गीता 18:67

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गीता अध्याय-18 श्लोक-67 / Gita Chapter-18 Verse-67

प्रसंग-


इस प्रकार भगवान् गीता के उपदेश का उपसंहार करके अब उस उपदेश के अध्यापन और अध्ययन आदि का माहात्म्य बतलाने के लिये पहले अनधिकारी के लक्षण बतलाकर उसे गीता का उपदेश सुनाने का निषेध करते हैं-


इदं ते नातपस्काय नाभक्ताप कदाचन ।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ।।67।।



तुझे यह गीता रूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिये, न भक्तिरहित और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिये; तथा जो मुझमें दोष दृष्टि रखता है उससे भी नहीं कहना चाहिये ।।67।।

This secret gospel of the Gita should never be imparted to a man who lacks penance, nor to him who is wanting in devotion, nor even to him who lends not a willing ear; and in no case to him who finds fault with Me. (67)


ते = तेरे (हितके लिये कहे हुए) ; इदम् = इस गीतारूप परम रहस्य को ; कदाचन = किसी कालमें भी ; न = न (तो) ; अतपस्काय = तपरहित मनुष्य के प्रति ; वाच्यम् = कहना चाहिये ; च = और ; न = न ; अभक्ताय = भक्ति रहित के प्रति ; च =तथा ; न = न ; अशुश्रूषवे = बिना सूनने की इच्छावाले के ही प्रति ; वाच्यम् = कहना चाहिये (एवं) ; य: = जो ; माम् = मेरी ; अभ्यसूयति = निन्दा करता है ; तस्मै = उसके प्रति भी ; न = नहीं कहना चाहिये



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

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