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१०:२५, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-3 / Gita Chapter-17 Verse-3
सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरूषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ।।3।।
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हे भारत ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है यह पुरूष श्रद्धामय है, इसलिये जो पुरूष जैसी श्रद्धावाला है वह स्वयं भी वही है ।।3।।
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The faith of all men conforms to their mental constitution, arjuna. This man consists of faith; whatever the nature of his faith, he is verily that. (3)
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भारत = हे भारत ; श्रद्धा = श्रद्धा ; सत्त्वानुरूपा = अन्त:करण के अनुरूप ; भवति = होती है (तथा) ; अयम् = यह ; पुरूष: = पुरूष ; श्रद्धामय: = श्रद्धामय है ; सर्वस्य = सभी मनुष्यों की ; सर्वस्य = सभी मनुष्यों की ; (अत:) = इसलिये ; य: = जो पुरूष ; यच्छ्द्ध: = जैसी श्रद्धावाला है ; स: = वह स्वयम् ; एव = भी ; स: = वही है
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