ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-2 श्लोक-32 / Gita Chapter-2 Verse-32
प्रसंग-
इस प्रकार धर्ममय युद्ध करने में लाभ दिखलाने के बाद अब उसे न करने में हानि दिखलाते हुए भगवान् अर्जुन को युद्ध के लिये उत्साहित करते हैं|
यद्रच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् ।
सुखिन: क्षत्रिया: पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ।।32।।
|
हे पार्थ ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान् क्षत्रिय लोग ही पाते हैं ।।32।।
|
Arjuna, happy are the ksatriyas who get such an unsolicited opportunity for war; which opens the door to heaven.(32)
|
पार्थ = हे पार्थ ; यद्यच्छया = अपने आप ; उपपन्नम् = प्राप्त हुए ; च = और ; अपावृतम् = खुले हुए ; स्वर्गद्वारम् = स्वर्गके द्वाररूप ; ईद्यशम् = इस प्रकारके ; युद्धम् = युद्धको ; सुखिन: = भाग्यवान् ; क्षत्रिया: = क्षत्रियलोग (ही); लभन्ते = पाते
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|