गीता 18:5

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गीता अध्याय-18 श्लोक-5 / Gita Chapter-18 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार त्याग का तत्व सुनने के लिये <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को सावधान करके अब भगवान् उस त्याग का स्वरूप बतलाने के लिये पहले दो श्लोकों में शास्त्रविहित शुभ कर्मों को करने के विषय में अपना निश्चय बतलाते हैं-


यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ।।5।।



यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।।

Acts of sacrifice, charity and penance are not worth giving up; they must be performed. For sacrifice, charity and penance— all these are purifiers of wise men.(5)


यज्ञदानतप:कर्म = यज्ञ दान और तपरूप कर्म ; न त्याज्यम् = त्यागने के योग्य नहीं है (किन्तु) ; तत् = वह ; एव = नि:सन्देह ; कार्यम् = करना कर्तव्य है (क्योंकि); यज्ञ: = यज्ञ ; दानम् = दान ; च = और ; तप: = तप (यह तीनों) ; एव = ही ; मनीषिणाम् = बुद्धिमान् पुरुषों को ; पावनानि = पवित्र करने वाले हैं ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

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