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१२:३७, १२ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-28 / Gita Chapter-2 Verse-28
प्रसंग-
आत्मतत्त्व अत्यन्त दुर्बोध होने के कारण उसे समझाने के लिये भगवान् ने उपर्युक्त श्लोकों द्वारा भिन्न -भिन्न प्रकार से उसके स्वरूप का वर्णन किया। अब अगले श्लोक में उस आत्मतत्व दर्शन, वर्णन और श्रवण की अलौकिकता और दुर्लभता का निरूपण करते हैं-
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधानान्येव तत्र का परिदेवना ।।28।।
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हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना हैं ? ।।28।।
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arjuna, before birth beings are not manifest to our human senses; at death they return to the unmanifest again. They are manifest only in the interin between birth and death. What occasion, then, for lamentation ?(28)
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भारत = हे अर्जुन ; भूतानि = संपूर्ण प्राणी ; अव्यक्तादीनि = जन्मसे पहिले बिना शरीरवाले (और) ; अव्यक्तनिधनानिएव = मरनेके बाद भी बिना शरीरवाले ही हैं (केवल); व्यक्तमध्यानि = बीचमें ही शरीरवाले (प्रतीत होते) हैं (फिर) ; तत्र = उस विषयमें ; का = क्या ; परिदेवना = चिन्ता है
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