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− | जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मारा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते; क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है ।।19।। | + | जो इस आत्मा को मरने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते, क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारती है और न किसी के द्वारा मारी जाती है ।।19।। |
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११:५०, १२ नवम्बर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-2 श्लोक-19 / Gita Chapter-2 Verse-19
प्रसंग-
पूर्व श्लोक में यह कहा कि 'आत्मा किसी के द्वारा नहीं मारी जाती', इस पर यह जिज्ञासा होती है कि आत्मा किसी के द्वारा नहीं मारी जाती, इसमें क्या कारण है ? इसके उत्तर में भगवान् आत्मा में सब प्रकार के विकारों का अभाव बतलाते हुए उसके स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं-
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।।19।।
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जो इस आत्मा को मरने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते, क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारती है और न किसी के द्वारा मारी जाती है ।।19।।
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They are both ignorant, he who knows the soul to be capable to killing and he who takes it as killed; for verily the soul neither kills, nor is killed.(19)
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य: = जो ; एनम् = इस आत्माको ; हन्तारम् = मारनेवाला ; वेत्ति = समझता है ; च = तथा ; य: =जो ; इनम् = इसको ; हतम् = मरा ; हन्ति = मारता है (और) ; मन्यते = मानता है ; तौ = वे ; उभौ = दोनों ही ; न = नहीं ; विजानीत: = जानते हैं (क्योंकि) ; अयम् = यह आत्मा ; न = न ; हन्यते = मारा जाता है
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