसंग-


सात्त्विक यज्ञ, दान और तप उपादेय क्यों है; भगवान् से उनका क्या संबंध है तथा उन सात्त्विक यज्ञ, तप और दानों में जो अंग-वैगुण्य हो जाये, उसकी पूर्ति किस प्रकार होती है- यह सब बतलाने के लिये अगला प्रकरण आरम्भ किया जाता है –


ऊँ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्राणास्त्रिविध: स्मृत: ।
ब्रह्राणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिता: पुरा ।।23।।



ऊँ,तत्, सत्- ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दघन ब्रह्रा का नाम कहा है; उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्रह्राण और वेद तथा यज्ञादि रचे गये ।।23।।

OM, TAT and SAT—This has been declared as the threefold appellation of the Absolute, who is Truth, Consciousness and Bliss solidified. By That the Brahmanas and the Vedas as well as sacrifices were created at the cosmic dawn. (23)


तत् = तत् ; सत् = सत् ; इति = ऐसे (यह) ; त्रिविध: = तीन प्रकार का ; ब्रह्मण: = सच्चिदानन्दघन ब्रह्मका ; निर्देश: = नाम ; स्मृत: = कहा है ; तेन = उसी से ; पुरा = सृष्टि के आदि काल में ; ब्राह्मणा: = ब्राह्मण ; च = और ; वेदा: = वेद ; च = तथा ; यज्ञा: = यज्ञादिक ; विहिता: = रचे गये हैं



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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