"गीता 1:27" के अवतरणों में अंतर
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− | ''' | + | '''तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।।27।।'''<br /> |
− | '''कृपया परयाविष्टो | + | '''कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।''' |
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− | उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वह कुन्ती पुत्र अर्जुन अत्यन्त | + | उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वह <balloon link="index.php?title=कुन्ती" title="ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की पत्नी । |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | ||
+ | कुन्ती</balloon> पुत्र <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> | ||
+ | अर्जुन</balloon> अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह बचन बोले ।।27वें का उत्तरार्ध और 28वें का पूर्वार्ध ।। | ||
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− | Seeing all those relations present there, | + | Seeing all those relations present there, Arjuna was filled with deep compassion, and uttered these words in sadness. (second half of 27and first half of 28) |
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− | तान् = उन; अवस्थितान् =खड़े हुए; सर्वान् =संपूर्ण; बन्धून् = बन्धून् = बन्धूओं को; समीक्ष्य =देखकर; स: = देखकर; स: =वह; परया =अत्यन्त; कृपया = | + | तान् = उन; अवस्थितान् =खड़े हुए; सर्वान् =संपूर्ण; बन्धून् = बन्धून् = बन्धूओं को; समीक्ष्य =देखकर; स: = देखकर; स: =वह; परया =अत्यन्त; कृपया = करुणा से; अविष्ट: = युक्त हुआ; कौन्तेय: = कुन्तीपुत्र अर्जुन: विषीदन् = शोक करता हुआ; इदम् =यह; अब्रवीत् = बोला |
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०३:१४, ७ अप्रैल २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-27 / Gita Chapter-1 Verse-27
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