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१०:२७, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-7 / Gita Chapter-17 Verse-7
प्रसंग-
त्रिविध स्वाभाविक श्रद्धा वालों के तथा घोर तप करने वाले लोगों के लक्षण बतलाकर अब भगवान् सात्त्विक का ग्रहण और राजस-तामस का त्याग कराने के उद्देश्य से सात्विक राजस तामस आहार, यज्ञ, तप और दान के भेद सुनने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं-
आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय: ।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु ।।7।।
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भोजन भी सबको अपनी –अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है । और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं । उनके इस पृथक्-पृथक् भेद को तू मुझसे सुन ।।7।।
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Food also, which is agreeable to different men according to their innate disposition, is of three Kinds.And likewise sacrifice, penance and charity too are of three kinds each; hear their distinction as follows.(7)
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आहार: = भोजन ; अपि = भी ; सर्वस्य = सबको (अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार) ; त्रिविध: = तीन प्रकार का ; दानम् = दान भी (तीन तीन प्रकार के होते हैं) ; तेषाम् = उनके ; प्रिय: = प्रिय ; भवति = होता है ; तु = और ; तथा = वैसे ही ; यज्ञ: = यज्ञ ; तप: = तप (और ) ; इमम् = इस ; भेदम् = न्यारे न्यारे भेद को (तूं मेरे से) ; श्रृणु = सुन
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