गीता 2:46

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गीता अध्याय-2 श्लोक-46 / Gita Chapter-2 Verse-46

प्रसंग-


इस प्रकार समबुद्धि रूप कर्मयोग का और उसके फलका महत्व बतलाकर अब दो श्लोकों में भगवान् कर्मयोग का स्वरूप बतलाते हुए <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को कर्मयोग में स्थित होकर कर्म करने के लिये कहते हैं-


यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके ।
तावान् सर्वेषु वेदेषु ब्राह्राणस्य विजानत: ।।46।।




सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को तत्व से जानने वाले ब्राह्राण का समस्त <balloon link="index.php?title=वेद" title="वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">वेदों</balloon> में उतना ही प्रयोजन रह जाता है ।।46।।


A brahma, who has obtained enlightenment , has the same use for all the Vedas as one who stands at the brink of a sheet of water overflowing on all sides has for a small reservoir of water.(46)


सर्वत: = सब ओरसे ; संप्लुतोदके = परिपूर्ण जलाशयके ; (प्राप्ते सति) = प्राप्त होनेपर ; उदपाने = छोटे जलाशयमें ; ब्राह्रणस्य = ब्राह्रणका (भी) ; सर्वेषु = सब ; यावान् = जितना ; अर्थ: = प्रयोजन ; (अस्ति) = रहता है ; विजानत: = अच्छी प्रकार ब्रह्रको जाननेवाले ; वेदेषु = वेदोंमें ; तावान् = उतना ही प्रयोजन रहता है|



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

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